Sunday, February 25, 2018

Anukriti NEXT






अनुकृति स्थिति और अपने सामने बैठे शख्स को समझने की कोशिश कर रही थी| एक बहुत बड़े लेखक का इंटरव्यू लेना ऐसा काम नहीं जो उसे प्रतिदिन करने को मिले|

देवऋषि वशिष्ठ अपने समय के सबसे कामयाब पल्प फिक्शन राइटर्स में से एक था| आज के दौर में जब लोग सोशल मीडिया और वर्ल्ड वाइड वेब के इंद्रजाल में उलझते जा रहे थे तब भी देवऋषि की फैन फॉलोइंग में, उसके पाठकों के उसके प्रति प्यार, उसकी लेखनी के प्रति जूनून और दीवानगी में कोई कमी ना आई थी|


अनुकृति ने एक नज़र उस नामचीन लुगदी साहित्यकार पर डाली, लेखक नाम से ही साधारणतया जो छवि दिलोदिमाग में उभरती है उससे देवऋषि वशिष्ठ काफी अलग था|

ना वो ढीला खादी का कुर्ता-पैजामा पहने, कंधे पर झोला लटकाए और बाल-दाढ़ी-मूंछ बेतरतीब बढ़ाए हुए था और ना ही आखों पर कई इंच मोटा नज़र का चश्मा चढ़ाए था, इसके बिलकुल विपरीत वो आधुनिक परिधान पहने था|

उसके हन्टर्स लेदर बूट्स, डायमंड स्टडेड गोल्ड रिस्ट वॉच, डिज़ाइनर वेस्टकोट और सूट और चश्मे की जगह आखों में हल्के नीली रंगत के कांटेक्ट लेन्सेस उसकी समृद्धि और सम्पन्नता की कहानी बयान कर रहे थे|

उसकी दाढ़ी और बाल भी लेटेस्ट ट्रेंड के अनुरूप था, कुल मिलाकर देवऋषि वशिष्ठ को देखकर ये अंदाज़ लगाना असंभव था कि वो एक हिंदी पल्प फिक्शन राइटर होगा| उसे देखकर अनुकृति भी उसके बिज़नस टाइकून या किसी मल्टीनेशनल फर्म के सी.ई.ओ. होने का धोखा खा गई थी|
देवऋषि और किसी स्टेरियोटाइप राइटर में बस कोई एक समानता थी तो यह कि वो भी दुनिया और अपने आस-पास घटित हो रही घटनाओं से इतर अपनी ही कल्पना में डूबा रहने वाला इंसान था, कम से कम उस समय तो अनुकृति को ऐसा ही प्रतीत हुआ|


उसे इंटरव्यू के लिए आये पन्द्रह मिनट गुजर चुके थे, जब से वो वहां आई थी उसे देवऋषि कुछ परेशान और खोया-खोया नजर आ रहा था|

अनुकृति ने हल्के से खांसने का उपक्रम किया, देवऋषि की तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना आई, वो पूर्ववत् अपने हाथ में थमे साल्ट डिस्पेंसर को उँगलियों के बीच उलट-पलट करने में लगा हुआ था|
उस समय अनुकृति और देवऋषि ‘ब्रेड ऑफ़ लाइफ’ नामक रेस्टोरेंट में बैठे थे| वो अंग्रेजों के ज़माने का बना हुआ एक यूरोपियन स्टाइल का पुराना रेस्टोरेंट और बार था| रेस्टोरेंट का एम्बियेंस और फील अब भी वैसी ही थी जैसी अपने दौर में हुआ करती थी, यही वजह थी कि लिखने के लिए वो जगह देवऋषि का फेवरेट राइटर्स स्पॉट थी| दूसरी बात जो उसे परफेक्ट राइटर स्पॉट बनाती थी वो यह थी कि वो एक चौबीस घंटे खुले रहने वाला रेस्टोरेंट था, यानी वो रेस्टोरेंट रात में भी बंद नहीं होता था|

अनुकृति ने अपनी रिस्ट वॉच पर नज़र डाली, रात के ग्यारह बजकर बीस मिनट बीत चुके थे|

‘मिस्टर देवऋषि’! अनुकृति अब काफी प्रतीक्षा कर चुकी थी| वो वापस घर जाना चाहती थी और एक भरपूर नींद लेना चाहती थी|
उसने ख्यालों में खोए हुए लेखक को आवाज़ दी परन्तु कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई|

‘मिस्टर देवऋषि...सर’! इस बार आवाज़ पहले से तेज़ थी| देवऋषि ने यूं चौंक कर उसकी तरफ देखा जैसे अभी-अभी कोई सपना देखते हुए नींद से जागा हो|

‘सर आप ठीक तो हैं? अगर आप चाहें  तो हम ये इंटरव्यू बाद में भी कर...’ अनुकृति अपनी बात पूरी नहीं कर पाई|

‘नहीं’!! देवऋषि ने उसकी बात बीच में ही काट दी|

कुछ देर तक यूं अपने फेफड़ों में सांस भरता रहा जैसे वो कोई दमे का रोगी हो|

‘आर यू श्योर सर’?

‘एब्सल्यूटली, आई एम फाइन’ अपने हर वाक्य के बाद वो कुछ क्षण चुप हो जाता, जैसे कुछ सोच रहा हो| जैसे एक लेखक अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए सही शब्दों के चयन को जूझता है शायद वैसे ही वो इस स्थिति के लिए सही अलफ़ाज़ तलाश रहा था|

अनुकृति देवऋषि के इस तरह व्यवहार की वजह नहीं समझ पा रही थी|

उसने ध्यान दिया कि देवऋषि के माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहा रही थीं जबकि वो दिसंबर के महीने की सर्द रात थी| बाहर शीतलहरी चल रही थी और रेस्टोरेंट के अन्दर पुराने समय के बने फायर प्लेस में जल रही आग उस ठंड से निजात तो दे रही थी पर वो इतनी तीव्र कतई नहीं थी कि पसीने छुड़ा दे|

अनुकृति उस समय एक चेरी रेड कलर का सिल्क रोब पहने हुए थी जिसके ऊपर फॉक्स फर कोट था| उसके लिप कलर का शेड उसके रोब से मैच कर रहा था| इन्टरव्यू लेने आई किसी सोशल मीडिया जर्नलिस्ट के हिसाब से भी उसका ओवरऑल अपियरेंस काफी लाउड था|


अनुकृति और देवऋषि टेबल पर आमने-सामने बैठे थे, अनुकृति ने अपना हैंड बैग टेबल पर रखा हुआ था| एलीगेटर स्किन का बना हुआ उसका बैग भी उसके ड्रेस और लिपकलर से मैच कर रहा था| अनुकृति ने बैग में से एक पेन और नोटबुक बरामद की|

‘शैल वी स्टार्ट’?



दोनों कुछ क्षण अनिश्चितता से एक-दूसरे को देखते रहे जैसे दोनों ही ये निर्णय ना ले पा रहे हों कि उन्हें आगे पहल कैसे करनी है|

अनुकृति ने ही अपनी ओर से पहल करने का फैसला किया|

उसने देवऋषि से प्रश्न पूछने को मुंह खोला ही था कि एक वेटर उनकी टेबल पर आ गया| उसके हाथ में एक ट्रे थमी थी जिसपर मिनरल वॉटर की बॉटल और दो शीशे के ग्लास थे| वेटर ने इत्मीनान से दोनों ग्लास अनुकृति और देवऋषि के सामने रखे और दोनों में आधा-आधा ग्लास पानी भरा| इस दौरान दोनों में से कोई कुछ ना बोला, दोनों ही वेटर को उसका क्रियाकलाप करते देखते रहे|

देवऋषि की दृष्टि वेटर पर पड़ी, उसने पहले कभी उस वेटर को वहां नहीं देखा था| देवऋषि पिछले कई सालों से उस रेस्टोरेंट का रेगुलर कस्टमर था इसलिए वहां काम करने वाले प्रत्येक वेटर व् अन्य स्टाफ से भली भाँती परिचित था|

यकीनन इस वेटर की भर्ती वहां आज-कल में ही हुई थी| देवऋषि ने वेटर को ध्यान से देखा, उसका कद तकरीबन छे फुट से एक-दो इंच ऊपर होगा, रंगत दूध की तरह गोरी थी कि कोई भी उसके फॉरनर होने का धोखा खा सकता था| उसका चेहरा लम्बा और जबड़े मज़बूत थे, उसके लम्बे बाल सर से सलीके से चिपकाकर बनाए हुए थे और पीछे पिगटेल की सूरत में बंधे थे, चेहरे पर फ्रेंच कट दाढ़ी थी जो उसके शार्प फीचर्स को और शार्प कर रही थी| उसकी आखें कंजी और किसी शिकारी बाज़ जैसी पैनी थीं और शरीर गठीला व् मज़बूत था, इसके बावजूद उसके काम करने के अंदाज़ में एक ख़ास नफासत थी|

बॉटल भी टेबल पर रखकर वेटर शालीनता से सर झुका कर वहीं खड़ा हो गया|

‘आप क्या लेना पसंद करेंगी’? देवऋषि की नज़रें वेटर से होते हुए अनुकृति के चेहरे पर जाकर टिकीं|
‘आपका इंटरव्यू’!! अनुकृति के चेहरे पर एक औपचारिक मुस्कान उभरी|

देवऋषि एक क्षण अनिश्चित सा, असमंजस से भरा हुआ उसे देखता रहा| उसके चेहरे पर भी एक फीकी सी मुस्कान उभरी|

‘जी ज़रूर| इसीलिए तो हम यहाँ आए हैं’! देवऋषि ने यूं कहा जैसे वो सामने बैठी लड़की से नहीं बल्कि खुद से ही बात कर रहा हो|

‘आपको यहाँ का चिकन सूप ट्राई करना चाहिए, चिकेन सूप इस रेस्टोरेंट की स्पेशलिटी है’| दोबारा खुद को संभालते हुए देवऋषि अनुकृति से मुखातिब हुआ|

वेटर उनकी टेबल के बगल में अदब से खड़ा हुआ था| अनुकृति ने मुस्कुराते हुए एक नज़र वेटर की ओर डाली|
‘नो थैंक्स सर, मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ’| अनुकृति ने चेहरे पर मुस्कराहट सजाए हुए कहा|
देवऋषि अपनी हंसी निकलने से ना रोक पाया|

‘शाकाहारी’!! देवऋषि खुद में ही हँसते हुए बोला जैसे उसने कोई ऐसा जोक सुना हो जो सिर्फ उसे ही समझ आया है|

पिछले आधे घंटे में पहली बार देवऋषि के चेहरे पर मुस्कान आई थी, एक तीखी, अर्थपूर्ण मुस्कान|

‘एनी थिंग रॉंग सर’? अनुकृति को उसकी यह हंसी अच्छी ना लगी|

‘नथिंग| बस आपके फॉक्स फर कोट और एलीगेटर स्किन बैग को देखकर लगता नहीं कि आप पशु प्रेमी हैं’| देवऋषि ने व्यंगात्मक अंदाज़ में कहा|

‘ज़रूरी तो नहीं कि हम जिससे प्रेम नहीं करते उसे खा जाएं’| अनुकृति भावहीन ढ़ंग से बोली|



‘ख़ैर| अगर आपको मेरा इंटरव्यू लेना है तो कुछ तो आर्डर करना ही पड़ेगा...समय ज़रा ज़्यादा लगने वाला है’| आखरी वाक्य पर जोर देते हुए देवऋषि बोला|

अनुकृति कन्फ्यूज्ड थी, देवऋषि के शब्दों के पीछे छुपे मंतव्य को समझ नहीं पा रही थी| उसकी झिझक बढ़ रही थी| वो बस जल्द से जल्द यह इन्टरव्यू निपटा कर वहां से निकल जाना चाहती थी| उसने खुद को संभाले रखने की और चेहरे पर औपचारिक मुस्कान बनाए रखने की भरसक कोशिश की|

‘ठीक है सर, आप इतना इंसिस्ट कर रहे हैं तो मैं टोमेटो सूप ले लेती हूँ’|

देवऋषि वेटर की तरफ पलटा, उसने अनुकृति के लिए टोमेटो सूप और अपने लिए ब्लैक कॉफ़ी का आर्डर दिया| वेटर आर्डर लेकर सुसंयमित कदमों से चलता हुआ वहां से रेस्टोरेंट के किचेन की तरफ बढ़ गया|

देवऋषि अनुकृति से मुखातिब हुआ, अनुकृति उसे ही देख रही थी|

‘शैल वी’? अनुकृति ने अपने हाथ में थमे नोटबुक और पेन की तरफ इशारा किया|

‘ओह! यस ऑफ़कोर्स| पूछिए क्या पूछना चाहती हैं आप’? देवऋषि मुस्कुराते हुए बोला| उसकी नज़रें अनुकृति पर ही टिकी हुई थीं|

मिस्टर देवऋषि, आपने अबतक 6 मिस्ट्री नॉवेल्स लिखी हैं और सभी नॉवेल बेस्टसेलर्स हैं| आपकी गिनती देश के चुनिन्दा क्राइम राइटर्स में होती है| क्या आपको लगता है कि आपकी सातवीं किताब भी एक बेस्टसेलर होगी’? अनुकृति ने बिलकुल प्रोफेशनल जर्नलिस्ट के अंदाज़ में अपना सवाल रखा|

देवऋषि अभी भी एकटक अनुकृति की ओर देख रहा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था|

‘मिस्टर देवऋषि!! सर??’ संयम बनाए रखने का भरसक प्रयास करते हुए अनुकृति ने कहा| लेकिन अब उसके सब्र का बाँध टूट रहा था|

‘अ...आई एम सॉरी| आप क्या कह रही थीं’?

‘आपका अगला प्रोजेक्ट सर! योर नेक्स्ट बुक...टेल अस समथिंग अबाउट इट| फॉर स्टार्टर्स, आपकी नॉवेल्स के टाइटल भी कहानी से कम मिस्टीरियस नहीं होते| अपनी अगली नॉवेल के लिए क्या टाइटल सोचा है आपने?

देवऋषि ने उसके सवाल का फ़ौरन कोई जवाब ना दिया| अपने सामने रखा ग्लास उठाकर उसने एक घूँट पानी पिया| ग्लास टेबल पर वापस रखकर देवऋषि ने पुनः साल्ट डिस्पेंसर उठा लिया और उसे अपनी उँगलियों के बीच नचाने लगा|

अनुकृति धैर्यपूर्वक उसके उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थी|

देवऋषि की नज़रें उसकी उँगलियों के बीच नाचते साल्ट डिस्पेंसर पर टिकी हुई थीं|

‘अनुकृति!...अनुकृति नेक्स्ट!!’ देवऋषि की आवाज़ सर्द और भावहीन थी| उसने अपनी नज़रें ऊपर उठाईं| अनुकृति की नज़रें देवऋषि की आखों से टकराईं| देवऋषि की आखों में एक सर्द भाव था, जैसे किसी साइकोपैथ के चेहरे पर होता है|

‘मैं कुछ समझी नहीं सर’? अनुकृति की समझ में वाकई कुछ नहीं आया था| उसके चेहरे पर प्रश्नवाचक भाव थे|

 ‘दैट्स द टाइटल ऑफ़ माय नेक्स्ट बुक..अनुकृति नेक्स्ट’! देवऋषि के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान उभरी|

‘व्हाट ए कोइंसीडेंस सर, मेरा नाम भी अनुकृति है’|

देवऋषि के चेहरे पर एक ही पल में बहुत से भाव आए और गए, अनुकृति समझ नहीं पाई कि उसने ऐसा क्या कहा|

‘कोइन्सिडेन्स! हुंह!! तुम्हे ये एक कोइन्सिडेन्स लगता है...एक...एक...इत्तेफाक’? देवऋषि के दांत भिंच गए, उसके मुंह से एक-एक शब्द पिस-पिस के निकल रहा था|

‘आप कहना चाहते हैं कि ये इत्तेफाक नहीं है कि आपकी अगली नॉवेल का नाम मुझसे मिलता है’? अनुकृति ने सशंकित भाव से पूछा|

‘जिंदगी में कुछ भी इत्तेफाकन नहीं होता अनुकृति| हर एक घटना जो घटित होती है, चाहे वो कितनी ही छोटी या बड़ी हो, चाहे वो कितनी ही बेमायने क्यों ना लगे, उसके घटित होने के पीछे कोई ना कोई कारण ज़रूर होता है|’ देवऋषि टेबल पर अनुकृति की तरफ आगे झुका और उसकी आखों में देखते हुए बोला|

‘आपकी दूसरी नॉवेल ‘मॉनसून मर्डर्स’ के पेज 102 के 2nd पैराग्राफ की लाइन है ये|’ अनुकृति भी उसकी नकल करते हुए टेबल पर उसकी ओर आगे झुकी और उसकी आखों में देखते हुए बोली|
‘तुमने पढ़ी है वो नॉवेल’? देवऋषि के चेहरे पर सहज मुस्कान उभरी|

‘मैंने आपकी लिखी सभी नॉवेल्स पढ़ी हैं| बहुत बड़ी फैन हूँ आपकी’|

देवऋषि के चेहरे पर उभरी सहज मुस्कान बुझ गई, वो एकटक अनुकृति को देख रहा था| चेहरे पर पागलों वाले भाव लिए हुए|

अनुकृति को उसकी मनोस्थिति ठीक ना लगी|

‘मुझे ये इन्टरव्यू जल्द खत्म करना चाहिए’| अनुकृति के दिमाग ने उसे झंकझोरा|

‘वैसे ये नाम ‘अनुकृति नेक्स्ट’ थोडा अजीब नहीं है? क्या ये भी आपकी पिछली नॉवेल्स की तरह एक क्राइम थ्रिलर है’?

‘मेरी ये नॉवेल मेरी पिछली लिखी सभी किताबों से काफी अलग है’| देवऋषि ने अनुकृति की ओर एक अर्थपूर्ण निगाह डालते हुए कहा|

 ‘सुनना चाहोगी इसके बारे में’?

अनुकृति के चेहरे पर अनिश्चितता के भाव थे, वास्तव में वो जल्द से जल्द इंटरव्यू खत्म करके वहां से निकल जाना चाहती थी परन्तु देवऋषि को सीधे मना करके वो रूड नहीं साउंड करना चाहती थी|

‘श्योर सर’| अपने होठों पर औपचारिक मुस्कान बरकरार रखते हुए बोली|

‘ये एक राइटर की कहानी है, एक बहुत ही सक्सेसफुल राइटर की| जिसकी लिखी सभी किताबें बेस्टसेलर हैं| जिसकी गिनती देश के सबसे बड़े मिस्ट्री राइटर्स में होती है’|

साउंड्स लाइक यू| क्या ये आपकी आत्मकथा है’?

‘कह सकती हो’|

‘फिर इसमें अनुकृति कहाँ फिट होती है’?

‘फिट होती है न, जैसे तुम मिल गई’|

‘मैंने कहा न कि जिंदगी में हर घटना के पीछे कारण ज़रूर होता है| हर एक शख्स जो हमारी जिंदगी में आता है, चाहे वो कितने ही कम पलों के लिए क्यूँ ना आया हो, उसके आने के पीछे कोई वजह, कोई कारण अवश्य होता है| यूं ही जिंदगी में ना कोई आता है और ना ही जाता है’|

‘म...मैं आपका मतलब नहीं समझी सर’! अनुकृति अनिश्चित सी बोली|

‘समझ जाओगी अनुकृति...धीरे-धीरे सब समझ जाओगी| पहले मुझे अपनी कहानी तो सुना लेने दो’| देवऋषि के चेहरे पर किसी साइकोपैथ किलर जैसी तीखी मुस्कान उभर रही थी|

वो एक पल के लिए शांत हुआ| अपने सूट की इनर पॉकेट से उसने एक सिगरेट केस और लाइटर बरामद किया|

अनुकृति ने रेस्टोरेंट में चारों तरफ नजर दौड़ाई, रेस्टोरेंट खाली हो चुका था| जिस समय वो वहां आई थी उस समय ग्राहकों की काफी चहल-पहल थी| अनुकृति को एहसास ही नहीं हुआ कि रेस्टोरेंट खाली कब हो गया|

जिस वेटर ने उनका आर्डर लिया था वो भी नजर नहीं आ रहा था, ना ही काउंटर पर कोई मौजूद था| एक पल के लिए अनुकृति के शरीर ने डर से हल्की सी झुरझुरी ली, फिर उसने फ़ौरन ही खुद को संभाला|

देवऋषि अपना सिगरेट सुलगा चुका था, उसने एक गहरा कश खींचा और पुनः बोलना आरम्भ किया|
‘ये कहानी उस समय से शुरू होती है जब हमारा ये राइटर सक्सेसफुल नहीं था| अपने स्ट्रगलिंग पीरियड का लम्बा समय उसने एक गुमनाम से ‘पेन नेम’ के पीछे गुज़ारा’|

देवऋषि ने अनुकृति पर नजर डाली, वो उसकी तरफ ही देख रही थी, ‘जानती हो अनुकृति, इंसान के जीवन में उसके दो सबसे बड़े शिक्षक होते हैं समय और असफलता| इन दोनों शिक्षकों से जो इंसान जिंदगी जीने का सबक सीख लेता है वो ही कामयाबी का सच्चा हकदार होता है’|

‘तो आपने....मेरा मतलब आपकी कहानी के इस किरदार, इस राइटर ने समय और अपनी असफलताओं से सबक सीखकर खुद को बेहतर बनाया और कामयाबी की बुलंदियों तक पहुँच गया’|

अनुकृति ने अपनी नोटबुक खोल ली और पॉइंटर्स के रूप में इंटरव्यू के मुख्य बिन्दुओं को नोट करने लगी ताकि उन्हें बाद में याद करके विस्तृत रूप से लिखने में उसे दिक्कत ना हो|

‘ऐसा नहीं है| कुछ लोग चीटिंग करके भी फर्स्ट आते हैं, ऊंचाइयों तक पहुचने का शॉर्टकट निकाल लेते हैं’|

‘मैं समझी नहीं’|

‘कभी Faustian Bargain के बारे में सुना है’? देवऋषि ने नथुनों से ढेर सारा धुंआ उगलते हुए कहा|

दो पल के लिए अनुकृति आवाक सी देवऋषि को देखती रही| देवऋषि का धुएं के गुबार के पीछे से झांकता चेहरा उसे बहुत ही डरावना लग रहा था|

‘Faustian Bargain..मैंने शायद कहीं पढ़ा है इसके बारे में’| अनुकृति ने सोचपूर्ण भाव से कहा|

‘फॉस्टियन बार्गेन फॉस्ट की कहानी के ऊपर आधारित है जिसने शैतान के साथ अनुबंधन किया था’| देवऋषि ने सिगरेट का एक लम्बा कश खींचते हुए कहा|

‘हाँ, मुझे याद आया| मैंने पढ़ा था, फॉस्टियन बार्गेन में इंसान शैतान से सौदा करता है...डील विथ द डेविल’| अनुकृति ने सोचपूर्ण मुद्रा में कहा|

यू आर एबसोल्यूटली राईट अनुकृति, फॉस्टियन बार्गेन यानी डील विथ द डेविल, यानी शैतान से किया हुआ एक सौदा जहां शैतान आपकी कोई एक विश, कोई ख्वाहिश...कोई ऐसी चाहत जिसे आप शिद्दत से पूरा करना चाहते हैं लेकिन हर बार असफल होते हैं उसे पूरा करता है’|

‘लेकिन ये फॉस्टियन बार्गेन, डील विथ द डेविल तो वेस्टर्न कॉन्सेप्ट है’|

‘हाहाहा...जानती हो अनुकृति भगवान् की तरह ही शैतान भी धर्म, जाति और सरहदों के भेदभाव को नहीं मानता| यह अवगुण सिर्फ इंसानों में पाया जाता है’|

‘अच्छा चलिए मान लिया| तो आप कहना चाहते हैं कि आपकी कहानी के इस किरदार ने खुद को सफल बनाने के लिए शैतान से समझौता किया’? अनुकृति यूं बोली जैसे देवऋषि की जगह खुद से ही सवाल कर रही हो|

देवऋषि दो पल के लिए शांत हुआ, अपनी पीठ चेयर से टिका कर उसने सर ऊंचा किया और नथुनों से ढेर सारा धुंआ उगला| फिर उसने आगे बढ़कर अपनी दोनों कोहनियाँ टेबल से टिका लीं और अनुकृति की आँखों में देखा| वो अनुकृति के मनोभाव पढना चाहता था| अनुकृति की आखों में असहजता के साथ कौतूहल भी था| देवऋषि के चेहरे पर फिर से एक तीखी मुस्कान उभरी|

‘बट देयर आर नो फ्री लन्चेज़ इन दिस वर्ल्ड| एव्रीथिंग कम्स विद ए प्राइस, और इंसान को सबसे ज्यादा महंगे उसके सपने ही पड़ते है अनुकृति’|

 ‘जैसा कि मैंने कहा, कुछ लोग चीटिंग करके भी फर्स्ट आते हैं| इस राइटर ने भी फर्स्ट आने के लिए, खुद को उस शीर्ष पर पहुंचाने के लिए जिसके काबिल वो खुद को समझता था, चीटिंग का सहारा लिया| शैतान के साथ एक सौदा...एक फॉस्टियन बार्गेन की उसने’|
और क्या थी ये डील’?


‘अपनी हर एक कामयाबी के लिए राइटर को शैतान को एक जान की बलि देनी थी| शुरू में राइटर को लगा कि ये उसके मन का वहम है या फिर उसकी असफलता उसपर इतनी हावी हो गई है कि उसका दिमाग उसके साथ खेल खेल रहा है...लेकिन वे उसकी कल्पना नहीं थी| राइटर की अपने नाम से लिखी हुई पहली किताब ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए’|

देवऋषि ने अपनी खत्म होती सिगरेट टेबल पर रखे ऐश-ट्रे में झोंकी और केस से दूसरी सिगरेट निकाल कर होठों से लगा ली|

शैतान अपने हिस्से का सौदा पूरा पर चुका था...अब राइटर की बारी थी’| देवऋषि ने लाइटर से सिगरेट जलाया और एक लम्बा कश खींचते हुए कहा|

उसने एक नजर अनुकृति पर डाली, अनुकृति की आखों में अधीरता थी|

‘त...तो क्या राइटर ने अपने हिस्से का सौदा पूरा किया’?

देवऋषि ने मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाया और सिगरेट के धुंए के छल्ले मुंह से छोड़ने लगा|

अनुकृति आवाक सी, हतप्रभ होकर देवऋषि को देख रही थी| 
  
‘इमानदारी से ना सही, लेकिन कामयाबी मिली तो राइटर को असंख्य मुश्किलों और मुद्दतों के बाद थी, इतनी आसानी से कैसे छोड़ देता| आखिर कीमत ही क्या थी, अपने सपनो को सच करने की? उन सपनो को जो उसके लिए उसके अस्तित्व, उसके वजूद से भी बढ़ कर थे...एक जान’?
देवऋषि ने यूं कहा जैसे किसी बहुत ही छोटी, तुच्छ या बेमायने सी चीज़ के बारे में बात कर रहा हो, ‘बस एक जान ही तो लेनी थी’!!

‘उस रात अपनी नॉवेल के बेस्टसेलर बनने की सक्सेसपार्टी से निकलने के बाद एक सुनसान अँधेरी गली से गुजरती कोई अनजान लड़की राइटर के सौदे की पहली क़िस्त बनी’|
‘लेकिन राइटर को वहां नहीं रुकना था, वो तो सफलता की सीढ़ी की पहली पायदान थी, अभी आगे उसे और भी पायदाने चढ़नी थी और भी जाने लेनी थी’|
‘एक-एक कर के राइटर ने सफलता की छे पायदाने चढ़ी, छे सफल कहानियां, छे पायदान...यानी छे जान’|
‘और अब राइटर अपनी सातवीं कहानी लिखने जा रहा है’| देवऋषि के अंतिम वाक्य कुछ ऐसे सर्द भाव से निकले थे जिसकी सिहरन अनुकृति ने अपनी रीढ़ में दौड़ती महसूस की|

अनुकृति को एहसास हुआ कि वो डर से हांफ रही थी, उसका चेहरा पसीने से भरा हुआ था| एकबार फिर उसने रेस्टोरेंट में नजर घुमाई, पूरी जगह अभी भी खाली थी| वहां उन दोनों के अलावा कोई भी दूसरा नहीं था| अनुकृति का दिल कह रहा था कि वो वहां से उठे और भाग जाए, बड़ी मुश्किल से वो खुद को ऐसा करने से रोक पाई|

देवऋषि अपने हर एक शब्द पर जोर डालते हुए बोल रहा था, ‘और अब राइटर को अपनी सातवीं कहानी लिखनी है, सात कहानियां...सात पायदान...सात खून’!!

 ‘म...मिस्टर देवऋषि, मेरे ख्याल से इंटरव्यू के लिए इतना कंटेंट एनफ है| थैंक्स फॉर योर टाइम, अब मुझे चलना चाहिए’| अनुकृति ने महसूस किया कि उसकी आवाज़ फंस रही थी, उसके शब्दों में घबराहट का पुट था|

 अनुकृति ने उठने का उपक्रम किया|

‘तुम कहीं नहीं जा रही हो अनुकृति! कहानी का क्लाइमेक्स अभी बाकी है’|

देवऋषि अनुकृति को बैठ जाने का इशारा करते हुए बोला, उस वक्त देवऋषि के चेहरे पर कुछ ऐसे भाव थे कि अनुकृति उसकी बात अनसुनी करने की हिम्मत नहीं कर पाई|
अनुकृति दोबारा अपने स्थान पर बैठ गई|
‘आपकी कहानी और आपका यह किरदार वाकई दिलचस्प है सर, बट आई हेट स्पॉइलर्स| अगर आपने अभी ही मुझे कहानी का क्लाइमेक्स सुना दिया तो मेरे पास आपकी यह नॉवेल पढने की कोई वजह नहीं रह जाएगी’|

‘तुम समझी नहीं अनुकृति| इस कहानी के क्लाइमेक्स से मैं खुद भी अबतक अनभिज्ञ हूँ’|
‘मैं वाकई नहीं समझी सर कि आप कहना क्या चाह रहे हैं’?

‘तुमने कहानी ध्यान से नहीं सुनी, हर एक सफलता के बदले एक जान’|

देवऋषि की बातें अनुकृति के पल्ले नहीं पड़ रही थीं| उसकी बातें अनुकृति को किसी पागल के प्रलाप सरीखी प्रतीत हो रही थीं|

अनुकृति के मनोभाव से देवऋषि अनभिज्ञ नहीं था, देवऋषि कुछ पल शांत सा अनुकृति को देखता रहा फिर एकाएक पागलों की तरह हंसने लगा, अनुकृति कुछ समझ नहीं पा रही थी|

‘मेरी कहानियों की बहुत बड़ी फैन हो ना तुम? तो इतना तो जानती ही होगी कि मेरी किसी भी कहानी का क्लाइमेक्स बिना ‘ट्विस्ट ऑफ़ फेट’ के नहीं होता| इस कहानी के क्लाइमेक्स में भी एक ट्विस्ट ऑफ़ फेट है’| हँसते-हँसते देवऋषि एकदम से संजीदा होते हुए बोला|

‘कैसा ट्विस्ट ऑफ़ फेट’?

देवऋषि ने अपने कोट की जेब से एक एनवलप निकाला और टेबल पर अनुकृति के सामने फेंक दिया|

अनुकृति ने सशंकित भाव से एनवलप खोला, उसके भीतर पांच न्यूज़पेपर कटिंग्स थे|
अनुकृति ने चेहरे पर एक पल में सैकड़ों भाव आए और गए|
अन्तः उसकी आखों में भय, आश्चर्य और अविश्वास के भाव थे|

‘ट्विस्ट ऑफ़ फेट ये है कि राइटर ने छे नहीं सिर्फ पांच जाने लीं हैं| अपनी छठी नॉवेल की सक्सेस के बाद वो शैतान को उसके हिस्से के सौदे की क़िस्त नहीं दे पाया’|

अनुकृति विस्फरित नेत्रों से अपने हाथ में थमी पाँचों न्यूज़पेपर कटिंग्स देख रही थी|

वो न्यूज़पेपर कटिंग्स पिछले कुछ समय में शहर में हुई पांच सीरियल किलिंग्स की थी| जहां किसी अज्ञात हत्यारे ने पांच लड़कियों को अलग-अलग घटनाओं में निर्ममतापूर्वक मार डाला था| हत्यारे ने अपने सभी विक्टिम्स की पहले गला काट कर हत्या की फिर उनके दिल निकाल कर ले गया| हत्यारे का कभी कोई सुराग नहीं मिला क्योंकि हत्यारा इतना शातिर था कि उसने कभी अपने तक पहुँचने का कोई छोटा सा भी सुराग या सुबूत नहीं छोड़ा|
पुलिस और मीडिया ने उस हत्यारे को ‘मिडनाईट रिपर’ का खिताब दिया था, क्योंकि उसने पाँचों हत्याएं आधी रात के समय की थीं|
अनायास ही अनुकृति की नज़रें रेस्टोरेंट में लगे बड़े वॉलक्लॉक पर गई| आधी रात होने में कुछ ही मिनट शेष थे| अनुकृति की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई|

‘अ...आई सी| अ...आपने मिडनाईट रिपर से प्रेरणा लेकर अपना य..ये राइटर किरदार गढ़ा है’| अनुकृति बहुत मुश्किल से खुद पर काबू रखते हुए बोल पाई|  

‘प्रेरणा लेकर...हाहाहा...| हाँ कह सकती हो कि मैंने खुद से ही प्रेरणा लेकर यह किरदार गढ़ा है’|
‘म..मैं समझी न...नहीं सर’|


‘मैं ही मिडनाईट रिपर हूँ’|


अनुकृति की कनपट्टीयाँ सनसना रही थीं, देवऋषि के चेहरे के भाव और उसकी आखें बता रही थीं कि ना वो झूठ बोल रहा था और ना ही मज़ाक कर रहा था|

‘वो पाँचों खून मैंने ही किए हैं अनुकृति| क्योंकि शैतान से किए फॉस्टियन बार्गेन के मुताबिक़ मुझे उसे अपनी हर सफल किताब के बदले एक जान की बली देनी थी| मेरी छठी किताब को भी बेस्ट सेलर बना कर शैतान ने तो अपने हिस्से का सौदा पूरा कर दिया लेकिन अपनी छठी किताब की सफलता के बाद मैंने अपने हिस्से का सौदा पूरा नहीं किया है| शैतान को एक लड़की की जान की क़िस्त नहीं दी है मैंने’

‘स..सर मुझे यह मज़ाक बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा है’|

हहाहाहा...देवऋषि पागलों की तरह हँसता चला गया, अनुकृति उसे देख कर आवाक थी| वो समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे|

हँसते-हँसते एका-एक देवऋषि शांत हो गया, वो अनुकृति को घूर रहा था|

‘अब ये चूहे-बिल्ली का खेल बंद करते हैं अनुकृति, मैं तुम्हारी असलियत जानता हूँ| मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो’|

‘म...मिस्टर देवऋषि, म...मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि आप क्या कह रहे हैं| आपको आराम की ज़रुरत हैऔर एक काबिल साइकोथेरेपिस्ट की’| अनुकृति ने अपनी आवाज़ और चेहरे के भावों को संयमित रखने का भरसक प्रयास करते हुए कहा|

तुम अपनी इस बनावटी मासूमियत से मुझे धोखा नहीं दे सकती, मैंने तुम्हे तभी पहचान लिया था जब तुम उस दरवाज़े से अंदर आई थी’|

‘मैं क्यों आपको धोखा दूँगी? मैं तो आपको पर्सनली जानती भी नहीं हूँ, आज हम पहली बार मिले हैं फिर आपने मुझे कैसे पहचान लिया’? इस बार अनुकृति की आवाज़ में गुस्से और खिजियाहत का पुट था|

‘इन हाथों ने पांच जाने लीं हैं अनुकृति मौत को मैं जिंदगी से ज्यादा बेहतर ढंग से पहचानता हूँ|’ देवऋषि अपने दोनों हाथ उठाकर चेहरे के सामने लाते हुए बोला|

दोनों कुछ पल तक एक-दूसरे को घूरते रहे|

अनुकृति अब अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पा रही थी| ‘मिस्टर देवऋषि, अभी तक तो मैं आपकी उम्र और पोजीशन का लिहाज़ कर रही थी, लेकिन नाउ इट्स एनफ!! आप पूरी तरह पागल हैं और आपको अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए’!!

अनुकृति अपनी चेयर से उठी और अपना बैग और बाकी सामान लेकर जाने के लिए मुड़ गई| उसने पूरी हिम्मत जुटा ली थी कि चाहे जो हो जाए अब वो एक पल भी वहां और नहीं रुकेगी|

‘हाँ-हाँ पागल हो गया हूँ मैं!!...अपनी मौत के बारे में सोच-सोच के हर पल मर रहा हूँ मैं!!’ देवऋषि किसी मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति की भाँती चिल्लाया|

‘पांच जाने लेने के बाद मुझे ये एहसास हुआ कि जिंदगी की कीमत सफलता और असफलता से कहीं ऊपर होती है| अपनी काबिलियत पर खुद ही शक कर बैठा था मैं, तभी तो मेहनत के बजाए शॉर्टकट चुन लिया’|
देवऋषि खुद में ही जोर-जोर से बडबडा रहा था, ना चाहते हुए भी अनुकृति के कदम थम गए|
‘मेरी अंतरात्मा मुझे रात-दिन धिक्कार रही थी, अपनी छठी नॉवेल की कामयाबी के बाद भी उसकी कीमत चुकाने की कूवत अब नहीं थी मुझमे’|
‘मैंने फैसला कर लिया कि मेरी कामयाबी का खाम्याज़ा कोई और निर्दोष अपनी जान से नहीं चुकाएगी| मैंने फैसला कर लिया कि अब और कोई जान नहीं लूँगा मैं| मैंने शैतान से की हुई अपनी फॉस्टियन बार्गेन रद्द कर दी’|
ना जाने किस भाव से प्रेरित होकर अनुकृति पुनः अपने स्थान पर वापस आकर बैठ गई|
‘लेकिन शैतान अपना सौदा रद्द नहीं करता| उसने अपने हिस्से का सौदा पूरा किया था, अब उसे एक जान तो चाहिए ही थी| अगर मैं किसी की जान नहीं ले रहा था तो शैतान के पास सिर्फ एक ही रास्ता था कि वो मेरी जान ले ले’|
एकाएक देवऋषि का चेहरा यूं सफ़ेद हो गया जैसे उसके जिस्म से सारा खून निचुड़ गया हो|
‘लेकिन शैतान इतनी आसानी से मेरी जान ले लेता तो फिर वो शैतान काहे का| मेरी जान लेने से पहले, मेरी जिंदगी का हर एक पल मौत की आहट से डर कर तिल-तिल करके मरते हुए बीते यही चाहत थी शैतान की’|

‘पिछले एक महीने से मैं हर पल इस डर में मरा हूँ कि मेरी मौत कब और किस रूप में आएगी| आज तुम्हे देखकर ही मैं समझ गया था कि शैतान ने मेरी मौत को ये हसीन रूप देकर भेजा है| शैतान ने तुम्हे मुझे मारने भेजा है| बोलो! बोलो ये सच है ना!! तुम मेरी जान लेने आई हो’!
देवऋषि पूरी तरह से किसी मानसिक विक्षिप्त जैसे बडबडा रहा था|
अनुकृति को उसे इस दशा में देखकर उससे सहानभूति होने लगी|
‘आपको वाकई एक अच्छे साइकोथेरेपिस्ट की ज़रूरत है मिस्टर देवऋषि| आप अपनी कल्पना और यथार्थ में फर्क नहीं कर पा रहे| आप अपनी नॉवेल की कहानी को जी रहे हैं, वास्तविक जिंदगी को नहीं| मैं नहीं जानती कि आपने वाकई ये पाँचों कत्ल किए हैं या नहीं, या फिर आप इस मिडनाईट रिपर के किरदार से इस हद तक प्रभावित हुए कि आपने खुद को ही मिडनाईट रिपर समझ लिया और इस समझ के इर्द-गिर्द ही फॉस्टियन बार्गेन की कहानी गढ़ ली जिसे आप सच मान बैठे हैं, लेकिन यह बात निश्चित है कि आप उस कगार पर ज़रूर पहुँच गए हैं जहां आप किसी की भी जान ले सकती हैं...खुद अपनी भी’|

‘भगवान् के लिए मेरे साथ और खेल मत खेलो, अब और बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है मुझमे| मेरी जान ही लेना चाहती हो न, तो एक बार में ले लो| खत्म कर दो मुझे....मार डालो मुझे’!! देवऋषि अनुकृति के आगे गिडगिडा रहा था|
बताओ कैसे मारने वाली हो? बताओ कैसे लेने वाली हो मेरी जान?
मिस्टर देवऋषि!! कण्ट्रोल योरसेल्फ!!
‘एनफ ऑफ़ दिस नॉनसेंस!! टेल मी....कैसे लोगी मेरी जान’?
देवऋषि पागलपन में चिल्ला रहा था| उसकी साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं, उसका पूरा जिस्म पसीने से यूं भीगा हुआ था जैसे उसके ऊपर किसी ने घड़ों पानी डाल दिया हो| उसके कनपट्टीयों की नसें ऐसे उभर आई थीं जैसे गुब्बारे की तरह फूल कर फट पड़ने को आतुर हों| उसका चेहरा भय और आवेश से बुरी तरह विकृत हो रहा था, जैसे किसी भी पल डर से उसे दिल का दौरा पड़ सकता हो|
देवऋषि और अनुकृति दोनों एकटक एकदूसरे को घूर रहे थे, कुछ पलों के लिए वहां बिलकुल सन्नाटा था| उस सन्नाटे को सिर्फ देवऋषि की धौंकनी की तरह चलती, उखड़ी हुई साँसें भंग कर रही थीं|
देवऋषि अनुकृति के चेहरे में अपनी मौत तलाशने की कोशिश कर रहा था|
एक हाथ आहिस्ता से देवऋषि के कंधे पर आकर ठहरा|
‘सर आर यू ऑलराईट’?
अनुकृति ने नज़रें ऊपर उठाईं, वेटर उन दोनों का आर्डर लेकर आया था| वो देवऋषि की सीट के ठीक पीछे खड़ा था और उसका हाथ देवऋषि के कंधे पर था|
‘सर’!
‘सर आप ठीक तो हैं’??
वेटर ने एक-दो बार देवऋषि से और पूछा, देवऋषि की तरफ से कोई उत्तर नहीं आया| ना ही उसके शरीर में कोई हरकत हो रही थी|
वेटर ने देवऋषि का कंधा आहिस्ता से हिलाया, देवऋषि की गर्दन और सर एक तरफ लटक कर झूल गए|
‘ओ माई गॉड’!!
अनुकृति आगे झुकी, उसने अपने दाहिने हाथ की तर्जनी देवऋषि के नथुनों के नीचे लगाईं’|
‘सांस नहीं चल रही, ही इज़ डेड’|
देवऋषि का शॉक और एक्सट्रीम मेंटल प्रेशर से हार्ट फेल हो गया था|
अनुकृति ने आवाक नेत्रों से वेटर को देखा, वेटर भी उसे ही देख रहा था|
‘आखिरकार शैतान ने अपने हिस्से का सौदा पूरा कर ही लिया’| अनुकृति देवऋषि के मृत शरीर को देखकर खुद में ही बडबडाई|
एकबार फिर अनुकृति और वेटर की नज़रें एकदूसरे से मिलीं, दोनों के चेहरों पर एक हल्की अर्थपूर्ण मुस्कान थी| रेस्टोरेंट की दिवार पर लगी वॉल क्लॉक ठीक आधी रात का घंटा बजा रही थी|

समाप्त|


Raina@Midnight-Conclusion

Prologue इशानी ने अपने जीवन में खुशियों का मुंह बहुत कम ही देखा था | जिस समय उसके पिता की मृत्यु हुई इशानी महज पांच साल की थी | पिता...