घडी के कांटे रात के ठीक बारह बजा रहे थे|
‘रैना! रैना!!’
विकास बेतहाशा चिल्ला रहा था लेकिन उसकी आवाज़ जैसे
किसी पत्थर से टकराई|
रैना को देखकर उसके मुंह से सिसकारी निकल गई|
उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था, आखें सूजी हुई और जैसे शून्य
में टिकी हुई थीं| माथे पर चाकू से गोद कर डायन लिखा हुआ था|
रैना के माथे से
बहता खून आखों के पोर से निकलते आसुओं के साथ गाल पर ढलक रहा था|
विकास के तिरपन काँप गए|
रैना अब रैना नहीं रह गई थी, वो रानी बन चुकी थी| जिन परालौकिक
शक्तियों के अस्तित्व को वो नकारती आ रही थी वो अब उसके अस्तित्व पर हावी हो रही
थीं|

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