Date: 3rd July 2017
Time: 8:00 p.m.
बारिश की झुर्मुराहट धीरे-धीरे तेज़ हो रही थी| रैना ने विंड स्क्रीन ग्लास पर
बारिश की बूंदों से बनती-बिगड़ती रेखाओं के पार देखने की कोशिश की, हाई-वे पर चारों तरफ अँधेरे और बारिश के शोर
के अलावा कुछ नहीं था|
प्रत्युष ने जिस ट्रेवलिंग एजेंसी से बैंगलोर की फ्लाइट टिकट्स बुक
की थी उसी से मुन्नार जाने और वहां घूमने के लिए एस.यू.वी. भी बुक कर ली थी| शशांक के ड्राइविंग स्किल्स सबसे
अच्छे होने की वजह से फिलहाल वो गाड़ी चला रहा था, विकास उसके
बगल की सीट पर था| रैना और प्रत्युष पीछे बैठे हुए थे|
उन लोगों को अविनाशी और पल्लादम होते हुए शाम पांच बजे तक मुन्नार
पहुँच जाना था लेकिन खराब मौसम के कारण उनके ग्यारह बजे से पहले मुन्नार पहुँच
पाने की कोई संभावना नहीं बन रही थी|
प्राकृतिक छटाओं और बारिश की हल्की फुहारों से झिलमिलाते रास्तों बीच
दिन का सफर सुहाना बीता था| इतना
सुहाना कि कुछ समय के लिए रैना वाकई सबकुछ भूल गई थी| पिछले
दिनों घटी घटनाएं, हिमांशु का उसपर अटैक करना...और इशानी|
रैना ने अपनी नज़रें सडक से हटा लीं, उसके माथे की सिलवटें लौट आई थीं|
'विकास! सिगरेट देना'|
विकास ने यूं बिहेव किया जैसे उसे रैना की आवाज़ सुनाई ही ना दी हो|
'विकास'!!
रैना जानती थी कि विकास उसकी आवाज़ सुन रहा है लेकिन जानबूझकर जवाब
नहीं दे रहा|
रैना आगे झुकी और विकास के सर पर एक ज़ोरदार तड़ी जड़ दी|
'आह'!
'अब सुनाई देने लग गया तुझे! सिगरेट निकाल अब'!
विकास ने पलट कर प्रत्युष को देखा| रैना समझ गई कि प्रत्युष ने ही विकास को रैना को
सिगरेट देने से मना किया है| आग उगलती नज़रों से रैना
प्रत्युष को घूर रही थी, प्रत्युष को इस बात का पूरा एहसास
था लेकिन वो वस्तुस्थिति से अनजान बना हुआ अपने मोबाइल की स्क्रीन निहार रहा था|
'स्टॉप पेट्रोनाईजिंग मी प्रत्युष'|
'आय एम नॉट'|
'यस यू आर'|
'नो आय एम नॉट'!!
'भाई आखरी इंग्लिश पिक्चर जो मैंने देखी थी उसमे ये यस
यू आर-नो आई एम नॉट के बाद बन्दा-बंदी किस्सी-विस्सी करने लग गए थे| ए भाई प्रत्युष, तू थोडा दूर सरक के बैठ ना भाई'!!
रियर-व्यू मिरर से पीछे की सीट पर नज़रें गड़ाए शशांक बोला|
'तू रियर व्यू की जगह फ्रंट व्यू पर फोकस कर साले,
वर्ना आगे से कोई ट्रक आकर किस्सी-विस्सी करेगी तुझे'!! विकास झुंझला कर बोला|
प्रत्युष बिना कुछ कहे रैना से थोडा परे सरक कर अपने साइड की विंड
स्क्रीन से बाहर झाँकने लगा|
शशांक अभी भी रियर व्यू मिरर से पीछे झाँक रहा था, उसकी नज़रें रैना से मिली| रैना का चेहरा भावहीन था, उसने अपने दाहिने हाथ की
मिडिल फिंगर ऊपर करके शशांक की ओर लहराई, शशांक हडबडा कर
फ़ौरन आगे देखने लगा| विकास भी पीछे रैना को ही देख रहा था,
रैना ने वैसे ही भावहीन नेत्रों से उसे देखा|
'तुझे भी चाहिए'?
विकास ने गिव-अप करने के अंदाज़ में सर झटका और सिगरेट का पैकेट निकाल
कर पीछे रैना की ओर बढ़ा दिया|
रैना ने छटपटाते हुए एक सिगरेट निकाली और होठों से लगा कर सुलगाई| एक गहरा कश खींचते ही उसके चेहरे
पर ऐसे भाव आए जैसे उसकी रुकी हुई सांस दोबारा चलने लगी हो|
रैना ने अपने साइड की विंड स्क्रीन नीचे की, प्राकृतिक ताज़ी हवा के झोंके और
बारिश की फुहार उसके चेहरे से टकराईं| रैना के नथुनों से
निकलता धुँआ जैसे उसके माथे की शिकन के साथ हवा के उन थपेड़ों और बारिश की बूंदों
में विलीन हुआ जा रहा था| उसने विंड स्क्रीन थोड़ी और नीचे कर
ली और अपना चेहरा बाहर निकाल लिया| उसके खुले बाल तेज़ हवा के
साथ समुन्द्र में उठती लहरों की तरह लहरा रहे थे, चेहरे पर
आती लटों को हटाने की उसने ज़हमत नहीं उठाई|
चेहरा बाहर निकालने पर अँधेरे में भी रोड के दोनों तरफ गुजरते पेड़ों
का समूह उसे नजर आ रहा था| आगे
रास्ता घुमावदार था, किसी जायंट रोलर कोस्टर राइड की तरह
उनकी गाड़ी आड़े-तिरछे रास्तों से लहराते हुए गुजर रही थी| पेड़ों
के समूह अँधेरे और बारिश में अलग-अलग आकृतियाँ बना रहे थे जो तेज़ी से आगे बढती
गाड़ी की रफ़्तार के साथ बनती और बिगडती प्रतीत हो रही थीं|
शशांक बहुत ही सावधानीपूर्वक किसी दक्ष ड्राईवर की तरह हर घुमावदार
मोड़ से गाड़ी निकाल रहा था| आगे एक
अंधे मोड़ पर शशांक ने गाड़ी घुमाई| रैना चेहरा बाहर निकाले
हुए अपनी आखें बंद किए थी और चेहरे पर पड़ती बारिश की बूंदों से खुद को सराबोर करने
में लीन थी| तभी अचानक उसके चेहरे से कुछ सरसराते हुए गुज़रा|
उसने चौंक कर आखें खोली| हवा, बारिश और गुजरते पेड़ों के अलावा वहां कुछ ना था| क्या
सडक किनारे किसी पेड़ की बारिश से झुकी टहनियों के पत्ते रैना के चेहरे से टकराए थे?
नहीं, वो स्पर्श पत्तों का नहीं था| वो स्पर्श कपड़े का था, किसी झीने कपड़े का और उसमे
बसी एक ख़ास लेडीज परफ्यूम की खुशबू...जो इशानी लगाया करती थी|
रैना ने चौंक कर अँधेरे में चारों तरफ देखा| पेड़ों के अलग-अलग आकृतियाँ बनाते
समूहों के अलावा उसे कुछ ना दिखाई दिया| हडबडा कर उसने अपना
चेहरा अंदर किया| प्रत्युष चुपचाप उससे परे अपने साइड की
विंड स्क्रीन से बाहर देख रहा था| शशांक गाड़ी चलाने में
तल्लीन था और विकास रह-रह के ऊंघ रहा था| सबकुछ नॉर्मल था|
रैना ने अपनी उखड़ती साँसों को नियंत्रित करने की कोशिश की| उसने सिगरेट के दो-तीन गहरे कश खींचे| उसके चेहरे की
त्वचा पर अब भी उस झीने कपड़े के स्पर्श का एहसास था, उसके
नथुनों में अब भी उस परफ्यूम की गंध थी| रैना विंड स्क्रीन
से ठीक सामने देख रही थी, उसे पूरा यकीन था कि गुजरते पेड़ों
के बीच बनती आकृतियों में कहीं छुपी हुई इशानी उसे ज़रूर नजर आएगी| उसका दिल पसलियों पर ज़ोरों से चोट कर रहा था, जाने
कितनी ही देर तक वो उन गुजरते हुए पेड़ों को देखती रही लेकिन इशानी कहीं नजर ना आई|
रैना ने आखें बंद कर के सर हेड रेस्ट से टिका लिया| उसे अब हल्की ठंड लग रही थी लेकिन
ऐसा मौसम की वजह से भी हो सकता था| नहीं, ये ठंड बाह्य नहीं थी, उसे अपनी रीढ़ में सिहरन महसूस
हो रही थी| ऐसा लग रहा था जैसे उसकी रगों में दौड़ता खून जम
रहा है, धमनियां शिथिल पड़ रही हैं| रैना
को इशानी की उपस्थिति का एहसास हो रहा था| हाँ, इशानी जब भी आस-पास होती थी रैना को उसका पूर्वाभास हो जाता था| रैना ने झटके से आखें खोली, उसे यकीन था कि इशानी
उसे बैकसीट पर अपनी बगल में बैठी दिखेगी लेकिन इशानी वहां नहीं थी| गाड़ी में सबकुछ पूर्ववत था, प्रत्युष खिड़की से बाहर
देख रहा था, विकास ऊंघ रहा था और शशांक ड्राइव करने में बिजी
था|
रैना ने सिगरेट का आखरी कश खींचा| सिगरेट बट उसने बाहर फेंक दिया| एक बार फिर खुली हुई विंड स्क्रीन से उसने अपना चेहरा बाहर निकाला|
उसे यकीन था कि इशानी उसे कहीं ना कहीं ज़रूर दिखाई देगा| लेकिन अब भी बाहर द्रुत गति से गुजरते ऊंचे-नीचे पेड़ों की आकृतियों और ऊपर
से गिरती और पल प्रति पल तेज़ होती बारिश की फुहार के अलावा कुछ ना था|
'ऊपर'!!
रैना ने चौंक कर अपना चेहरा ऊपर एस.यू.वी. की रूफ पर घुमाया| ठीक उसी समय शशांक ने एक तीखा मोड़
काटा, सामने से आते एक ट्रक की हेडलाइट की तीव्र रौशनी में
एस.यू.वी. सराबोर हो गई| उस रौशनी में एस.यू.वी. के रूफटॉप
पर पालथी मारे बैठी इशानी साफ़ नज़र आई| उसके जिस्म पर
वही झीना कपडा था, बारिश से सराबोर उसके बालों की लटें
सफ़ेद पड़े हुए चेहरे को इस तरह ढके हुए थीं कि सिर्फ उसकी दो भावहीन आखें नजर आ रही
थीं| उसकी आखों की स्याह पुतलियाँ फैल कर जैसे पूरी आखों पर
छा गई थीं और उन स्याह आखों में रैना को अपनी सूरत साफ़ नजर आ रही थी|
नहीं, ये उसका
वहम नहीं हो सकता था| इशानी वाकई थी वहां पर| रैना चीखना चाहती थी, अपने साथियों को इशानी की
उपस्थिति के बारे में बताना चाहती थी लेकिन उसके गले से चाह कर भी आवाज़ नहीं निकली|
उसकी नज़रें यूं इशानी के चेहरे पर जमी हुई थीं कि वो चाह कर भी अपनी
नज़रें उससे हटा नहीं पा रही थी| इसी लिए शायद उसे सामने से
आती ट्रक दिखाई नहीं दी जोकि रास्ता संकरा होने की वजह से बिलकुल उनकी एस.यू.वी.
के बगल से लग कर गुजरने वाली थी| रास्ते के दोनों तरफ कच्ची
ढलान होने के कारण शशांक गाड़ी को साइड नहीं कर सकता था,
उस रास्ते पर सिर्फ इतनी जगह थी कि दोनों गाडियां अगल-बगल से गुजर
जाएं लेकिन रैना का पिछली सीट से बाहर निकला सर यदि इनके बीच आता तो दोनों तेज़
रफ्तार गाड़ियों के बीच उसका पिसना तय था|
शशांक, विकास और
प्रत्युष रैना को निरंतर आवाज़ दे रहे थे लेकिन रैना को जैसे उनकी चिल्लाहटें सुनाई
ही नहीं दे रही थीं| ट्रक की हेडलाइट की तीखी रौशनी सीधे
रैना के गाड़ी से बाहर निकले चेहरे पर पड़ रही थी| प्रत्युष
बिजली की गति से लपका और रैना की कमर में हाथ डाल कर उसे गाड़ी के अंदर खींचने की
कोशिश करने लगा लेकिन उसी समय नीचे हुई विंड स्क्रीन ऊपर हुई और रैना की गर्दन
उसके बीच फंस गई| अगले ही क्षण ट्रक की ज़ोरदार टक्कर रैना के
सर के परखच्चे उड़ा देने वाली थी लेकिन सैकेंड के सौंवे हिस्से में प्रत्युष ने
विंड स्क्रीन का पुश बटन दबाया और रैना को अंदर खींच लिया| अपने
चेहरे को लगभग छू कर गुजरते ट्रक का वेग रैना ने साफ़ महसूस किया, मौत वाकई उसे छू कर गुजरी थी|
रैना का पूरा चेहरा बारिश के पानी और पसीने से सराबोर था| सासें धौंकनी की तरह चल रही थीं|
'अबे विकास ये कौन सा माल फुंकवा दिया लड़की को'|
शशांक हाँफते हुए बोला, उसका पूरा जिस्म भी
पसीने से सराबोर था| ये शशांक की ही सूझबूझ और ड्राइविंग में
दक्षता का नतीजा था कि उनकी कुचली हुई लाशें कबाड़ा हुई गाड़ी में बीच सडक पर फंसी
हुई नहीं थीं|
'पागल हो गई हो क्या!! कर क्या रही थी तुम'!! प्रत्युष चिल्लाया| रैना ने उसकी बात का कोई जवाब ना
दिया| वो पथराई हुई आखों से शून्य में निहार रही थी|
'शशांक आगे गाड़ी रोक'!! प्रत्युष आदेशात्मक
लहज़े में बोल।
चाय बागान के पास शशांक ने गाड़ी रोकी| जिस गेस्ट हाउस में जिस गेस्ट हाउस में उन लोगों की
रूम बुकिंग्स थीं वो पास ही था| यहाँ पहुँचते-पहुँचते उन्हें
रात के लगभग साढ़े ग्यारह बज चुके थे| बारिश रुकी तो नहीं थी
फिर भी काफी हद तक हल्की हो चुकी थी|
शशांक ड्राइव करते-करते थक चुका था इसलिए विकास ने ड्राइविंग सीट
संभाली|
इस समय तक रैना के मूड स्विंग्स काफी ज्यादा बढ़ चुके थे| वो एक के बाद एक सिगरेट पी रही थी
और मना करने पर बुरी तरह बिफर रही थी| प्रत्युष के उसे
समझाने की हर कोशिश विफल हुई।
'दो मिनट का ब्रेक लेते हैं'| प्रत्युष
बाहर निकलते हुए बोला|
रैना पहले ही गाड़ी से बाहर निकल चुकी थी| उसकी नज़रें चाय बागान की तरफ गड़ी
हुई थीं|
शशांक बाहर निकलने के बजाय पिछली सीट पर ढेर हो गया|
'क्या हुआ रैना, तुम्हे क्या
परेशान कर रहा है'?
'बताउंगी तो तुम यकीन नहीं करोगे'|
'ट्राय करके देखो'|
'रहने दो| मुझे खुद जिस बात पर
यकीन नहीं है उसपर तुम्हे कैसे यकीन करवाऊं'|
रैना स्थिर कदमों से चलती हुई सडक के किनारे की तरफ बढ़ी| सडक के दोनों तरफ चाय के बागान थे|
रैना की नज़रें एक ख़ास जगह टिकी हुई थीं|
चाय बागान के बीचों-बीच, वहां कोई खड़ा हुआ था| अँधेरे
में उसे सिर्फ एक आकृति नजर आ रही थी|
'रैना! रैना कहाँ जा रही हो'! प्रत्युष ने पीछे से आवाज़ दी, लेकिन रैना उसकी आवाज़ नहीं सुन रही थी| वो बागान की तरफ बढ़ गई| बागान के बीचोंबीच खड़ी आकृति किसी लडकी की थी|
रैना को यकीन था कि वो इशानी है| आज वो इशानी को नज़रंदाज़ करके निकलना नहीं चाहती थी|
आज वो अपने डर का सामना करना चाहती थी, खुद को
यकीन दिलाना चाहती कि इशानी का नज़र आना सिर्फ उसके दिमाग का भ्रम है, लोग मर कर वापस नहीं आते| और खुद को यह यकीन दिलाने
के लिए उसका अपने भ्रम से रूबरू होना आवश्यक था|
रैना चाय बागान के बीचों-बीच पहुँच गई| अब उसे पीछे से आती प्रत्युष की आवाज़ भी सुनाई नहीं
दे रही थी, ना ही उसने पीछे मुड़कर देखने की कोशिश की|
उसकी नज़रें अपने सामने टिकी हुई थीं| सामने
लड़की का साया अब भी अँधेरे में था| रैना उसका चेहरा नहीं देख
पा रही थी|
लड़की का साया अपनी जगह से बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने बागान
के बीच में स्केयर-क्रो खड़ा कर दिया हो| रैना सावधानीपूर्वक
उसके कुछ और पास गई| अब दोनों के बीच सिर्फ दो हाथ का फासला
था, अभी भी उस आकृति का चेहरा रैना को नजर नहीं आ रहा था|
एकाएक आसमान में ज़ोरदार घन गर्जना हुई|
उस गर्जना के साथ ही ऐसा लगा जैसे किसी ने वहां हज़ार वॉट के सैकड़ों
बल्ब जला दिए हों| कड़कती
बिजली कि उस क्षणिक रौशनी में रैना को अपने सामने खड़ी आकृति का चेहरा साफ़ नजर आया|
रैना को ऐसा लगा जैसे सामने किसी ने आईना रख दिया हो| वो आकृति कोई और नहीं बल्कि वो
खुद थी| रैना को अपनी आखों पर यकीन नहीं हो रहा था| रैना खुद अपने आप को अपनी नज़रों के सामने खड़ा देख रही थी, पथराई नज़रों से खुद को ही घूरती हुई|
नहीं, ये सच
नहीं हो सकता था! उसकी आखें और उसका दिमाग उससे खेल खेल रहे थे|
'रैना, यहाँ क्या कर रही हो'?
प्रत्युष की आवाज़ रैना को अपने ठीक पीछे सुनाई दी| रैना चौंक कर पलटी, वातावरण में फिर से अन्धकार छा चुका था| प्रत्युष
रैना के पीछे-पीछे बागान के बीच तक आ गया था, विकास और शशांक
भी उससे कुछ ही पीछे थे|
'क्या हुआ रैना'? प्रत्युष ने
आहिस्ता से रैना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा|
रैना मुंह से कुछ ना बोली, पीछे मुड़कर उसने उस तरफ इशारा किया जहां उसने अपनी
आकृति देखी थी| तीनो लड़कों की निगाह उस तरफ उठी जिधर रैना
इशारा कर रही थी|
'वो कौन है? यहाँ अँधेरे में
क्या कर रही है'? प्रत्युष बोला|
रैना आश्चर्यचकित थी, तीनो लडकों को भी वो आकृति नजर आ रही थी|
विकास ने अपने मोबाइल की टॉर्च लाइट जलाई और उस लडकी के चेहरे की तरफ
की|
'कौन हो तुम'?
रैना ने टॉर्च लाइट में एकबार फिर उस लडकी का चेहरा देखा| नहीं, इस
बार उस लडकी की जगह रैना को अपना चेहरा नजर नहीं आया| हालांकि
उसके कद-काठी और चेहरे-मोहरे में रैना से काफी समानता थी, शायद
इसीलिए रैना एक पल के लिए देखने पर कंफ्यूज हो गई कि वो खुद को ही देख रही है|
'ये कुछ बोल क्यों नहीं रही? लगता
है ये किसी तरह के शॉक में है'| शशांक सशंकित भाव से बोला|
वो चारों उस लड़की की तरफ ही देख रहे थे, उसका चेहरा और आखें बिलकुल पथराई
हुई थीं| मोबाइल फ़्लैशलाइट की आखों में सीधी पड़ रही रौशनी से
भी उसकी आखें पलक नहीं झपक रही थीं|
'नहीं, ये शॉक में नहीं है|
ये स्लीप वॉकिंग कर रही है'| रैना उस लड़की की
पथराई हुई आखों में आखें डालते हुए बोली|
ठीक उसी समय आसमान में एक बार फिर ज़ोरों की घन गर्जना हुई, उसी समय रैना ने उस लड़की के कंधे
पर अपना हाथ रखा|
लड़की के शरीर ने जोर से झुरझुरी ली| उसकी हल्की चलती सासें तेज़ हो गईं, पलकें तेज़ी से फड़क रही थीं और विस्फरित नेत्र अपने आस-पास के माहौल को
समझने की कोशिश कर रहे थे| ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी बुरे
सपने से जागी हो|
'रिलैक्स! वी वोंट हर्ट यू| वी
आर हियर टू हेल्प'| रैना लड़की को समझाते हुए बोली|
'कौन हो तुम? यहाँ कैसे आ गई'?
'मेरा नाम रानी है, रानी दर्पणा|
य...यहाँ से कुछ ही दूर पर मेरी कॉटेज है'|
'तुम यहाँ इतनी रात गए इस बारिश में कर क्या रही थी'?
'म...मुझे सॉम्नैमब्यूलिजम है...नींद में चलने की
बिमारी| शायद नींद में चलते-चलते मैं यहाँ तक आ गई'|
'हम लोग आगे गोल्डन डियर लॉज तक जा रहे हैं, तुम हमारे साथ चल सकती हो'| प्रत्युष बोला|
'थैंक्स'| लडकी के चेहरे पर फीकी
सी मुस्कान उभरी|
रैना और प्रत्युष के साथ रानी पिछली सीट पर सवार हुई, विकास ने ड्राइविंग सीट संभाली और
शशांक उसके बगल में बैठ गया|
जिस समय वे गोल्डन डियर लॉज पहुंचे उस समय रात के लगभग बारह बज चुके
थे|
'तुम्हारी कॉटेज यहाँ से कितनी दूर है रानी'? विकास ने लॉज के गेट पर गाड़ी रोकते हुए पूछा|
'बस दस मिनट का रास्ता है, मैं यहाँ से पैदल चली जाऊँगी| थैंक्स गाइस|'
'अरे हमलोग छोड़ के आते हैं ना! शशांक, तू लॉज में चेक-इन कर'| प्रत्युष ने शशांक से कहा|
शशांक नीचे उतर कर लॉज के अंदर बढ़ गया|
'यू रियली डोंट नीड टू डू दिस'| रानी
कृतज्ञ भाव से बोली|
'दैट्स पर्फेक्ट्ली ऑलराईट|
जबतक शशांक चेक-इन फॉर्मैलिटीज़ पूरी करेगा हमलोग तुम्हे ड्राप करके
वापस भी आ चुके होंगे'| प्रत्युष रानी से बोल ही रहा था कि
उन्हें मुंह लटकाए और भुनभुनाते हुए वापस लौटता शशांक दिखाई दिया|
'क्या हुआ बे'?
'हमारी बुकिंग कैंसिल हो गई| हमारे
रूम्स इन्होने दूसरे गेस्ट्स को अलॉट कर दिए हैं'|
'व्हाट! ऐसा कैसे कर सकते हैं ये लोग'?
'मैनेजर का कहना है कि हमारी बुकिंग शाम 6 बजे की है, लेकिन हमने जब नौ बजे तक भी चेक-इन नहीं
किया तो इन्हें रूम्स दूसरे गेस्ट्स को देने पड़े'|
'तो हमें दूसरे रूम्स अलॉट करें'|
'यही तो प्रॉब्लम है, इनके पास
कोई भी रूम खाली नहीं है'|
'ये क्या बेहूदा मज़ाक है! हमलोग आधी रात को कहाँ
जाएंगे'| रैना गुस्से में बिफरी|
'इफ यू गाइस डोंट माइंड, आपलोग
मेरे साथ मेरे कॉटेज में रुक सकते हैं'| रानी झिझकते हुए
बोली|
'वी डोंट वॉंट टू कॉज यू एनी ट्रबल'| प्रत्युष उलझन भरे स्वर में बोला|
'ट्रबल की कोई बात नहीं है| कॉटेज
काफी बड़ा है और मैं वहां अकेली ही रहती हूँ| तुमलोग रहोगे तो
कम से कम स्लीपवॉकिंग करते हुए दूर निकल जाने का डर नहीं रहेगा'| इस बार रानी सहज भाव से मुस्कुराते हुए बोली|
तीनो लड़कों ने रैना की तरफ देखा| रैना ने सहमती में अपना सर हिलाया| विकास ने गाड़ी लॉज से आगे रानी के कॉटेज की तरफ बढ़ा दी|
。。。
'तुम रैना प्रधान हो! रैना एट मिडनाईट वाली! इसीलिए
तुम्हारा चेहरा इतना जाना-पहचाना लग रहा था'| रानी ने रैना
की तरफ गौर से देखते हुए कहा| रैना की तरफ से जवाब में सिर्फ
एक फीकी सी औपचारिक मुस्कान दी|
'वैसे तुम्हे आईना देखकर भी ऐसी फीलिंग आ सकती है कि
तुमने रैना को कहीं देखा है| तुमदोनो बिलकुल कुम्भ में बिछड़ी
जुड़वाँ बहने लगती हो'| प्रत्युष ने अगल-बगल बैठी रानी और
रैना की तरफ देखते हुए कहा|
'भाई अपनी प्रॉब्लम सॉर्टेड है, अब
रैना को लेकर हमें एक-दूसरे से कम्पटीशन नहीं करना पड़ेगा...उसकी डूप्लगैंगर है
हमारे पास| तू इस रानी को अपनी रानी बनाने के पीछे लग मैं
रैना पर कंसन्ट्रेट करता हूँ'| शशांक अपने बगल की कुर्सी पर
बैठे विकास के कान में फुसफुसाया|
'क्यों बे! मैं रानी के पीछे क्यों जाऊं? तू जा रानी के पीछे'| विकास वापस शशांक के कान में
फुसफुसाते हुए बोला|
दोनों एक क्षण एक-दूसरे को प्रतिद्वंदियों की भाँती देखते रहे|
'ठीक है, आय डोंट माइंड'|
शशांक कंधे उचकाते हुए बोला और लगभग एक ही बाईट में आधा हॉटडॉग उसने
अपने मुंह में भर लिया|
रात के पौने एक बज रहे थे| वो लोग उस समय रानी के कॉटेज में थे|
'आय एम सॉरी गाइस, आय वॉजन्ट
एक्सपेक्टिंग एनी कंपनी इसलिए डिनर काम चलाऊ ही है'|
'तुम मज़ाक कर रही हो! तुम यहाँ अकेलें रहती हो और यहाँ
इतना खाना है कि पूरी बरात खा सकती है'| विकास ने टेबल की
तरफ देखते हुए कहा|
'और पूरी बरात का खाना हमारा बाराती अकेले खा जाएगा अगर
हमलोग यहाँ से नहीं उठे'| विकास शशांक को घूरते हुए बोला,
शशांक फिलहाल चिकन विंग्स मुंह में
ठूसने में व्यस्त था|
'तुमने तो खाने को छुआ भी नहीं'| रानी ने रैना की प्लेट देखते हुए कहा|
'सफर की थकान से भूख मर गई है'| रैना
के टोन में बेरुखी थी जिसे रानी के साथ-साथ प्रत्युष ने भी साफ़ महसूस किया|
डाइनिंग टेबल पर कुछ पल सन्नाटा छाया रहा| विकास और शशांक ने मुंह बंद कर के
खाने पर कंसन्ट्रेट करने में ही बेहतरी समझी|
'वैसे इतनी बड़ी कॉटेज में तुम अकेले क्यों रहती हो|
तुम्हारी फॅमिली...?'प्रत्युष ने बात बदल कर
स्थिति संभालने की कोशिश की|
'ये मेरी पुश्तैनी कॉटेज है| मैं
दस साल की थी जब माँ-पापा की डेथ एक एक्सीडेंट में हो गई, उसके
बाद मैं यहाँ अपनी नानी के साथ रहती थी| कुछ महीने पहले नानी
भी चल बसीं, उनके बाद इस प्रॉपर्टी की इकलौती वारिस मैं हूँ|
मैं बैंगलोर की एक सॉफ्टवेर कंपनी में जॉब करती हूँ और वीकेंड्स पर
यहाँ आ जाती हूँ'|
'भाई, मैं इस रानी पर ही
कंसन्ट्रेट करने वाला हूँ| इन-लौज़ की किच-किच नहीं और दहेज़
में ये कॉटेज मिलेगी अलग से'| शशांक विकास के कान में
फुसफुसाया| विकास ने उसकी पसली पर अपनी कोहनी मारी|
'वैसे तुमलोग यहाँ कैसे? क्या
यहाँ मुन्नार में भी घोस्ट हुन्तिंग करने आये हो'? रानी ने
प्रत्युष से पूछा|
'वी आर नॉट घोस्ट हन्टर्स, वी आर
मिथ बस्टर्स'| रैना ने रानी की बात काटते हुए कहा|
'एक्चुअली, वे डू नॉट बिलीव इन
पैरानॉर्मल'| प्रत्युष बीच में बोला|
'स्ट्रेंज! आई थॉट यू गाइस आर पैरानॉर्मल इन्वेस्टीगेटर्स...' रानी चौंकते हुए
बोली|
'नो वी आर नॉट| हम लोगों में ये
अवेयरनेस लाने की कोशिश करते हैं कि देयर इज़ नो सच थिंग एज़ आफ्टर लाइफ'| रैना भावहीन ढंग से बोली|
'यू डोंट रियली बिलीव दैट, डू यू'?
रानी ने चौंकते हुए कहा|
'एक्चुअली वी डू'| रैना पूर्व की
भाँती भावहीन ढंग से बोली|
'फिर तुम्हारे हिसाब से जो लोग मर जाते हैं उनका क्या
होता है? वो कहाँ जाते हैं'?
'कहीं नहीं| जैसे मोबाइल की
बैटरी डेड होने का मतलब ये नहीं कि उस बैटरी की एनर्जी कहीं जाती है, वो बस खत्म हो जाती है...पूफ्फ़!!...फिनिश...ओवर...डेड'!! वैसे ही हमारा शरीर एक मशीनरी है, दिमाग बैटरी और
उसे चलाने वाली आत्मा एनर्जी है'| रैना की आवाज़ में इसबार
उत्तेजना थी|
'मैं तुम्हारी आखों में देखकर ये बता सकती हूँ रैना कि
तुम जो बोल रही हो उसपर तुम्हे खुद यकीन नहीं है'| रानी अपना
चेहरा रैना के बिलकुल नज़दीक लाते हुए बोली| वो सीधे रैना की
आखों में देख रही थी|
'बर्रररsss' उसी समय शशांक ने खा
कर लम्बी डकार मारी|
'अब एक खाया तो मेरी आत्मा पूफ्फ़ हो जाएगी'| शशांक दांत निपोरते हुए बोला|
'मेरे ख्याल में अब हमलोगों को आराम करना चाहिए,
आजका सफर कुछ ज्यादा ही लम्बा और थका देने वाला था'| प्रत्युष बात को और आगे नहीं बढ़ाना चाहता था|
'यहाँ कॉटेज में 5-6 कमरे हैं,
सभी ठीक-ठाक अवस्था में हैं| तुमलोग जो भी
कमरे पसंद आए ले सकते हो'| रानी अपनी जगह से उठते हुए बोली|
रानी ने सबको कॉटेज में कमरे दिखाए| उस कॉटेज में तीन कमरे नीचे और तीन फर्स्ट
फ्लोर पर थे| रानी खुद फर्स्ट फ्लोर पर बने कमरों में से एक
में रह रही थी| ऊपर के ही दूसरे कमरे में रैना ने अपना सामान
डाला जबकि तीनो लड़के नीचे ग्राउंड फ्लोर पर बने कमरों में सेटल हो गए| रात बहुत गुजर चुकी थी और थकान बहुत ज्यादा थी, इसलिए
सभी बेड पर गिरते ही नींद के हवाले हो गए|
कुछ समय बाद रैना को अपने रूम के बाहर कुछ आहट महसूस हुई| थकान और नींद से रैना का शरीर
इतना बोझिल था कि उसने उस आहत हो नज़रंदाज़ करके सो जाना ही बेहतर समझा|
थोड़ी देर बाद रैना को एहसास हुआ कि कोई उसके बेड के पास कोई खड़ा हुआ
है और उसे घूर रहा है| रैना
चौंक कर उठ बैठी| उसके बेड के सामने रानी खड़ी हुई थी और एकटक
उसे देख रही थी| रानी के जिस्म पर कोई कपड़ा नहीं था|
'त...तुम अंदर कैसे आई'| रैना ने
चौंकते हुए पूछा, रानी की तरफ से कोई जवाब ना आया, वो बुत की तरह खड़ी हुई, पथराई आखों से रैना को देखती
रही|
'हे भगवान्! ये तो फिर से नींद में चल रही है'!!
रैना अपने आप में बोली|
इससे पहले कि रैना उठकर उसे नींद से जगा पाती रानी उसके बेडरूम से
निकल कर नीचे की तरफ जाती हुई सीढ़ियों की ओर बढ़ गई| रैना भी लपक कर बेड से उतरी, उसने
बेड से चादर अपने साथ ले ली और रानी के पीछे लपकी| वो नहीं
चाहती थी कि इस अवस्था में रानी कॉटेज से बाहर जाए|
रानी किसी रिमोट कण्ट्रोल से चलने वाले खिलौने की तरह नपी-तुली चाल
से चलते हुए कॉटेज से बाहर निकल गई|
रानी की निर्वस्त्र अवस्था रैना को विचलित कर रही थी, उसके इस तरह बिना कपड़ों के नींद
में चलते हुए बाहर निकल जाने से उसके साथ कोई भी अनहोनी हो सकती थी| रैना अपनी जान लगाकर रानी के पीछे भागी| रानी सडक की
ढलान से होती हुई चाय बागान की तरफ जा रही थी|
'रानी रुक जाओ! नींद से जागो रानी'!! रैना ने रानी को पीछे से आवाज़ दी, रानी की पीठ रैना
की तरफ थी और वो चाय बागान में उतर चुकी थी|
गनीमत सिर्फ यह थी कि उस समय रात के तीन बज रहे थे और दूर-दूर तक
किसी के वहां होने की संभावना नहीं थी|
रैना भी रानी के पीछे चाय बागान में उतरी, रानी की आकृति उसे वहीँ खड़ी दिखाई
दी जहां उनलोगों ने रास्ते से आते वक्त देखी थी|
रानी की पीठ रैना की ओर थी और वो बिलकुल स्थिर, किसी पुतले के जैसी खड़ी हुई थी|
रैना आहिस्ता से उसके नज़दीक आई|
'रानी! नींद से जागो रानी'!!
रानी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई|
रैना ने धीरे से अपना हाथ रानी के कंधे पर रखा| रानी के शरीर में प्रतिक्रिया हुई|
रानी आहिस्ता से रैना की ओर घूमी| रैना को
एकबार फिर अपनी आखों पर यकीन नहीं हो रहा था| रानी की जगह
एकबार फिर उसे अपना ही चेहरा नजर आया, यानी जिसका पीछा करते
हुए वो वहां तक गई थी वो कोई और नहीं खुद वही थी? रैना असमंजस
और पशोपेश में पड़ी हुई खुद को ही अपनी नज़रों के सामने निर्वस्त्र अवस्था में रात
के तीन बजे चाय बागान के बीच खड़ा देख रही थी|
किसी ने रैना के कंधे पर हाथ रखा| एक अजीब ठंडा और गीला स्पर्श था वो जिससे रैना के
पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई थी| रैना चौंक कर पलटी, दूसरा आश्चर्य उसके सामने खड़ा था|
बारिश में भीगी इशानी उसके सामने खड़ी थी| उसके बाल उसके चेहरे पर गिरे हुए
थे जिनके बीच से दो चमकी हुई काली आखें रैना को घूर रही थीं|
रैना ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन उसके हलक से आवाज़ ना निकली|
इशानी के दोनों हाथ शिकंजों की तरह रैना के कन्धों पर कस गए, इशानी बुरी तरह रैना को झंकझोर
रही थी| रैना खुद को आज़ाद कराने की कोशिश कर रही थी लेकिन
पीछे से दूसरी रैना के हाथ उसकी गर्दन पर कस गए|
'रैना! रैना!!'
रैना चौंक कर उठ बैठी, रानी नाश्ते की ट्रे लिए खड़ी थी और उसे आवाज़ दे रही
थी| कमरे में आ रही पर्याप्त रौशनी बता रही थी कि सुबह हो
चुकी थी| खिड़की से आती धूप रैना के चेहरे पर पड़ी| रात की बारिश के बाद सुबह आसमान खुला और साफ़ था|
'तुम शायद कोई बुरा सपना देख रही थी'| रानी ने ब्रेकफास्ट ट्रे साइड टेबल पर रखते हुए रैना से कहा|
क्यों जो कुछ उसने देखा वो सपना था? लेकिन सपना इतना सजीव कैसे हो सकता है? रैना ने अपने घुमते हुए सर को दोनों हाथों से पकड़ लिया, उसे सिगरेट पीने की तीव्र तलब हो रही थी लेकिन उसकी चेन स्मोकिंग को
कण्ट्रोल में रखने के लिए विकास सिगरेट का पैकेट उसे नहीं देता था|
रैना ने सामने दिवार पर टंगी वॉल क्लॉक पर नजर डाली, सुबह के नौ बज रहे थे|
'जल्दी से फ्रेश होकर ब्रेकफास्ट कर लो और रेडी होकर
नीचे आ जाओ| बाकी लोग नाश्ता कर चुके हैं'| रानी ने मुस्कुराते हुए रैना से कहा और अपने पीछे रूम का दरवाज़ा बंद करके
बाहर निकल गई|
रैना अपना सर पकड़े जाने कितनी ही देर तक रानी और रात के घटनाक्रम के
बारे में सोचती रही| उसने
अपने बैग से मोबाइल निकाला और डॉक्टर पोद्दार का नंबर डायल किया|
'सपने में खुद नग्नावस्था में देखना इस बात की ओर
संकेत करता है कि आपके सब-कॉनशियस में कोई भेद, कोई राज़,
कोई ऐसा गिल्ट है जिसके दुनिया के सामने आ जाने से आप डरते हैं'|
डॉक्टर पोद्दार ने रैना की सारी बात सुनने के बाद कहा|
'लेकिन वो सपना इतना सजीव था डॉक्टर जैसे वास्तविकता
में घटित हुआ हो| और...और मेरे कॉनशियस में कोई गिल्ट नहीं
है, फिर मुझे ऐसा अजीब सपना क्यों आया, और उस सपने का कोई ना कोई कनेक्शन इस लड़की रानी से ज़रूर है'|
'देखो रैना, ड्रीम
साइकोलॉजी एक बहुत ही वास्ट सब्जेक्ट है| मैं फिलहाल तुम्हे
जो भी बताऊंगा वो कॉमन कॉजेज़ हैं, इसके पर्सनलाइज्ड
साइकोएनालिसिस के लिए तुम्हे वापस आने तक प्रतीक्षा करनी होगी| वैसे, जैसा कि मैंने कहा, खुद
को पब्लिकली नेकेड एंड अंडर कॉनशियस एंड कांस्टेंट प्रेशर महसूस करना एक कॉमन कॉज
है| हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी या फिर कई बार खुद
को सपने में इस अवस्था में देखता है| इसका सीधा सा अर्थ
मटेरियलिस्टिक या इमोशनल लॉस, इमोशनल सफरिंग, गिल्ट एंड ह्युमिलिएशन से है| अब तुम्हारे केस में
ये ट्रिगरिंग फैक्टर क्या है ये या तो तुम्हे खुद फिगर आउट करना होगा या फिर वापस
यहाँ लौटने तक वेट करना होगा| और जहां तक सवाल उस लड़की रानी
का है, तुमने बताया कि उस लडकी रानी के फीचर्स तुमसे काफी
कुछ मिलते-जुलते हैं, इसीलिए तुम्हारे सब-कॉनशियस ने
तुम्हारे रूप में उसका एडाप्टेशन कर लिया| ये ड्रीम पैटर्न्स
में एक कॉमन ह्यूमन बिहेवियर है, अगर तुमने ध्यान दिया हो तो
हम जब भी अपने सपनो को फर्स्ट परसों के रूप में देखते हैं हम उस सपने का हिस्सा तो
ज़रूर होते हैं लेकिन कभी अपना खुद का चेहरा नहीं देखते'|
रैना चुपचाप डॉक्टर पोद्दार की बात सुन रही थी लेकिन उसका दिमाग अभी
भी किसी उधेड़बुन में लगा हुआ था|
'खुद को रिलैक्स करो रैना, तुम
वहां अपने दिमाग पर पड़ रहे बोझ को कम करने गई हो उसपर और बोझ डालने नहीं| ये सब बेकार की बातें सोचना छोडो एंड एन्जॉय योर वैकेशंस'| डॉक्टर पोद्दार ने रैना को समझाते हुए कहा|
'थैंक्स डॉक्टर पोद्दार, आय विल
ट्राय'| रैना ने औपचारिकतावश कहा और कॉल डिसकनेक्ट कर दी|
रैना जब रेडी होकर नीचे आई तो उसने शशांक और विकास को रानी से फ़्लर्ट
करते पाया, जबकि
रानी का ध्यान प्रत्युष पर था जोकि उनसे अलग-थलग बैठा अपने लैपटॉप पर पिछले दिन
रास्ते में खींची हुई फोटोज़ कैमरे से ट्रान्सफर करने में व्यस्त था|
'मेरे ख्याल में हमें लॉज जा कर रूम्स का पता करना
चाहिए| अगर उस लॉज में रूम नहीं अवेलेबल है तो किसी दूसरे
होटल या लॉज में रूम देखना होगा'| रैना नीचे आते हुए बोली|
'पर क्यों? यहाँ कोई प्रॉब्लम है
क्या'? रानी आहत भाव से बोली|
'ऐसी कोई बात नहीं है रानी, लेकिन
हम इस तरह बिन बुलाए मेहमान के जैसे तुम्हारे घर में घुस आए हैं'|
'रिलैक्स रैना, मुझे तुमलोगों के
यहाँ रहने से कोई दिक्कत नहीं है इन्फेक्ट मुझे कंपनी मिल गई है वर्ना अकेले इस
कॉटेज में बोर हो जाती'|
रैना सोच में पड़ गई| उसका दिल उस जगह और रानी से जितना जल्दी और जितना दूर हो सके जाने का कर
रहा था लेकिन उसका दिमाग वहां रुकना चाहता था, रानी नाम की
उस अनसुलझी पहेली को सुलझाना चाहता था जो पिछली रात से उसके दिलोदिमाग में विचारों
का ज्वारभाटा लाए हुए थी|
'इतना मत सोचो, मुन्नार
घूमने के लिए तुमलोगों को मुझसे अच्छी गाइड भी नहीं मिलेगी'| रानी मुस्कुराते हुए बोली|
'यहीं रुकते हैं ना रैना'| शशांक
ऐसे टोन में बोला जैसे बच्चा अपनी माँ से किसी खिलौने की फरमाईश कर रहा हो|
'ठीक है, सबसे पहले कहाँ चल रहे
हैं घूमने के लिए'? रैना मुस्कुराते हुए बोली|
प्रत्युष चुपचाप रैना को देख रहा था| वो जानता था कि रैना के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल
रही है, वो ये भी जानता था कि वो जो कुछ भी था समय के साथ ही
सामने आएगा|
उनका पूरा दिन राजमाला और टी म्यूजियम घूमने में गुज़रा| मौसम बेहद खुशनुमा था और पूरे दिन धुप-छाँव की लुका-छुपी चलती रही| रानी वाकई एक बेहतरीन गाइड थी और ऐसा लगता था जैसे वो मुन्नार के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थी| विकास और शशांक तो जैसे रानी पर लट्टू ही हो गए थे| पूरा दिन दोनों रानी के आगे-पीछे करते रहे, शशांक रानी को इम्प्रेस करने के लिए उल-जलूल हरकतें कर रहा था जबकि विकास अपने विडियो कैमरा से रानी के विडियो उतारता रहा| शाम सात बजते-बजते उनका काफिला इको-पॉइंट पहुंचा|
'ये है मुन्नार का फेमस इको-पॉइंट'| रानी इको पॉइंट की चोटी पर चढ़ते हुए बोली|
'यहाँ आवाज़ सचमुच इको होती है'? विकास
ने पूछा|
'ट्राय करके देख लो'|
'रानीssss' विकास दोनों हथेलियों
का कुप्पा मुंह से लगाते हुए जोर से चिल्लाया|
'रानीsss'...
एक मिनट बीतते-बीतते उसकी आवाज़ इको हुई|
'यहाँ नीचे एक खूबसूरत झील है, क्या
तुमलोग देखना चाहोगे'? रानी ने पूछा|
सभी सहर्ष तैयार हो गए और नीछे झील की तरफ बढ़ गए| रैना सबसे पीछे थी| अचानक वो कुछ सोचकर इको पॉइंट पर ठिठकी| वो वापस
चोटी पर पहुंची|
'रैनाsss'!! रैना जोर से चिल्लाई|
कुछ देर तक सिर्फ हवाओं की सरसराहट उसके कानो से गुजरती रही| उसके बाद उसकी आवाज़ इको होकर वापस
आई|
'इशानीssss'!!!
रात ग्यारह बजते-बजते वे लोग कॉटेज वापस लौटे| डिनर सभी बाहर ही कर चुके थे| प्रत्युष, शशांक और विकास कॉटेज के बाहर बियर पीने बैठ गए, रानी ने भी उन्हें ज्वाइन कर लिया| उनके लाख बोलने पर भी रैना वहां नहीं रुकी, उसके सर में दर्द है और वो सोना चाहती है ये बोलकर रैना जल्दी ही अपने कमरे में चली गई|
रैना के कमरे की खिड़की कॉटेज के बाहरी तरफ खुलती थी| रैना ने खिड़की से झाँक कर देखा तो
रानी और तीनो लड़के कॉटेज के बाहरी लॉन में बैठकर बियर पीने और बातें करने में
मशगूल थे| रैना चुपचाप अपने रूम से निकली और रानी के रूम की
तरफ बढ़ गई|
उस कमरे में एक नजर में देखने में सबकुछ सामान्य था लेकिन पहली बात
जो रैना को खटकी वो ये थी कि रानी के मुताबिक़ वो बैंगलोर में जॉब करती थी और
वीकेंड पर यहाँ आती थी लेकिन वहां पर कोई भी लगेज बैग मौजूद नहीं था| रूम में सामान इस तरह रखा हुआ था
जैसे वहां कोई काफी लम्बे समय से रह रहा हो, फिर भी कमरे में
और वहां की अलमारियों में ऐसी गंध थी जैसी किसी जगह के लम्बे समय तक बंद रहने से
से होती है| रूम की दीवारों पर कोई भी तस्वीर नहीं थी और
कमरे में कोई भी आइना नहीं था| एक इक्कीस-बाईस साल की लडकी
के कमरे में कोई भी आइना क्यों नहीं था?
रैना ने रानी सावधानीपूर्वक रानी के सामान की तलाशी लेना शुरू किया| वहां रोज़मर्रा में प्रयोग होने वाली सामान्य वस्तुएं थीं| लेकिन रैना कोई ख़ास वस्तु तलाश रही थी| कुछ ऐसा जो
उसे रानी के बारे में जानकारी दे सके| रैना तलाशी लेते समय
इस बात का पूरा ध्यान रखे हुए थी कि रानी को इस बात का शक ना हो कि उसके सामान के
साथ किसी ने छेड़ छाड़ की है। वहां मौजूद दराजों, कपबोर्डस,
कहीं भी कुछ ऐसा नही मिला जो रैना के काम का हो।
नीचे से रानी और तीनों लड़कों के बात करने की आवाज़ आने लगी, यानी वो लोग बाहर लॉन से कॉटेज के
अंदर आ गए थे। रैना लपक कर रूम के दरवाजे पर पहुंची। वहां से स्टेयरकेस और नीचे का
ओपन एरिया साफ नजर आ रहा था। रानी की पीठ रैना की तरफ थी और वो शशांक और विकास से
बात करने में मशगूल थी। प्रत्युष अपने रूम की तरफ बढ़ रहा था। शशांक रानी के कान
में कुछ हौले से कहता और रानी उसपर खिलखिला कर हंसती। उनपर बियर का असर साफ दिखाई
दे रहा था। अचानक रानी पीछे पलटी और अपने कमरे के दरवाजे व चौखट की तरफ देखने लगी,
अगर रैना फौरन ही दरवाज़े के पीछे नहीं हो जाती तो निश्चित ही रानी
की नज़र उसपर पड़ती। रानी कुछ पल अपने रूम की तरफ ही देखती रही, तभी शशांक ने फिर कुछ कहा और रानी का ध्यान रूम से वापस शशांक पर आ गया।
रैना ने चैन की सांस ली। उसने निश्चय किया कि उसे फौरन रूम से निकल जाना चाहिए
इससे पहले कि रानी ऊपर की ओर आये। तभी रैना की निगाह रूम में रखी एलमिरा के ऊपर
पड़ी। वहां कुछ था, कुछ ऐसा जो रैना की निगाह से बच गया था।
रैना लपक कर वहां पहुंची लेकिन उसकी ऊंचाई एलमिरा के ऊपर रखी वस्तु तक पहुंचने के
लिए कम थी। रैना ने इधर उधर देखा, एलमिरा के पास ही टेबल रखा
था। उसने लपक कर टेबल उठाया और उसपर चढ़ गई। एलमिरा के ऊपर एक पुराना फोटोफ्रेम और
एक पुरानी एलबम थी, दोनो चीजों पर धूल की परत चढ़ी हुई थी।
रैना ने दोनों चीजें अपने कब्ज़े मे की और टेबल से उतर गई। लेकिन उस टेबल का एक
साइड का पाया बाकी तीन पायों से कदरन छोटा था इसलिए रैना के उतरते। ही उसका बैलेंस
ऑफ हुआ। रैना ने खुद को और टेबल को गिरने से तो बच लिया लेकिन उसके पाए से फर्श पर
हुई ज़ोरदार आवाज़ को नहीं रोक पाई।
रानी को ऊपर रूम से कुछ खटके की आवाज़ आयी। शशांक पूरी शाम उसपर लाइन
मारने के सारे पैंतरे आज़मा चुका था और अब भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था जबकि रानी
सिर्फ औपचारिकतावश उसे झेल रही थी। तीनो लड़कों में सबसे ज़्यादा प्रत्युष ने उसे
प्रभावित किया था लेकिन रानी के बार-बार कोशिश करने पर भी प्रत्युष ने उससे बात
करने में कोई खास दिलचस्पी नही दिखाई।
'ओके गाइस, लेट्स कॉल इट ए नाईट।
कल सुबह मिलते हैं'। रानी जम्हाई लेते हुए बोली और शशांक या
विकास के कुछ कह पाने से पहले ही सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। रैना का कलेजा मुंह को आ
गया। वो रंगे हाथों पकड़ी जाने वाली थी। कमरे से निकलने का सिर्फ एक ही दरवाज़ा था
जहां से निकलना मुमकिन नहीं था क्योंकि सीढ़ियों से ऊपर आती रानी उसे साफ देख लेती।
'रानी एक मिनट सुनना'।
रानी ने पलट कर देखा प्रत्युष अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा था और उसे
बुला रहा था।
एक पल तो रानी को यकीन ही नहीं हुआ, दिन भर वो प्रत्युष से बात करने का मौका तलाशती रही
और वो उसे नज़रअंदाज़ करता रहा और इस वक्त वो खुद उसे बुला रहा था।
'मेरे वाशरूम की लाइट काम नहीं कर रही है शायद,
क्या एक मिनट देख सकती हो। शायद मुझे स्विच में कंफ्यूजन हो रहा है'। प्रत्युष मुस्कुराते हुए बोला।
'श्योर! यहां के स्विचेस और वायरिंग सब ब्रिटिश काल के
हैं इसलिए अक्सर प्रॉब्लम होती रहती है। चलो में देखती हूँ'।
रानी प्रत्युष के कमरे की तरफ बढ़ गयी।
प्रत्युष ने रानी के पीछे अपने कमरे में जाते समय एक निगाह ऊपर रानी
के कमरे की चौखट पर डाली और फिर अपने कमरे में चल गया। रानी के कमरे की चौखट के
पीछे छुपी रैना समझ गयी कि प्रत्युष ने ये स्टंट उसे बचाने के लिए किया है। रैना
फौरन वहां से बाहर निकली और अपने रूम में पहुंच कर की उसने सांस ली।
'ये साले प्रत्युष की प्रॉब्लम क्या है! दिन भर मेहनत
हमने की, लड़की को रूम में लेकर ये साहब चले गए'। शशांक रुआंसी शक्ल बनाते हुए बोला।
'अबे लाइट नही जल रही, वो चेक
करवाने ले गया है'। विकास उसके सर पर तड़ी मारते हुए बोला।
'ओ भाई! जो आखरी इंग्लिश फ़िल्म मैंने देखी थी ना,
उसमे भी हीरो हीरोइन को लाइट ठीक करने के बहाने रूम में ले जाता है।
लाइट-वाइट कुछ ना ठीक होती बस दोनो के बीच प्यार की 'लॉ'
जल जाती है'।
'एक तो तू ये इंग्लिश फिल्मों के नाम पर जॉनी सिन्स की
फिल्में देखना बन्द कर'! विकास उसे घुडकते हुए बोला।
'अबे ये प्रत्युष ग्रहण है हमारे जीवन का मैं बता रहा
हूँ तुझे। ऊपर वाले ने हमारे आस-पास जितनी हॉट बंदियाँ भेजी हैं सब इस कमीने की
झोली में ही गिरी हैं। जब इशानी ज़िंदा थी तो वो इसपर मरती थी। हम दोनों जानते हैं
कि रैना का भी फर्स्ट क्रश ये पापी प्रत्युष ही है, इसीलिए
वो भी हम दोनों को घास नहीं डालती। बड़ी मुश्किल से ऊपर वाले ने हमारे अरमानो की
बंजर हो चली धरती पर रानी नाम की ठंडी फुहार भेजी उसे भी ये तूफान उड़ाए ले जा रहा
है। मेरे दिल की आह लगेगी इस पापी प्रत्युष को'।
शशांक पिनक में बड़बड़ा रहा था।
'ये तेरे दिल की आह नही तेरे दिमाग की ठरक है साले। तू
सोने चल भाई'!! विकास शशांक को घसीटते हुए उसके कमरे की तरफ
ले गया।
बाहर आसमान बादलों से घिरा हुआ था। रह-रह कर उठ रही बादलों की
गड़गड़ाहट के बीच बरसात शुरू हो गयी। रात के बारह बज चुके थे।
'स्विच तो ठीक काम कर रहा है। शायद बल्ब फ्यूज़ हुआ है।
मैं सुबह इसे चेंज करवा दूंगी ' रानी सोचपूर्ण मुद्रा में
बोली।
रानी और प्रत्युष उस रूम से लगे हुए वाशरूम में
थे जिसमें प्रत्युष रह रहा था।
'मैंने बेकार ही तुम्हे परेशान किया रानी। रात काफी हो
गयी है, तुम सो जाओ। कल इसे में देख लूंगा'। हाथ मे फ़्लैश लाइट लिए हुए प्रत्युष बोला।
रानी ने प्रत्युष की तरफ देखा। ठीक इसी समय आसमान में जोरदार बिजली
कौंधी। रानी डरकर प्रत्युष से लिपट गयी। प्रत्युष आवाक था।
'तुम ठीक तो हो रानी? तुम्हें
थंडरिंग नॉइज़ से डर लगता है'? प्रत्युष समझ नहीं पा रहा था
कि खुद से बुरी तरह लिपटी हुई रानी को अलग कैसे करे।
'मुझे ऐसी तूफानी रात से डर लगता है प्रत्युष। ये मुझे
कुछ याद दिलाती है'। रानी खुद ही उससे अलग होते हुए बोली।
'याद दिलाती है? क्या याद दिलाती
है? तुम क्या बात कर रही हो'? प्रत्युष
ने रानी का चेहरा देखा, ऐसा लग रहा था जैसे उसके चेहरे से
पूरा खून निचुड़ गया हो, जैसे उसके चेहरे पर राख पुती हुई हो।
'कुछ नहीं, रात बहुत हो गयी है।
गुड नाईट'। रानी ने पलटते हुए कहा और फौरन ही वहां से बाहर
निकल गयी।
रैना अपने सामने बेड पर रखे हुए फ़ोटो एल्बम और फ़ोटो फ्रेम को एकटक
देख रही थी। उसे समझ नही आ रहा था कि जो वो देख रही है उसका वो क्या निष्कर्ष
निकाला। अपने मोबाइल फोन को हाथ में लेकर सोचपूर्ण मुद्रा में नचा रही थी, तभी उसके रूम के दरवाजे पर हल्की
दस्तक हुई। रैना के वॉल क्लॉक पर निगाह डाली, रात के पौने एक
बजे रहे थे। रैना ने दरवाजा खोला, बाहर प्रत्युष खड़ा हुआ था।
वो एक तरफ हट गई।
'तुम पागल हो गयी हो क्या! कर क्या रही थी तुम रानी के
रूम में!! वो तो अच्छा हुआ कि अपने रूम में जाते समय मेरी नज़र तुमपर पड़ गयी'। प्रत्युष धीमी आवाज़ में रैना को डपटते हुए बोला।
'और अभी मुझे कॉल कर के यहां क्यों बुलाया है तुमने?
ऐसी कौन सी बात है जो सुबह तक वेट नही कर सकती थी'?
प्रत्युष के सवालों का रैना ने कोई जवाब नही दिया, सिर्फ बेड पर रखी चीजों की तरफ
इशारा कर दिया।
प्रत्युष ने बेड पर रख फोटो फ्रेम उठाया, उसमे रानी की एक वृद्ध महिला के
साथ फोटोग्राफ थी जोकि कॉटेज के बाहर खींची गई थी।
'ये तो रानी की फोटोग्राफ है, शायद
अपनी नानी के साथ। इसमें क्या प्रॉब्लम है? जब उसकी नानी
जीवित रही होंगी ये तबकी पिक होगी'। प्रत्युष कंधे उचकाते
हुए बोला।
'तुम्हारे हिसाब से ये पिक कितनी पुरानी होगी प्रत्युष'?
रैना ने सोचपूर्ण मुद्रा में पूछा।
'जिस बेकद्री से इसे रखा गया है उससे ये ज़्यादा पुरानी
नज़र आ रही है वर्ना दो-तीन साल पुरानी पिक होगी ये'।
प्रत्युष गौर से फोटोग्राफ को देखते हुए बोला।
'ज़रा फोटो के राइट हैंड कॉर्नर में नीचे की तरफ देखो,
बॉर्डर पर'।
प्रत्युष की निगाह रैना की निर्देशित जगह पर गई। वहां एक इबारत लिखी
थी, 'टू माय
लविंग नानी फ्रॉम रानी'। जिसके बगल में रानी के साइन और डेट
थी। वहां डेट 6 july 2000 लिखी हुई थी। प्रत्युष को अपनी
आँखों पर विश्वास नही हो रहा था।
'रानी की ऐज 21-22 से ऊपर नहीं
है। इस फोटोग्राफ में वो हूबहू वैसी ही नज़र आ रही है जैसे वो अभी दिखती है। अगर इस
फोटो में रानी 22 साल की है तो इसकी डेट के हिसाब से उसकी ऐज
चालीस के आस-पास होनी चाहिए। क्या रानी कहीं से भी तुमको चालीस साल की दिखाई देती
है'! रैना एक सांस में बोल गई।
प्रत्युष समझ नही पा रहा था कि वो क्या बोले।
'ये डेट गलत होगी। किसी तरीके का मज़ाक'!
'रानी के हाथ मे मोबाइल फोन देखो। नोकिया 650, ये मोबाइल फोन 1999 में लॉन्च हुआ था'। रैना फोटो में रानी के हाथ मे थमे मोबाइल की तरफ इशारा करते हुए बोली।
प्रत्युष के मुंह से बोल ना फूटा। रैना ने प्रत्युष के सामने एलबम खोल दी। एलबम
में रानी के बचपन के ब्लैक एंड वाइट फोटोग्राफ्स थे।
'इन ब्लैक एंड वाइट फोटोग्राफ्स को देखो प्रत्युष। अगर
रानी बाइस साल की है तो आज के डेट से उसका बर्थ ईयर 1995 होना
चाहिए। जबकि ये फोटोग्राफ्स 1980 के अराउंड के हैं'।
रैना की बात काटने के लिए कोई भी तर्क प्रत्युष को सूझ नही रहा था।
'एक बात पर और ध्यान देना प्रत्युष, रानी के हिसाब से वो सॉफ्टवेर कंपनी में काम करती है लेकिन उसके पास कोई
भी लैपटॉप या मोबाइल फोन नहीं है| ना ही इस कॉटेज में कोई
लैंडलाइन है| रानी का बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं है,
ना ही बाहरी दुनिया का रानी से कोई संपर्क है'|
'तुम कहना क्या चाहती हो? रानी...मर
चुकी है'?
'मैं ऐसा कुछ नहीं कहना चाहती प्रत्युष| तुम जानते हो कि मुझे इन चीज़ों पर यकीन नहीं है'| ये
बोलते वक्त रैना ने खुद महसूस किया कि उसकी आवाज़ में वो पहले वाला आत्मविश्वास
नहीं था|
बाहर फिर ज़ोरदार बिजली कड़की, उसके बाद कुछ पलों का सन्नाटा छ गया| उस सन्नाटे में
किसी के पदचापों की आवाज़ उन्हें कमरे के बाहर साफ़ सुनाई दी|
'तुमने वो आवाज़ सुनी प्रत्युष'?
'हाँ, बाहर कोई है| मैं देखता हूँ'|
प्रत्युष ने दरवाज़े में झिर्री कर के बाहर झाँका, बाहर का दृश्य देखकर उसकी रीढ़ में
सिहरन दौड़ गई| रानी उसे नींद में चलते हुए सीढ़ियों से नीचे
उतरती दिखाई दी, उसके जिस्म पर कोई भी कपड़ा नहीं था|
'यानी कल रात जो मैंने देखा था वो सपना नहीं था|'
रैना अपने आप में बडबडाई|
'क्या देखा था तुमने कल रात रैना'?
'छोडो उसे, रानी के पीछे चलो|
बाहर घमासान बारिश हो रही है| उसे ऐसी अवस्था
में नहीं जाने दे सकते हम'|
रैना और प्रत्युष जबतक सीढ़ियों तक पहुंचे तबतक रानी कॉटेज का दरवाज़ा
खोलकर बाहर निकल चुकी थी| दोनों
बगुले की तरह कुलांचे भरते हुए सीढ़ियों से नीचे पहुंचे| कॉटेज
के बाहर दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था| सिर्फ और सिर्फ
ज़ोरदार बारिश के थपेड़े थे वहां|
'इतनी जल्दी कहाँ गायब हो गई वो'?
'बारिश और अँधेरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा,
पता नहीं किस तरफ निकल गई है वो'|
'कल वो चाय बागान की तरफ गई थी, हमें
पहले उधर ही चलना चाहिए'|
'ठहरो रैना! ऊपर देखो'!!
रैना ने चौंक कर उस तरफ देखा जिधर प्रत्युष इशारा कर रहा था| कॉटेज की पहली मंजिल पर दोनों
कमरों की खिडकियों से जलती लाइट की रौशनी नीचे आ रही थी| जिस
रूम में रैना रह रही थी वो खाली था जबकि रानी के कमरे में एक साया चलता हुआ नजर आ
रहा था|
रैना और प्रत्युष कभी एक-दूसरे का चेहरा देख रहे थे तो कभी उस साए को
देख रहे थे जो निश्चित तौर पर किसी लड़की का था| दोनों वापस कॉटेज के अन्दर भागे और जिस गति से
सीढ़ियों से नीचे आये थे उसी गति से वापस ऊपर की तरफ दौड़ गए|
रैना और प्रत्युष रानी के कमरे के सामने पहुंचे| दोनों का दिल उनकी पसलियों पर चोट
कर रहा था, अपनी उखड़ी हुई साँसों को दोनों व्यवस्थित करने की
कोशिश कर रहे थे| प्रत्युष ने हाथ बढ़ा कर दरवाज़े को हल्के से
छुआ, दरवाज़े और चौखट के बीच झिर्रि बन गई यानी दरवाज़ा अन्दर
से लगा हुआ नहीं था| प्रत्युष ने एक प्रश्नवाचक नजर रैना पर
डाली, रैना ने सहमती में सर हिलाया|
प्रत्युष ने दरवाज़े को हल्का सा धक्का दिया, सामने रूम में रानी नज़र आई जोकि
नींद में ही चल रही थी| लेकिन उस समय वो निर्वस्त्र नहीं थी
बल्कि उसके शरीर पर एक नाईट गाउन था| रैना और प्रत्युष दोनों
कमरे में दाखिल हुए|
'ये नींद में चल रही है'|
'इसका शरीर, बाल, कपडे सबकुछ सूखा हुआ है, कमरे में भी पानी का कोई
नामोनिशान नहीं| ऐसा कैसे हो सकता है? हम
दोनों ने ही इसे मूसलाधार बारिश में बिना कपड़ों के जाते देखा था'|
'मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा और दिल सिर्फ एक ही चीज़
कह रहा है| हमलोगों को जल्द से जल्द यहाँ से निकल जाना चाहिए'|
प्रत्युष रैना से बोला, उसके चेहरे पर गंभीर
भाव थे|
'अब तो इस गुत्थी को सुलझाए बिना मैं यहाँ से बिलकुल
नहीं जाने वाली| ये रैना एट मिडनाईट का अबतक का सबसे बड़ा केस
होगा'| रैना दृण भाव से बोली|
'रैना आर यू आउट ऑफ़ योर माइंड! ये कोई मज़ाक नहीं है,
ना ही जादू-टोना अंधविश्वास का केस है, दिस इज़
ब्लडी सीरियस'| प्रत्युष झुंझला कर बोला|
'आई नो दैट इट्स ब्लडी सीरियस...सो एम आय| ये लड़की कोई भूत-प्रेत, कोई प्यासी भटकती आत्मा नहीं
है प्रत्युष| लुक, आई कैन टच हर'|
रैना ने हाथ बढ़ा कर रानी के सीने पर रखा|
'मैं इसकी हार्ट बीट, इसकी
पल्पटेशन महसूस कर सकती हूँ प्रत्युष| इसके जिस्म में हल्की
हरारत है, अगर ये लड़की कोई आत्मा होती तो ना इसका दिल धड़कता
ना इसके शरीर में हरारत होती| ये मेरे और तुम्हारी तरह ही एक जीती-जागती इंसान है प्रत्युष'|
'फिर वो एल्बम, फोटोग्राफ्स...और
अभी जो कुछ घटित हुआ वो'?
'वही तो पता लगाना है! अपने डिटेक्टिव स्किल्स यूज़ करो
प्रत्युष| इस लड़की और इस कॉटेज के बैकग्राउंड के बारे में
जितनी इनफार्मेशन कलेक्ट कर सको करो'|
रैना और प्रत्युष जैसे रानी के कमरे में आये थे वैसे ही वहां से वापस
निकल गए| कमरे का
दरवाज़ा प्रत्युष ने यथावत बंद कर दिया, दोनों वापस अपने-अपने
कमरों में चले गए| कुछ देर बाद रानी के कमरे का दरवाज़ा खुला,
नींद में चलती हुई रानी बाहर निकल कर कुछ देर तक रैना के कमरे के
दरवाज़े पर खड़ी रही, फिर किसी चाभी लगी गुड़िया की तरह वापस
अपने कमरे में चली गई| इन सभी लोगों को इस बात का एहसास भी
नहीं था कि एक शख्स ऐसा भी था जो इन सभी गतिविधियों पर नजर रखे हुए था|
जब विकास शशांक को ज़बरदस्ती कमरे में ले गया तो उस वक्त तो बिना हुज्जत किए चला गया लेकिन नींद शशांक की आखों से कोसों दूर थी| उसका दिमाग बगल के कमरे के वॉशरूम पर ही अटका हुआ था जहां रानी और प्रत्युष मौजूद थे| जब उसे यकीन हो गया कि विकास सो चुका है तब शशांक चुपके से अपने कमरे से निकला और प्रत्युष के कमरे की तरफ बढ़ गया| कमरा खाली था, यानी प्रत्युष और रानी वॉशरूम में थे| शशांक का दिल बैठने लगा| प्रत्युष और रानी के बात करने की हल्की आवाज़ उसतक आ रही थी| वो धीरे-धीरे कमरे के अंदर बढ़ा और वॉशरूम के निकट पहुंचा| उसने पर्दे की ओट लेते हुए वॉशरूम के भीतर झाँका ताकि उसे कोई देख ना सके| ठीक उसी समय आसमान में बिजली कड़की| वॉशरूम के अंदर रानी सहमकर प्रत्युष से लिपट गई| शशांक को ऐसा लगा जैसे उसके सीने पर कोबरा सांप लोट रहा हो| जब रानी वहां से निकली तब भी वो कमरे में पर्दे के पीछे ही छुपा हुआ था| प्रत्युष कमरे में आ गया और उसने रानी के कमरे से जाते ही दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया| अब शशांक फंस गया, या तो प्रत्युष के सामने आकर वो अपनी किरकिरी करवाता या फिर प्रत्युष के सो जाने का वेट करता ताकि उसके सोने के बाद वो वहां से निकल सके| शशांक ने दूसरे ऑप्शन के साथ जाने में बेहतरी समझी| वो पर्दे के पीछे खड़ा प्रत्युष के सोने का इंतज़ार करने लगा साथ ही वो ये भी मना रहा था कि प्रत्युष का ध्यान पर्दे की तरफ ना जाए लेकिन तभी एक और प्रत्याशित घटना घटी| प्रत्युष के मोबाइल फोन की रिंग बजी, कॉल रैना का था| रैना ने प्रत्युष को अपने रूम में फ़ौरन बुलाया था| प्रत्युष उठा और दरवाज़ा खोल कर सीढ़ियों से ऊपर की तरफ बढ़ गया। कुछ पल तक शशांक असमंजस में वहीं खड़ा रहा फिर वो भी ऊपर जाने का इरादा कर के प्रत्युष के कमरे से बाहर निकला, लेकिन बाहर निकलते ही उसने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी उसने सपने में ना की थी। पहली मंजिल पर रानी नींद में चलती हुई अपने कमरे से बाहर निकली, उसकी निर्वस्त्र अवस्था देखकर शशांक भौंचक रह गया। उसके दिमाग ने उस घड़ी काम करने से इनकार कर दिया। शशांक स्टेयरकेस की ओट में छुप गया। इसी समय रैना के रूम का दरवाजा खुला, शशांक को रैना और प्रत्युष की आवाज़ें सुनाई दीं। रानी तबतक सीढ़ियों से उतर कर कॉटेज के बाहर की तरफ बढ़ चुकी थी, शशांक क्योंकि स्टेयरकेस के पीछे छुपा हुआ था इसलिए रैना और प्रत्युष की निगाह उसपर नहीं पड़ी थी। शशांक जानता था कि प्रत्युष और रैना किसी भी पल कमरे से बाहर निकल सकते हैं। वो चीते की फुर्ती से स्टेयरकेस के पीछे से निकल और बाहर की तरफ लपक लिया। लेकिन दुनिया के सारे आश्चर्य उस दिन शशांक के लिए ही लाइन लगाए बैठे थे। कॉटेज से बाहर निकल कर शशांक ने कुछ ऐसा देखा जिसने उसके रहे सहे होश भी फाख्ता कर दिए।
अगला दिन सामान्य ही गुज़रा, दिन भर बरसात की झड़ी लगी रही| रैना और साथियों का काफिला मुन्नार से लगभग तेरह किलोमीटर दूर मट्टुपेट्टी डैम पहुँचा। डैम से लगे हुए लेक में बारिश की बूंदे गिर कर प्रकृति का एक अत्यंत मधुर संगीत तैयार कर रही थीं। आसमान बादलों से घिरा हुआ था, साफ जाहिर था कि बारिश जल्दी नही थमने वाली थी। बारिश से झील के पीछे की पहाड़ियां यूं नज़र आ रही थीं जैसे वॉटर कलर पेंटिंग में उन्हें वॉश टेक्निक से पेंट कर दिया गया हो। यूं तो मट्टुपेट्टी डैम इस मौसम में सैलानियों से खचाखच भरा रहता है लेकिन उस दिन शायद सुबह से हो रही बरसात का असर था कि सैलानियों की संख्या वहां ना के बराबर थी। रैना ने गौर किया कि शशांक उस दिन असामान्य रूप से शांत और खुद में ही खोया हुआ था। उस दिन वो रानी से फ़्लर्ट करने की कोशिश भी नहीं कर रहा था। विकास और प्रत्युष ने भी ये बात नोटिस की लेकिन पूछे जाने पर शशांक ने बात इधर उधर कर दी। वो लोग लेक के पास ही बने रेस्टोरेंट पहुंचे।
'यहां का नॉन-वेज ऑसम है गाइस। तुमलोगों को यहां का
चेट्टीनाडू चिकेन करी और मटन बिरयानी ट्राय करनी चाहिए'! रानी
चहकते हुए बोली।
सबने रानी के रिकमेंडेशन पर नॉन-वेज आर्डर कर लिया।
रैना लेक की तरफ देख रही थी। उसके नथुने सिगरेट के धुएं की दोनाली
चला रहे थे और दिमाग उधेड़बुन में उलझा हुआ था। रानी का अतीत और इशानी का वर्तमान
दोनो ही रैना को विचलित किये हुए थे। बारिश की बूंदें लेक की सतह से टकराकर एक
कुहासे की परत लेक के ऊपर तैयार कर रही थीं। उस कुहासे के बीच लेक के बीचोंबीच कमर
तक पानी मे डूबी हुई एक आकृति खड़ी थी। उसके लम्बे और गीले बाल उसके चेहरे पर आए
हुए थे जिससे उसका चेहरा पूरी तरह ढका हुआ था लेकिन फिर भी रैना ने उसे अच्छी तरह
पहचान था। वो इशानी थी। उसकी काली आँखें रैना पर ही गड़ी हुई थीं। रैना भी एकटक
इशानी को ही देख रही थी। रैना का चेहरा भावहीन था और उसके नाक व मुंह से सिगरेट के
धुएं की गाढ़ी लकीर निकल रही थी। लेक के बीचोंबीच खड़ी हुई इशानी धीरे धीरे लेक के
अंदर समा गई।
वेटर उनका ऑर्डर सर्व कर गया। विकास और प्रत्युष फोटोग्राफ्स और
वीडियो शूट करने में व्यस्त थे। रानी और रैना ने उन्हें काफी आवाज़ें दी।
'छोड़ो इन लोगों को, खाना खाते
हैं यार। ज़ोरों की भूख लगी है और खाना सामने रख ठंडा हो रहा है'। रैना झुंझलाते हुए बोली।
'हाँ, मेरे भी यही ख्याल है।
वैसे भी शशांक तो हमारा साथ देगा ही। क्यों शशांक'? रानी आंख
मारते हुए शशांक से बोली। शशांक ने कोई जवाब ना दिया, उसके
अधरों पर सिर्फ एक फीकी सी मुस्कान आयी। रैना, रानी और शशांक
खाने बैठ गए। रानी ने तीनों की प्लेट्स में खाना सर्व किया।
'चलो गाइस, टूट पड़ा बहुत ज़ोरों
की भूख लगी है'। रानी ने कहा और खाना शुरू कर दिया।
'क्या बात है शशांक? तुम्हारी
तबियत तो ठीक है'? रैना ने शशांक से पूछा।
'ह...हाँ, सब ठीक है रैना। मैं
बिल्कुल ठीक हूँ'। शशांक यूं चौंका जैसे नींद से जागा हो।
रैना को शशांक का व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था।
उसने देखा कि शशांक बहुत ध्यान से रानी को देख रहा था। रैना की नजरें भी रानी पर
गई। रकनी खाने में तल्लीन थी। उसने मटन रिब्स हाथों में पकड़े हुए थे और अपने
दांतों से मांस को हड्डी से यूं नोच रही थी जैसे कोई मांसभक्षी जानवर नोचता है।
'शायद इसी वाकई बहुत भूख लगी हुई है'। रैना ने रानी की तरफ देखते हुए कहा। 'चलो शशांक,
हम दोनों भी कहना शुरू करते हैं। ये लोग तो पता नहीं कब आएंगे'!
शशांक ने देखा, प्रत्युष और विकास अभी भी कैमरा लेकर शूट करने में तल्लीन थे। उसने रैना
का अनुसरण किया।
दोनो ने खाने का एक-एक कौर अपने मुंह मे भरा ही था कि फौरन बाहर थूक
दिया।
'बिरयानी का मटन तो कच्चा है'!! शशांक
मुंह का निवाला थूकते हुए बोला।
'हाँ, ये पूरी तरह पका नहीं है'। रैना भी अपना निवाला थूक चुकी थी। उसका ध्यान रानी पर गया जोकि खाने में
तल्लीन थी।
'रानी! ये खाना मत खाओ, ये मटन
अच्छी तरह कुक नहीं हुआ है'। रैना ने रानी को रोकते हैं कहा।
'क्या बात कर रही हो रैना? मुझे
तो ये बिल्कुल परफेक्ट लग रहा है'। रानी ने अपना चेहरा मटन
के टुकड़े से ऊपर उठाते हुए कहा। उसकी आँखें किसी शिकारी सिंहनी के मानिन्द चमक रही
थीं और उनमें ऐसे भाव थे जिन्हें देखकर रैना और शशांक दोनो ही भौंचक रह गए।
वेटर के खाना बदल कर दोबारा लाने और उनके खाना खत्म करने तक मूसलाधार
बारिश हल्की फुहारों में बदल गई थी| रैना प्रत्युष और विकास के साथ घूमने निकल गई,
रानी भी उनके साथ हो ली लेकिन शशांक तबियत ना ठीक होने की वजह बता कर लेक के पास
ही रुक गया| रैना और साथी पहाड़ी की तरफ निकल गए, हवा काफी तेज़ और ठंडी थी और उसके
साथ चेहरे पर पड़ रही पानी की हल्की फुहारें रैना को बहुत ही भली मालूम दे रही थीं|
प्रत्युष और विकास अपने-अपने कैमरे से लैंडस्केप शूट करते हुए आगे चल रहे थे|
प्रत्युष रैना की पिक लेने के लिए पीछे घूमा|
‘रानी कहाँ गई’?
रैना ने पीछे पलट कर देखा,
रानी उसके साथ ही चल रही थी लेकिन अब वो वहां नहीं थी|
‘शायद वो भी वापस लेक के पास चली गई हो’| रैना ने सशंकित भाव से कहा|
प्रत्युष ने कंधे उचकाए और विकास के साथ आगे बढ़ गया| रैना उनके पीछे चल तो रही थी
लेकिन उसका दिमाग कहीं और था|
‘कितना खूबसूरत है ना ये लेक’|
शशाक चौंक कर पीछे पलटा| रानी उसके पास ही खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी,
बारिश की बूँदें उसके भीगे हुए बालों की लटों से टपक रही थीं| उसके कपड़े पूरी तरह
भीगे हुए थे और उसके जिस्म के हर एक उभार, हर कटाव पर यूं चिपके थे जैसे किसी
शिल्पिकार ने उसे संगेमरमर से तराश कर बनाया हो| उस घड़ी रानी बला की खूबसूरत लग
रही थी| शशांक चाह कर भी उसपर से अपनी नज़रें नहीं हटा पाया|
‘तुम साईट सीइंग के लिए नहीं गई’|
‘ये जगह मेरे लिए नई नहीं है| अनगिनत बार आ चुकी हूँ यहाँ, इसलिए
साईट सीइंग में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है’| रानी बोलते हुए शशांक के बिलकुल करीब
आकर बैठ गई|
वो दोनों लेक के किनारे पर बैठे थे, उनके आस-पास घनी झाड़ियाँ और पेड़
होने से उनके वहां होने का पता नहीं चल रहा था|
‘अरे! तुम्हे तो बुखार हो रहा है’| रानी ने अपनी हथेली शशांक के गले
पर रखी| शशांक के शरीर ने हल्की झुरझुरी ली|
‘तुम्हे यहाँ बारिश में नहीं बैठना चाहिए, तबियत और ज्यादा खराब हो
जाएगी’| रानी शशांक की आखों में देखते हुए बोली| उसकी आखों में एक अजीब सा सम्मोहन
था| शशांक को ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने दिलो-दिमाग पर से अपना काबू खोता जा रहा
है| उसने बीती रात की घटना याद करने की कोशिश की, क्या हुआ था कल रात? क्या वो
वाकई घटित हुआ था? या फिर उसे जो भी याद है उसकी खुद की कल्पना की उपज है? शशांक
सही ढंग से कुछ याद नहीं कर पा रहा था, ना ही अब वो कुछ याद करना चाहता था| वो
सिर्फ रानी को याद रखना चाहता था| रानी ने अपने कोमल लेकिन अंगारों जैसे जलते हुए
होठ शशांक के होठों पर रख दिए| शशांक चाह कर भी खोद को रोक नहीं पाया| रानी और
शशांक एक-दूसरे में गुत्थम-गुत्था हो गए|
रैना जब नीचे लेक के पास पहुंची तब उसे रानी और शशांक कहीं दिखाई ना
दिए| रैना शशांक को आवाज़ लगाने ही वाली थी
कि पास की झाड़ियों से उसे कुछ आवाज़ आई| रैना
बेआवाज़ कदमों से चलते हुए झाड़ियों के पास आई| वहां उसने रानी और शशांक को एक-दूसरे
में खो जाने की जद्दोजहद करते पाया|
。。。
रात
के लगभग बारह बज रहे थे, पूरे एरिया में पॉवर कट हुआ था| कॉटेज में लिविंग एरिया
में चारों कोनो पर पुराने अंग्रेजों के समय के कलर्ड स्टेनग्लास लैम्प्स जल रहे
थे| लिविंग रूम के बीचों-बीच रैना, प्रत्युष, विकास, शशांक और रानी बैठे हुए थे|
शशांक
और रानी एक-दूसरे से बिलकुल लग कर बैठे थे| डैम से लौटने के बाद से शशांक वापस काफी
खुश नजर आ रहा था| उसके और रानी के बीच की नजदीकियां भी काफी बढ़ी हुई थीं| दोनों
ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे हनीमून पर आए नवविवाहित जोड़े करते हैं| रैना को उनके
इस व्यवहार से काफी झुंझलाहट हो रही थी लेकिन वो प्रत्यक्षतः अपने मनोभाव प्रकट
नहीं कर रही थी| जब उसे लगा कि उनकी हरकतें उसकी बर्दाश्त से बाहर हो रही हैं तो
वो वहां से उठकर कॉटेज से बाहर की तरफ चली गई|
उसने
विकास के बैग से चुपके से कुछ सिगरेट्स निकाल लिए थे| वो जानती थी कि प्रत्युष के
कहने पर विकास उसकी स्मोकिंग को कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था इसीलिए वो उसे
दिन में एक-दो सिगरेट से ऊपर नहीं देता था| विकास खुद स्मोकिंग नहीं करता था लेकिन
रैना के लिए उसके पसंद के ब्रैंड के सिगरेट हमेशा अपने पास रखता था| विकास के अपने
प्रति मनोभाव से रैना अनभिज्ञ नहीं थी| वो यह भी जानती थी कि शशांक भी उसके प्रति
वही भाव रखता है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में, रानी के उनके जीवन में आगमन के बाद
से शशांक का रैना के प्रति मोह भंग हो रहा था|
लेकिन
रैना वो मनोभाव जिसके लिए रखती थी उसके दिल में रैना के प्रति वो भाव नहीं थे|
प्रत्युष!
कॉलेज
के पहले दिन ही प्रत्युष को देखते ही रैना अपना दिल उसे दे बैठी थी, लेकिन
प्रत्युष ने अपनी हमसफर के तौर पर रैना को नहीं इशानी को चुना|
जिस
दिन इशानी को पूरे कॉलेज के सामने प्रत्युष ने प्रपोज़ किया था उस रात पूरी रात
फूट-फूट कर रोई थी रैना|
रैना
के दिल में एक टीस उठी| उसने एक सिगरेट सुलगा लिया| वो कॉटेज के बाहरी लॉन पर टहल
रही थी, बारिश की बहुत ही हल्की फुहारी अब भी गिर रही थी|
इशानी
की मौत के बाद भी रैना प्रत्युष को अपना ना बना सकी| प्रत्युष इशानी की यादों के
सहारे ही जीना चाहता था| रैना ने एक गहरा कश खींचा और टहलते हुए लॉन की बाहरी
दिवार के समीप आ गई| वापस लौटने के लिए रैना पलटी ही थी कि उसे कॉटेज के बगल में
लगे ताड़ के पेड़ के पीछे खड़ी इशानी दिखाई दी| इतने फासले से भी वो इशानी की स्याह
काली आखों को खुद पर गड़ी महसूस कर सकती थी| रैना ने इशानी की तरफ से नज़रें फेरने
की कोशिश ना की|
‘मैं
जानती हूँ कि तुम सिर्फ मेरे दिमाग का वहम हो’| रैना के अधरों पर एक तीखी मुस्कान
उभरी| उसने सिगरेट का आखरी कश खींचा और सिगरेट बट नीचे गिरा कर अपने बूट की हील से
रौंद दिया|
उसी
समय उसे प्रत्युष कॉटेज से बाहर आता दिखाई दिया, उसके चेहरे पर घबराहट के भाव थे|
रैना ने उस दिशा में देखा जहां इशानी उसे खड़ी दिखाई दी थी, इशानी वहां नहीं थी|
‘क्या
हुआ प्रत्युष? इतने परेशान क्यों नज़र आ रहे हो’?
‘रात
में सबके सो जाने के बाद मेरे कमरे में आना रैना| मैंने तुम्हारे कहने के अनुसार
रानी के बारे में पता लगाने की कोशिश की थी| मुझे जो जानकारी मिली है उसे देखकर
तुम दंग रह जाओगी’|
‘ऐसी
क्या जानकारी मिली है तुम्हे प्रत्युष’?
‘अभी
नहीं, मेरे कमरे में आना फिर बताऊंगा नहीं दिखाऊंगा भी’| प्रत्युष ने रैना से कहा
और वापस अंदर चला गया|
रात
के लगभग एक बजे जब रैना निश्चित हो गई कि सब सो चुके हैं तब वो चुपके से अपने कमरे
से बाहर निकली और सीढ़ियों से नीचे होती हुई प्रत्युष के कमरे की तरफ बढ़ी| उसे
शशांक के कमरे से कराहने की हल्की आवाज़ आई| रैना का माथा ठनका| उसने दरवाज़े के
की-होल की झिर्री से अन्दर झाँक कर देखा| कमरे में एक लैम्प की अपर्याप्त रौशनी
में भी उसने अपने सामने का नज़ारा भलीभांति देखा| बेड पर रानी और शशांक वही सबकुछ
कर रहे थे जो दिन में लेक के किनारे उन्हें करते हुए रैना ने देखा था| रैना
प्रत्युष के कमरे की तरफ बढ़ गई| उसने प्रत्युष के कमरे का दरवाज़ा हल्के से ढकेला,
दरवाज़ा खुला हुआ था| अन्दर प्रत्युष चिंतित मुद्रा में इधर-उधर टहल रहा था| साफ़
जाहिर था कि वो रैना की ही प्रतीक्षा कर रहा था| प्रत्युष के कमरे में भी एक लैम्प
की अपर्याप्त रौशनी थी|
‘क्या
बात है प्रत्युष? क्या दिखाना चाहते थे तुम मुझे’? रैना ने पूछा|
उत्तर
में प्रत्युष ने अपना लैपटॉप ऑन किया और रैना के सामने घुमा दिया| लैपटॉप स्क्रीन
पर एक न्यूज़ आर्टिकल पेज खुला हुआ था|
न्यूज़
की डेट जुलाई 2001 की थी| उस खबर को पढ़कर रैना को अपनी आखों पर यकीन नहीं हो रहा
था| वो पागलों की तरह न्यूज़ को बार-बार पढ़ रही थी| उसकी सासें उखड़ रही थी, पूरा
जिस्म पसीने से सराबोर हो गया था|
‘मुझे
भी पहली बार ये न्यूज़ पढ़कर यकीन नहीं हुआ था रैना| 6 जुलाई 2001 को रानी दर्पणा
नाम की लड़की की निर्वस्त्र लाश मुन्नार के चाय बागान से पाई गई थी| लड़की
स्लीपवाल्किंग की बिमारी से ग्रस्त थी| पुलिस का अनुमान है कि रात को नींद में
चलते हुए लड़की रास्ते पर निकल गई जहां किसी राह गुज़रते ने उसकी स्थिति का फायदा
उठाते हुए उसके साथ बलात्कार किया और उसकी लाश चाय बागान में फेंक दी’| प्रत्युष
गंभीर भाव से बोला|
रैना
बेड पर अपना माथा पकड़े बैठी थी, उसकी कनपट्टीयाँ सायं-सायं कर रही थीं|
‘ये
केस कभी भी सॉल्व नहीं हुआ और इसे ठंडे बसते में डालकर भुला दिया गया| लेकिन इस
केस के बारे में एक और बात है जो बहुत ही रहस्यमयी है’| प्रत्युष रैना के बगल में
बैठता हुआ बोला|
‘कौन
सी बात’?
‘पोस्टमॉर्टेम
के बाद रानी की लाश उसके घरवालों को अंतिम संस्कार के लिए सुपुर्द करनी थी लेकिन
रानी की इकलौती रिश्तेदार, उसकी नानी की मृत्यु एक साल पहले यानी सन 2000 में ही
हो चुकी थी’|
‘फिर
रानी की लाश का क्या हुआ’?
‘उसकी
लाश को कोई लड़का क्लेम कर के ले गया जिसने अपनी पहचान रानी के बॉयफ्रेंड के रूप
में दी थी| उसके बाद रानी की लाश या उस रहस्यमयी लड़के का क्या हुआ किसी को नहीं
पता’| प्रत्युष बोलकर शांत हुआ|
प्रत्युष
की जगह रैना अब रूम में चिंतित भाव से चहलकदमी कर रही थी|
‘अगर
असली रानी 2001 में मर चुकी है तो फिर ये लडकी कौन है जो खुद को रानी बता रही है?
प्रत्युष! क्या पुलिस रिकॉर्ड में रानी का कोई फाइल फोटो है’?
‘नहीं!
ऐसे केसेस में विक्टिम का फाइल फोटो इन्टरनेट पे नहीं डाला जाता रैना| अगर पुलिस
रिकॉर्ड में फाइल फोटो होगा भी तो मुन्नार पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड रूम की किस
शेल्फ पर कितनी फाइलों के नीचे दबा धूल फांक रहा होगा ये बताना नामुमकिन है’|
‘कुछ
तो गड़बड़ है प्रत्युष, ये लड़की कोई फरेबी है, कोई कॉन गर्ल जो रानी बनी हुई है’|
प्रत्युष
कुछ पल शांत रहा, जैसे खुद में फैसला नहीं कर पा रहा हो कि जो वो रैना से कहने
वाला है उसे वो कहना चाहिए या नहीं| खुद में फैसला कर लेने के बाद प्रत्युष बोला|
‘रैना
कुछ और भी है जो मैं तुम्हे दिखाना चाहता हूँ’|
‘क्या’?
प्रत्युष
ने लैपटॉप पर एक सेव्ड वेबपेज खोला और लैपटॉप रैना के आगे कर दिया|
‘ये
क्या है’? रैना उलझन भरे भाव से बोली|
‘ये
एक पैरानॉर्मल वेबसाइट है रैना, इसपर अलग-अलग तरह की परालौकिक शक्तियों का वर्णन
है| मैं तुम्हें इस ख़ास परालौकिक शक्ति के बारे में बताना चाहता हूँ’| प्रत्युष ने
क्लिक करके एक लिंक खोला|
‘यक्षिणी’?
‘हाँ
यक्षिणी| यक्षिणी वो परालौकिक शक्तियां या वो स्त्रियाँ, लडकियां होती हैं जिनकी
मृत्यु बेहद दर्दनाक हुई हो| कोई ऐसी लड़की जिसके साथ दुराचार करके उसकी हत्या कर
दी गई हो वो एक यक्षिणी का रूप ले सकती है| ये यक्षिणी देखने में बिलकुल आम
जीते-जागते इंसानों के जैसी लगती है, ये इंसानों के बीच भी रह सकती है| ये अपना
शिकार चुनकर उसपर घात लगाती है और शिकार को अपने रूप जाल में फंसा कर पहले उसके
साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाती है फिर उसकी जान ले लेती है’| प्रत्युष एक ही सांस में
बोलता चला गया|
‘क्या
अनपढ़, गंवारों जैसी बात कर रहे हो प्रत्युष!! तुम! तुम से ये उम्मीद नहीं थी
मुझे!! इशानी की मौत को कैसे भूल गए तुम? कैसे भूल गए कि इसी अंधविश्वास ने इशानी
की जान ले ली थी और आज तुम इसी अंधविश्वास के दलदल में धंस रहे हो’!! रैना
प्रत्युष पर बिफर पड़ी और उसके कुछ कहने से पहले ही रूम से बाहर निकल गई|
अगली
सुबह लगभग दस बजे रैना की आँख खुली| आज रानी ब्रेकफास्ट लेकर उसके कमरे में उसे
उठाने नहीं आई थी| रैना को नीचे से कुछ आजें सुनाई दी| वो उठकर सीढ़ियों पर पहुंची|
विकास और प्रत्युष जोर-जोर से शशांक का नाम पुकार रहे थे और उसके कमरे का दरवाज़ा
पीट रहे थे|
‘क्या
हुआ’? रैना सीढ़ियों से नीचे आते हुए बोली|
‘शशांक
दरवाज़ा नहीं खोल रहा, फोन भी नहीं उठा रहा है’| घबराया हुआ विकास बोला|
‘रानी
कहाँ है’? रैना ने पूछा|
‘पता
नहीं| हमलोगों ने पूरे कॉटेज में ढूंढ लिया, रानी का भी कोई अता-पता नहीं है’|
प्रत्युष गंभीर भाव से बोला|
‘गाइस,
दरवाज़ा तोड़ दो’| रैना ने प्रत्युष और विकास को निर्देश दिया जिसका दोनों ने फ़ौरन
ही पालन किया| दरवाज़े की चिटकनी इतनी मज़बूत नहीं थी कि विकास और प्रत्युष के
सम्मिलित बल के आगे अधिक देर ठहर पाती| दरवाज़ा खुल कर दो भाग में झूल गया, सामने
बेड पर शशांक की लाश औंधी पड़ी दिखाई दी|
कहानी
जारी है अंतिम भाग में|
