Saturday, March 10, 2018

Don't Panic

निशा ने मोबाइल क्लॉक पर नज़र डाली, रात के आठ बजे रहे थे।

आज ऑफिस से निकलने में उसे काफी लेट हो गया था। अभी अपार्टमेंट पहुंचने में उसे आधा घन्टा और लगना था।

हालांकि उसके ऑफिस से अपार्टमेंट की दूरी महज़ पंद्रह मिनट थी यदि वो कोई टैक्सी ले लेती लेकिन निशा की यह रोज़ की आदत थी कि वो ऑफिस से अपार्टमेंट तक वॉक लेती थी।

पर आज बात अलग थी, उसका दिन काफी व्यस्त और थका देने वाला गुज़रा था। उसका जी चाह रहा था कि आज घर तक जाने के लिए वो टैक्सी या कैब ले ले।

निशा ने इधर-उधर देखा, दूर से एक टैक्सी उसे अपनी ओर आती दिखाई दी। निशा उसे रुकने का इशारा कर ही रही थी कि उसका मोबाइल बज उठा।

कॉल आदित्य का था।

उस दिन आदित्य का यह उसे सोलहवां कॉल था। सुबह से निशा आदित्य के कॉल अवॉयड कर रही थी। वो इसी पशोपेश में थी कि अभी भी उसका कॉल रिसीव करे या नहीं। उसकी इस उधेड़बुन में टैक्सी उसके सामने से निकल गई।

'अगर इसका कॉल रिसीव नही किया तो ये चैन से जीने नहीं देगा'। निशा ने झुंझलाते हुए कॉल पिक की।

'व्हाट डू यू वॉन्ट आदि'!

'बेब्स! प्लीज फॉरगिव मी..प्लीज...प्लीज़'! दूसरी तरफ से आदित्य की गिड़गिड़ाती हुई आवाज़ आई।

'यू फ़िल्थी सकॉउंडरेल!! हाऊ कुड यू इवन आस्क फ़ॉर माय फॉरगिवनेस ऑफ्टर फकिंग दैट बिच'!!

'अ... आई एम सॉरी बेब्स! आई स्वेअर इट वॉज़ जस्ट ए वन टाइम थिंग...अ... आई गॉट कॅरिड अवे..'

'वाऊ, आई एम सो रेलीव्ड'!

'रियली'?

'गेट द सरकैज़्म ऎसहोल'!!

'अरे लिसेन ना बेब्स...'

'नो यू लिसेन यू क्रीप!! डोंट यू "बेब्स" मी!! अगर अब एक बार भी तेरा नंबर मेरे फ़ोन पर फ़्लैश हुआ ना...आई स्वेअर पहले तेरा नंबर ब्लॉक करूँगी फिर तेरे अगेंस्ट हैरेसमेंट केस फ़ाइल करूँगी! गो फक योरसेल्फ'!! निशा ने फोन काट दिया और कुछ देर तक मोबाइल को घूरती रही। आदित्य का कॉल दोबारा नहीं आया।

निशा और आदित्य एक ही मल्टी नैशनल कंपनी में काम करते थे, निशा मार्केटिंग ऐंड मैनेजमेंट डिवीज़न में थी और आदित्य टेक्निकल डिवीज़न में। निशा और आदित्य तीन साल से एक दूसरे को सीरियसली डेट कर रहे थे, कुछ दिन पहले ही दोनों का ब्रेकअप हुआ था जब आफ्टर ऑफिस ऑवर निशा ने आदित्य को एच आर स्टाफ सोनिया शर्मा के साथ 'क्विकी' के बीच पकड़ा था।

उस दिन से आदित्य लगातार निशा से मिन्नतें कर रहा था और माफी मांग रहा था लेकिन निशा उसे माफ करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं थी।

आठ बजकर दस मिनट बीत चुके थे। निशा ने अपार्टमेंट तक वॉक लेने का फैसला किया। जब भी वो स्ट्रेस में होती थी तो खुद को 'अन विंड' करने के लिए वाक करती थी। आज भी वो काफी स्ट्रेस में थी, आदित्य ने उसका मूड बुरी तरह स्पॉइल कर दिया था। एकबार फिर उसके ज़ख्म हरे कर दिए थे।

निशा को मन ही मन गुस्सा आ रहा था। उसे ध्यान आया कि आज उसने लंच भी ठीक से नहीं किया, सुबह आफिस जल्दी पहुंचने के चक्कर मे ब्रेकफास्ट भी स्किप कर दिया था और अभी घर पहुंचकर डिनर बनाने की ना उसमें इच्छा थी ना हिम्मत।

निशा ने फ़ूड फैंटेसी का नंबर डायल किया। फ़ूड फैंटेसी निशा के अपार्टमेंट के पास ही सेक्टर मार्किट में एक लोकल फ़ूड जॉइंट था। यहां का खाना निशा को खासा पसंद था, जब भी उसके पास खाना बनाने का समय नही होता था या फिर उसका मन बाहर का खाना खाने का होता था वो यहीं से खाना ऑर्डर करती थी।

'हैल्लो फ़ूड फैंटेसी, मैं गैलेक्सी अपार्टमेंट से बोल रही हूँ, फर्स्ट फ्लोर, फ्लैट नम्बर 8 से। होम डिलीवरी के लिए ऑर्डर देना है'।

'यस मैडम, बोलिए'।

'एक प्लेट मटन बिरयानी भिजवा देना, एक्स्ट्रा स्पाइसी और पीसेस ढंग के रखना'।

'ओके मैडम, आपका ऑर्डर आधे घण्टे में...'

'नहीं आधे घंटे में नहीं, ऑर्डर एक घंटे में डिलीवर करना, साढ़े नौ बजे तक'। निशा कुछ सोचते हुए बोली, वो घर जाकर पहले रिलैक्स करना चाहती थी और एक शॉवर लेना चाहती थी।

'ओके मैडम आपका ऑर्डर साढ़े नौ बजे डिलीवर हो जाएगा'। दूसरी तरफ से आवाज़ आई और फोन कट गया।

निशा ने मोबाइल का म्यूजिक प्लेयर ऑन किया और ईयर प्लग्स कान में लगाने लगी, अचानक वो कुछ देखकर ठिठकी। फोन पर बात करते  हुए शायद उसने बेध्यानी में गलत रास्ता पकड़ लिया था।

जो रास्ता गैलेक्सी अपार्टमेंट को जाता था उसके ठीक उल्टे रास्ते पर आ गई थी निशा। ये रास्ता एक सुनसान डंपयार्ड को जाता था। इस रास्ते पर प्रॉपर स्ट्रीट लाइट्स भी नहीं थी।

निशा ने आस-पास देखा, कोई इंसान या जानवर नज़र नही आ रहा था। सामने थोड़ी दूर पर एक स्ट्रीट लाइट की रोशनी में उसे डम्पयार्ड नज़र आया। उस रास्ते पर वो इकलौती स्ट्रीट लाइट थी जो जल रही थी।

निशा के शरीर ने डर से झुरझुरी ली।  वो पीछे मुड़ी और तेज़ कदमों से चलते हुए वापस जाने लगी। वो जल्द से जल्द वहां से निकल जाना चाहती थी।

अचानक निशा के कदम ठिठक गए। उसे ऐसा लगा कि उसने किसी चीज़ की आवाज़ सुनाई। वो किसी चीज़ को काटे जाने की  आवाज़ थी।  जैसे कुल्हाड़ी या गड़ासे जैसे किसी हथियार से कुछ काटा जा रहा हो। आवाज़ डंपयार्ड की तरफ से आ रही थी।

निशा का दिल बार बार उसे वहां से भाग जाने को कह रहा था लेकिन दिमाग उस आवाज़ पर अटका हुआ था।

सावधानीपूर्वक बिना आवाज़ के कदमों से चलते हुए निशा उस इकलौती जलती स्ट्रीट लाइट के करीब पहुंची। वहां से उसे डंपयार्ड ज़्यादा साफ नजर आया।

निशा की आँखें भय से पथरा गयीं, एक पल को उसे लगा कि शायद अंधेरे में उसका दिमाग उसे कुछ गलत दिखा गया। सामने डंपयार्ड पर कचरे और कबाड़ के ढेर के पीछे एक शख्स था जिसकी पीठ निशा की ओर थी। उसके हाथ मे एक गड़ासा था जिससे वो बेतहाशा कुछ काट रहा था। वो क्या काट रहा था यह निशा को नज़र नही आया।

निशा ने एक कदम आगे बढ़ाया, उस शख्स के पैरों के पास एक बोरा पड़ा था जिसका मुँह बंधा हुआ था। उस बोर के चारों ओर बहुत सारा खून बिखरा हुआ था और उस शख्स के हाथ मे थमा गड़ासा भी खून से लिसड़ा हुआ था।

निशा के मुंह से एक सिसकारी निकली।

वो शख्स बेतहाशा गड़ासा चलाना छोड़कर निशा की तरफ पलटा। उसने एक काला रेनकोट पहन रखा था और चेहरे पर भी काला रबर मास्क था  जिनपर खून के ढेरों धब्बे नज़र आ रहे थे।

वो शख्स एक पल को चौंका, उसे शायद वहां किसी के आ जाने की उम्मीद नही थी। फिर वो निशा की ओर बढा।

निशा जोकि अबतक भय से जड़वत थी अचानक जैसे उसके पूरे वजूद में विद्युत प्रवाह का संचार हुआ। निशा पलटी और बेतहाशा भागने लगी।

'हैल्प-हैल्प'!! निशा दो बार चिल्लाई लेकिन उसे फौरन ही समझ आ गया कि उस सुनसान में कोई उसकी मदद करने नहीं आने वाला। चिल्लाकर वो अपनी एनर्जी बर्बाद करेगी।

निशा बेतहाशा भाग रही थी। वो जल्द से जल्द उस सुनसान इलाके से निकलना चाहती थी। उसने पीछे मुड़ कर देखा, उसके पीछे कोई नहीं था।

भागते हुए अब वो मेन रोड पर आ गई जो उसके अपार्टमेंट को जाती थी। इस रास्ते पर अभी भी चहलपहल थी। निशा ने चैन की सांस ली।

एक लैंप पोस्ट के नीचे कुछ देर रुककर उसने अपनी उखड़ी हुई साँसों को स्थिर होने दिया। वो यह भी देखना चाहती थी कि कहीं वो गड़ासे वाला शख्स उसके पीछे तो नहीं आ रहा। यहां लोगों के बीच मे खुलेआम वो उसपर झपटने का दुस्साहस नहीं करता।

कुछ देर बाद निशा आश्वस्त हो गई कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा था। वो अपने अपार्टमेंट पहुंची।

नीचे कंपाउंड में गार्ड नदारद था। रात के समय कई मौकों पर निशा ने गार्ड को नदारद पाया था। उसने मन ही मन फैसला किया कि इसबार वो मेंटेनेन्स ऐंड सिक्योरिटी चार्जेज नहीं देगी और सोसाइटी मीटिंग में उस गार्ड की शिकायत भी करेगी।

अपने अपार्टमेंट पहुंचने तक निशा थकान से चूर हो चुकी थी। उसने अपना ऑफिस बैग एक ओर उछाला और खुद सोफे पर ढ़ेर हो गई।

निशा को पता ही नहीं चल कि थकान के कारण कब उसकी आंख लग गई।
निशा की आंख एक खटके की आवाज़ के साथ खुली, ऐसा लग जैसे कोई किसी चीज़ से टकराया हो।

निशा एक झटके से चौंक कर बैठ गई। उसने वॉल क्लॉक पर नज़र डाली, साढ़े नौ बजे रहे थे, उसे अंदाज़ ही नहीं लगा कि वो पौने घन्टे के लिए सो गई थी।

एकबार फिर कहीं से कोई आवाज़ उभरी।

'क...कौन है'?

कोई जवाब नहीं आया।

निशा भाग कर अपार्टमेंट के मेन डोर तक गई, डोर लॉक्ड नहीं था। दरवाज़े में एक हल्की सी झिर्री खुली हुई थी। उसने अपने दिमाग पर ज़ोर डालने की कोशिश की, क्या उसने आने के बाद दरवाज़ा अंदर से लॉक किया था? उसे ठीक से कुछ भी याद नहीं आया।

अपार्टमेंट के अंदर से फिर हल्की सी आवाज़ उभरी।

'क...कौन है'?
इस बार भी कोई जवाब नहीं आया।
निशा भागते हुए लिविंग रूम से लगे हुए ओपन किचेन एरिया में पहुंची, वहां से उसने नाइफ स्टैंड से एक बड़ा चाकू अपने कब्जे में किया।

अंदर बैडरूम से दोबारा सरसराहट की आवाज़ हुई, निशा सावधानीपूर्वक एक एक कदम फूंक फूंक कर रखते हुए बैडरूम की तरफ बढ़ी।
भय और उत्तेजना से निशा का दिल उसके सीने के पिंजर पर धाड़-धाड़ चोट कर रहा था।
बैडरूम का दरवाजा लगा हुआ था, निशा ने आहिस्ता से दरवाज़े को धकेला, दरवाज़ा हल्की आवाज़ करते हुए आधा खुल गया। क्या दरवाज़े के पीछे कोई छुपा हुआ था? निशा की उंगलियां चाकू के हत्थे पर मज़बूती से कस गए। अपना चाकू वाला हाथ उसने वार करने के लिए हवा में उठा लिया।

बिना आवाज़ वो चौखट से अंदर आई। निशा ने पूरी फुर्ती से दरवाज़ा खोल और उसका चाकू वाला हाथ हवा में लहराते हुए नीचे आया।
वार खाली गया, वहां कोई भी नहीं था।

क्या उसके ऊपर कोई पीछे से घात लगाने की फ़िराक में था?

निशा तेज़ी से पीछे घूमी और अपना चाकू वाला हाथ हवा में लहराने लगी। हर वार खाली गया, वहां कोई नहीं था।

'क...कौन है यहां! स... सामने आओ। मुझे पता है तुम यहीं छुपे हुए हो'। निशा ने हिम्मत जुटाते हुए कहा।

कोई जवाब नहीं मिला।

उसने झुककर बेड के नीचे झांका, कमरे के हर कर्टेन के पीछे, अटैच्ड बाथरूम, कमरे से लगी हुई बालकनी, वॉर्डरोब हर जगह उसने चेक किया, वहां कोई ना था।

निशा ने चैन की सांस ली। शाम की घटना ने उसके दिलोदिमाग पर काफी गहरा असर किया था जिसका यह नतीजा था कि उसे ऐसे वहम हो रहे थे।

'डोंट पैनिक निशा...डोंट पैनिक'। निशा ने खुद को ही समझाते हुए कहा।

लिविंग रूम से मेन डोर खुलने की आवाज़ हुई।

निशा की कंपट्टियाँ सायं-सायं करने लगी। उसे वह नहीं हुआ था, वाकई वहां कोई था। निशा चाकू वाला हाथ उठाए हुए लिविंग रूम की तरफ बढ़ी।

उसी समय अपार्टमेंट की लाइट चली गई, पूरे अपार्टमेंट में घुप्प अंधकार छा गया।

'ये लाइट कैसे चली गई! लाइट जाने की स्थिति में तो घर का पावर बैकअप सिस्टम शुरू हो जाता है'। निशा ने मन मे सोचा।

घबराहट से उसके हाथ-पैर फूल रहे थे। उसे लग रहा था इस अंधेरे में कहीं से भी वो हमलावर उसपर झपट पड़ेगा। वो दीवार से अपनी पीठ लगा कर अंधेरे में सरकते हुए लिविंग रूम की तरफ बढ़ रही थी।

निशा को ध्यान आया कि उसका मोबाइल फोन अब भी उसकी बैकपॉकेट में था, उसने मोबाइल निकाला और उसकी फ़्लैशलाइट ऑन की। अबतक वो लिविंग रूम में आ चुकी थी, उसके मोबाइल की फ़्लैशलाइट जैसे ही सामने दरवाज़े पर पड़ी उसे ऐसा लग जैसे वहां से कोई साया अंधेरे में गुज़रा हो।

निशा के एक हाथ मे चाकू और दूसरे में मोबाइल था, दोनों ही उसने मज़बूती से पकड़ रखे थे। उसने मोबाइल की फ्लैशलाइट कमरे में चारों ओर घुमाई, वहां कोई ना था। उसी समय लाइट वापस आ गई। निशा ने सबसे पहले मेन डोर अंदर से लॉक किया। दरवाज़ा लॉक करके उसने अपनी पीठ दरवाज़े से लगा ली और आँखें बंद कर लीं। उसके दिमाग की नसों में खून नगाड़े की तरह धाड़-धाड़ बज रहा था। साँसें उखड़ी हुई थीं। खुद को व्यवस्थित करने में उसे थोड़ा समय लगा।

निशा ने आँखें खोली, उसके ठीक सामने ओवरकोट और ब्लैक मास्क वाला शख्स खड़ा था। उसका गड़ासे वाला हाथ हवा में उठा हुआ था।

निशा की आँखें कटोरियों से बाहर उबलने को उतारू हो गईं, उसने चीखने के लिए मुंह खोला लेकिन चीख उसके गले से बाहर नहीं निकल पाई गड़ासा उसके गले मे आ धँसा, खून का फौवारा उबल पड़ा।

निशा ने चौंक कर आंखें खोली, उसका पूरा शरीर पसीने से यूं तर था जैसे उसके ऊपर किसी ने घड़ों पानी डाल दिया हो।

'य...ये तो स...सपना था! म...मैं सपना देख रही थी'। निशा हांफते हुए खुद में ही बड़बड़ाई।

उसकी नज़रें वॉल क्लॉक पर पड़ी, घड़ी में साढ़े नौ बजे रहे थे।

निशा किसी स्प्रिंग लगी गुड़िया की तरह उछलती हुई लिविंग रूम के मेन डोर तक पहुंची। उसने दरवाज़ा चेक किया, दरवाज़ा अच्छी तरह से अंदर से लॉक्ड था। उसके बाद उसने अपार्टमेंट का चप्पा-चप्पा छान मार, उसके अलावा वहां कोई नहीं था।

उसने चैन की सांस ली।

निशा को ध्यान आया कि उसका ऑर्डर अभी तक डिलीवर नहीं हुआ।
उसने फ़ूड फैंटेसी का नंबर डायल किया।

'हैल्लो'।

'गैलेक्सी अपार्टमेंट से बोल रही हूँ, मेरा ऑर्डर अभी तक डिलीवर नहीं हुआ'!

'मैडम लड़का निकल है आपका ऑर्डर ले के। रास्ते मे उसे तीन-चार और भी डिलीवरी देनी है कहीं फंस गया होगा, आता ही होगा'।

'मैंने कहा था मुझे साढ़े नौ में डिलीवरी चाहिए! अब आपके डिलीवरी बॉय को उसके आगे-पीछे चार डिलीवरी करनी है या चार सौ इससे मुझे क्या मतलब! मुझे अपने डिलीवरी बॉय का नाम और कॉन्टैक्ट नंबर बताइए'। निशा सख्ती से बोली।

'जी मैडम नोट करिए'।

निशा ने फटाफट नाम और नम्बर नोट किए और कॉल कट कर दी।
उसने डिलीवरी बॉय का नंबर डायल किया, रिंग जाती रही लेकिन कॉल नहीं पिक हुआ।
निशा ने घड़ी पर निगाह डाली, नौ बजकर चालीस मिनट हो रहे थे।

'जबतक ये डिलीवरी बॉय नहीं आता तबतक एटलीस्ट शॉवर ही ले लेती हूँ', निशा ने सोचा और अपने कपड़े उतारते हुए बैडरूम की तरफ बढ़ गई।

काफी देर तक निशा शॉवर के नीचे सर झुकाए खड़ी रही। ठंडे पानी की जिस्म पर पड़ती फुहारें जैसे उसके शरीर की हर अकड़न को सुकून दे रही थी। उसकी थकान और उसके वजूद पर हावी हुआ डर जैसे धुलता जा रहा था।

शॉवर से निकल कर निशा बाथरूम में लगे लाइफ साइज मिरर के सामने खड़ी हुई। आईने में खुद को ध्यान से देख रही थी वो, आखिर क्या कमी थी उसमे! वो खूबसूरत थो, स्मार्ट और इंडिपेंडेंट थी और हर लिहाज से उस बंदरिया से बेहतर थी जिसके साथ उसने आदित्य को गुलाटी खाते पकड़ा था।

आदित्य की याद आते ही निशा का चेहरा उदास हो गया। वो वाकई आदित्य से प्यार करती थी, लेकिन उसकी उस हरकत के बाद उसपर विश्वास कर पाना निशा के लिए संभव नहीं था।

निशा की इस विचार तन्त्रा को एक आवाज़ ने भंग किया। एक अजीब सी सरसराहट जैसी आवाज़ थी वो। निशा ने लपक कर टॉवल अपने गीले शरीर के इर्दगिर्द लपेटा।

उसे ऐसा लग जैसे वो सरसराहट की आवाज़ बाथरूम में ही कहीं से आ रही थी। निशा ध्यान से कान दीवार से लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी। आवाज़ बाथरूम की बाहरी दीवार से गुज़रते पाइप से आ रही थी।

पानी का पाइप अपार्टमेंट बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर से टेरेस तक जाता था और हर अपार्टमेंट के बाथरूम की बाहरी दीवार से गुजरता था जिसके एक तरफ बाथरूम की खिड़की खुलती थी और दूसरी तरफ अपार्टमेंट की बालकनी। निशा भाग कर खिड़की तक पहुंची। उसने खिड़की खोलकर जब बाहर झांका तो उसकी चीख़ निकल गई। सर से पैर तक काले चुस्त कपड़े पहने एक नकाबपोश पानी के पाइप से चढ़कर उसके अपार्टमेंट की बालकनी तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था।

निशा चीखते हुए बाथरूम से बाहर निकली। ठीक उसी समय अपार्टमेंट की डोरबेल बजी। डर निशा के ऊपर बुरी तरह हावी हो गया था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके दिमाग मे सोचने समझने की शक्ति शेष नही थी।

निशा भागते हुए किचेन में पहुंची और नाइफ स्टैंड से एक चाकू उसने खींच निकाला। इस बीच डोरबेल लगातार बज रही थी। निशा दरवाज़े तक पहुंची। पूरी हिम्मत बटोर कर उसने दरवाज़ा खोला।

डिलीवरी बॉय आवाक था। ऐसे दृश्य की उसने कल्पना भी नहीं की थी। पानी मे सर से पैर तक भीगी हुई खूबसूरत लड़की जिस्म पर सिर्फ एक तौलिया ओढ़े और हाथ में चाकू लिए उसके सामने खड़ी थी।

'म...मैडम आपका ऑर्डर'!!

'क..क.. कौन हो तुम'?

'मैं विष्णु मैडम, फ़ूड फैंटेसी से। आपने मटन बिरयानी का ऑर्डर दिया था'। विष्णु ने अपने हाथ मे थम हुआ पैकेट उसके सामने लहराया।

निशा कुछ समझ नहीं पा रही थी।

'आप ठीक तो हैं'? विष्णु ने सशंकित भाव से पूछा, उसे आशंका थी कि निशा किसी भी पल अपने हाथ मे थमे चाकू से उसका काम तमाम कर देगी।

'न..नहीं..मैं ठीक नहीं हूँ। कोई मुझे मारने की कोशिश कर रहा है'।

'मारने की कोशिश कर रहा है? कौन?'

'पता नहीं, मैंने एक नकाबपोश को वॉटर पाइपलाइन से अपनी बालकनी में चढ़ते देखा'। निशा डर से कांप रही थी।

'डोंट पैनिक मैम। मैं देखता हूँ, आपकी बालकनी किस तरफ है'?

'उधर, बैडरूम से लगे हुए'। निशा ने हाथ से इशारा किया।

विष्णु लिविंग रूम में दाखिल हुआ। हाथ मे थमा खाने का पैकेट उसने एक साइड टेबल पर रख दिया फिर उसने चारों ओर नज़र घुमाई। बुक शेल्फ पर उसे एक ब्रॉन्ज़ स्टेचू रखी दिखाई दी। स्टेचू भारी थी और उसे आसानी से हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता था।
विष्णु ने स्टेचू अपने कब्जे में की। फिर विष्णु हाथ मे स्टेचू और निशा हाथ मे चाकू लिए हुए बैडरूम की तरफ बढ़े।

विष्णु ने बैडरूम का दरवाजा सावधानीपूर्वक खोला, अंदर कोई नहीं था। निशा ने बैडरूम से बालकनी को जाते दरवाज़े की ओर इशारा किया। विष्णु पूरे एहतियात के साथ उधर बढा, निशा उसके ठीक पीछे थी।

बालकनी के दरवाजे की चिटकनी अंदर से लगी हुई थी यानी बालकनी पर चढ़ने के बावजूद कोई कमरे में दाखिल नहीं हो सकता था।

विष्णु ने आहिस्ता से दरवाज़े की चिटकनी नीचे सरकाई। दरवाज़ा एक ज़ोरदार धक्के के साथ खुल गया। दरवाज़ा जिस फोर्स से खुला था वो सीधा विष्णु से टकराया, विष्णु पछाड़ खाकर पीछे बेड पर गिरा।

काला लिबास पहने और हाथ मे चाकू लिए एक नकाबपोश हुंकार भरता हुआ अंदर दाखिल हुआ। निशा ये दृश्य देखकर बेतहाशा चिल्ला रही थी।
एक पल के लिए नकाबपोश भी आवाक होकर स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा था। उसने एक नज़र बेड पर गिरे विष्णु पर डाली फिर उसने कमरे में एक कोने में खड़ी, डर से चिल्लाती निशा को देखा। वो हुंकार भरते, हाथ मे चाकू उठाए निशा की ओर लपका।

यूं तो निशा ने सोचा था कि वो पूरी दिलेरी से, बिना डरे अपने हाथ मे थमा चाकू हमलावर के सीने के पार उतार देगी लेकिन उसे अपनी ओर लपकता देख उसके हाथ से छूटकर चाकू कब नीचे गिर गया उसे पता ही नही चला। मौत को सामने से लपकता देखकर डर से निशा ने अपनी आँखें भींच ली।

'भड़ाक' एक जोरदार आवाज़ हुई, उसके बाद किसी के गिरने की आवाज़ हुई।

निशा ने अपनी आँखें खोली, सामने विष्णु हाथ मे स्टेचू लिए खड़ा था और हमलावर निचे फर्श पर धराशाई था। विष्णु ने उसके सर पर पीछे से भरपूर प्रहार किया था।

'मैं सही समय पर संभल गया मैडम जी वर्ना आप तो निकल लेतीं'। विष्णु ने मज़ाक में कहा।

'बेब्स! डोंट यू वरी, मैं आ गया हूँ!! मैं तुम्हे उस साइको किलर से बचाऊंगा'।

लिविंग रूम से आवाज़ आई।

'आदित्य'?? निशा उस आवाज़ को साफ पहचानती थी, वो आदित्य था।

'बेब्स...मेरे रहते कोई तुमको छू भी नहीं सक..' बोलते हुए आदित्य ने बैडरूम में किसी फिल्मी हीरो की तरह एंट्री ली।

लेकिन एंट्री लेते ही उसके सामने जो सीन था उसे समझना उसके लिए मुश्किल था।

'बेब्स! ये लड़का कौन है? और...और तुम इसके साथ बैडरूम में सिर्फ टॉवल में क्या कर रही हो'!! आदित्य खा जाने वाली निगाहों से विष्णु को घूरते हुए बोला।

निशा को पहली बार अहसास हुआ कि तब से लेकर अभी तक वो सिर्फ एक टॉवल में है।

'और ये साइको किलर को क्या हो गया'! आदित्य की नज़र ज़मीन पर कालीन की तरह बिछे हुए नकाबपोश पर पड़ी।

'एक मिनट! तुम यहाँ क्या कर रहे हो आदि? और तुम्हे कैसे पता चला कि मेरे घर मे साइको किलर घुसा है'। निशा आदित्य पर बिफरी, उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे।

'व..व..वो..म..म..मैं' आदित्य को शब्द नहीं मिल रहे थे अपना बचाव करने के लिए।

'आह'! नकाबपोश के मुंह से एक कराह निकली।
अपना सर पकड़ कर वो फर्श पर हौले से उठ बैठा। वो अपने आसपास का सीन समझने की कोशिश कर रहा था। उसकी नज़र आदित्य पर पड़ी।

'आदित्य!! भो$@*^%...पहले क्यों नही बताया कि निशा अपार्टमेंट में अकेली नहीं होगी'!! नकाबपोश ने खुद ही अपने चेहरे से मास्क उतार फेंका और अपने सर पर फूल आया गूमड़ सहलाने लगा।

'विक्की!! ये तो विक्की है, आदित्य का बेस्ट फ्रेंड'!! निशा आवाक उसे देखते हुए बोली।

'आदि!! ये सब क्या हो रहा है' निशा ने सर्द आवाज़ में आदित्य से पूछा। आदित्य के पास सच बोलने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था, उसने हथियार डाल दिए।

'ये मेरा ही प्लान था। विक्की यहां साइको किलर बनकर आएगा और तुम्हे डराएगा, फिर मैं आकर तुम्हे उससे बचा लूँगा। मुझे लगा इसके बाद तुम मुझे माफ़ कर दोगी'। सर और नज़रें झुकाए आदित्य ने एक ही सांस में कहा।

'रियली आदि!! दिस इज़ ए न्यू लो, इवन फ़ॉर योर स्टैंडर्ड्स'!! निशा आहत भाव से बोली।

'बट बेब्स...'

'आई डोंट वॉन्ट टू लिसेन ऐनी थिंग, ऑल ऑफ यू जस्ट लीव'।  निशा बाहर मेन डोर की तरफ इशारा करते हुए बोली।

आदित्य ने चुपचाप वहां से कट लेने में ही अपनी भलाई समझी, विक्की भी उसके पीछे-पीछे लग लिया।

'थैंक्स फ़ॉर योर हेल्प विष्णु'। निशा ने विष्णु से कहा।

विष्णु ने महसूस किया कि अपनी मौजूदा स्थिति में निशा काफी असहज महसूस कर रही थी।

'मैं भी चलता हूँ मैम'। कहते हुए विष्णु भी दरवाज़े की ओर बढ़ गया।

दरवाज़े पाह पहुंच कर वो ठिठका। उसकी नज़र साइड टेबल पर रखे पार्सल पर थी जोकि वो लाया था।

'डोंट फॉरगेट टू हैव योर डिनर मैम, और अगर हमारी सर्विस अच्छी लगी हो तो हमारे फ़ूड ऐप पर रिव्यु ज़रूर दीजिएगा'। विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा।

'श्योर'। निशा भी मुस्कुराई।

विष्णु दरवाज़े से बाहर निकल गया, निशा ने अच्छे से दरवाज़ा लॉक किया, उसने घर के सभी खिड़की दरवाज़े डबल चेक किए। सबकुछ अंडर कंट्रोल था। निशा ने चैन की सांस ली। उसने अपनी नाईट ड्रेस पहनी और फ्रिज से कोक निकाल कर ग्लास में डाली और पार्सल लेकर खाने बैठ गई।
वो आज के दिन को बुरे सपने की तरह भूल जाना चाहती थी। उसे अभी भी आदित्य पर बुरी तरह गुस्सा आ रहा था, ऐसा वाहियात प्लान वो सोच भी कैसे सकता था।

फिर उसके दिमाग मे डंपयार्ड वाली घटना कौंधी। वो आदि का सेटअप नहीं था। आखिर क्या था उस बन्द बोरी में जिसे वो नकाबपोश गड़ासे से काट रहा था।

निशा ने उस विचार को दिमाग से झटका, वो खाने पर कंसन्ट्रेट करना चाहती थी, मटन बिरयानी वाकई लाजवाब बनी थी और आज पीसेस भी काफी बड़े और अच्छे था।

उसने एक पीस अपने मुंह मे डाला, अचानक कुछ देखकर निशा की आँखें फ़टी रह गईं।  उसका पूरा शरीर सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा उसके हाथ से बिरयानी का डब्बा छूट कर फर्श पर जा गिरा, सारा खाना फर्श पर बिखर गया। खाने के बीच पीसेस थे और एक कटी हुई उंगली...इंसान की उंगली।

निशा खुद को उल्टी करने से नहीं रोक पाई।

फिर उसे कुछ ख्याल आया। वो बेतहाशा भागती हुई अपार्टमेंट से बाहर निकली।

'आदि!! आदि!!' वो पागलों की तरह आदि को पुकार रही थी।

रात के साढ़े ग्यारह बजे चुके थे, सड़क सुनसान हो चुकी थी।  निशा पागलों की तरह आगे भागी, फिर ठिठक कर रुक गई। सामने एक अंधेरी गली में मोड़ पर उसे आदि नीचे गिरा हुआ दिखाई दिया।

'आदि'!! निशा भाग कर उसके पास पहुंची।

'मैं आपका ही वेट कर रहा था मैम, मुझे पता था कि आप खाना खाते ही पर्सनली रिव्यु देने आएंगी'।

गली से विष्णु बाहर निकला रहा था। उस घड़ी उसके शरीर पर वही रेनकोट था जोकि उसने डंपयार्ड वाले शख्स को पहने देखा था। विष्णु के एक हाथ मे ब्लैक रबर मास्क था और दूसरे में खून से सना हुआ गड़ासा।

'त..तुम'!!

'जी मैं! में तो अपना खाना बनाने की तैयारी ही कर रहा था जब आप अचानक से मेरी शिकार की जगह आ टपकी। मुझे बिना मेहमान नवाज़ी का मौका दिए ही आप भाग निकली। मैं आपके पीछे आया लेकिन आप मुझे इस विष्णु वाले रूप में पहचान नही पाई'।

'फिर आपके लिए मैंने ये सरप्राइज प्लान किया। जब आपके पीछे मैं आपके अपार्टमेंट तक आया उसके कुछ ही देर बाद वहां विष्णु नाम का लड़का आपका खाने का पार्सल लेकर पहुंचा। मैंने उसे मार कर वो पार्सल हांसिल किया। आपकी मटन बिरयानी को और लज़ीज़ बनाने के लिए मैंने उसमे अपना कुक किया स्पेशल मीट डाल दिया। जब आपने मुझे डंपयार्ड में देखा था उस समय मैं खाना बनाने की तैयारी ही कर रहा था। मैंने सोचा आपको यह सरप्राइज पसंद आएगा आफ्टर ऑल शेयरिंग इज़ केयरिंग '।

'लेकिन मुझे नही पता था कि आपके घर पर तो ऑलरेडी ड्रामा चल रहा था'।

'क.. क्या चाहते हो तुम'!

'बस एक चीज़...डोंट पैनिक मैम'।
नकाबपोश ने कहा और उसका गड़ासे वाला हाथ हवा में लहराया।

समाप्त

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