Thursday, March 29, 2018
RAINA @ MIDNIGHT TEASER
Monday, March 26, 2018
Where's the Werewolf - Conclusion.
आसमान में उस घड़ी चाँद के आपास से बादल छंट गए थे, पूर्णमासी का चाँद सीपी से निकले किसी
Friday, March 23, 2018
Aaranyak ke Sanrakshak First Look
मोक्ष के जीवन का एक ही उद्देश्य था, माया को अपना बनाना किन्तु माया किसी पुरुष के प्रेमपाश में बंध कर रहने वाली लड़की नहीं थी।
मोक्ष जितनी बेइंतहा मुहब्बत माया से करता था उतनी ही नफरत माया मोक्ष से करती थी।
आरण्यक...एक ऐसा संसार जहां मानव, पशु, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, विलक्षण पशुमानव, दानव, ब्रह्मराक्षस सभी बसते थे। एक ऐसी दुनिया जो ऐयारी, जादूगरी, तंत्र और तिलिस्म और दैवीय शक्तियों से भरपूर थी।
एक ऐसी सभ्यता जिसका अस्तित्व आरण्यक के दो सर्वशक्तिशाली राज्यों अरावली और वरुणावर्त के उत्तराधिकारियों मोक्ष और माया के मिलन पर टिका था।
क्या हुआ जब माया और मोक्ष टकराए? क्या हुआ जब मुहब्बत की बिसात पर ऐयारी और चालबाज़ी की बाज़ी बिछी? जब तिलिस्म और तंत्र टकराये अतिमानवीय शक्तियों से!
जवाब लेकर जल्द ही प्रस्तुत होगा धारावाहिक उपन्यास 'आरण्यक के संरक्षक' ।
Thursday, March 22, 2018
RAINA@MIDNIGHT FIRST LOOK
देश मे आज भी प्रतिदिन सैकड़ों बेकसूर महिलाएं भूत-प्रेत, चुड़ैल-डायन जैसे अंधविश्वास के नाम पर या तो मौत के घाट उतार दी जाती हैं या उन्हें मौत से भी बदतर जीवन जीने पर विवश होना पड़ता है। सिर्फ पिछड़े गांव-कस्बे ही नहीं, बड़े और उन्नत मेट्रोपोलिटन भी अंधविश्वास के इस काले साए से अछूते नहीं हैं। लोग अपने जीवन मे कितनी भी उन्नति कर जाएं लेकिन इस अंधविश्वास की जड़ें उनके वजूद में इतनी गहरी हैं कि उन्हें कभी भी इस अंधकार से निकलने नहीं देती।
अंधविश्वास और चुड़ैल के नाम पर प्रताड़ित की जा रही महिलाओं के लिए लड़ने की मुहिम चलाई रैना प्रधान ने। रैना जोकि एक पीढ़ी लिखी और समझदार लड़की है, जिसका मानना है कि दुनिया में सच वही है जिसे विज्ञान मानता हो, जिसे विज्ञान सिद्ध ना कर सके वो सभी कुछ अंधविश्वास है। रैना को विश्वास है कि एकदिन वो यह साबित कर देगी कि डायन और चुड़ैलों का अस्तित्व सिर्फ लोगों के डर और कल्पना का नतीजा है।
क्या होगा जब रैना का आत्मविश्वास टकराएगा समाज के अंधविश्वास से?
Monday, March 12, 2018
Where's the Werewolf
'वाऊ! देखो आज चाँद कितना खूबसूरत नजर आ रहा है'! इशिका ने चहकते हुए कहा।
'हर खूबसूरती के पीछे कोई बड़ी मुसीबत छुपी होती है मैडम'। अमित किसी दार्शनिक की भांति गंभीर भाव से बोला, हालांकि वो बात इसने सिर्फ इशिका को चिढ़ाने के लिए कही थी।
'अच्छा बेटा! तो अब मैं मुसीबत नज़र आने लगी हूँ तुम्हे'! इशिका ने अमित की बांह पर ज़ोर से चिकोटी काटी।
'अरेss..क्या कर रही है पागल लड़की, मेरा बैलेंस बिगड़ जाएगा' अमित ने डगमगाती हुई बुलेट संभालते हुए कहा, उस समय उसकी बुलेट अस्सी की रफ्तार से खाली सड़क पर दौड़ रही थी।
रात के लगभग बारह बज चुके थे और वो दोनों राजनगर रसालगढ़ हाईवे पर जाने के लिए बाईपास रोड से गुज़र रहे थे। यह बाईपास रोड रसालगढ़ के बीहड़ जंगल के बीच से गुज़रती थी।
'हाहाहा... पागल हूँ मैं? अभी दिखाती हूँ तुझे'!! अमित के पीछे बैठी इशिका उसे गुदगुदी करने लगी, अमित के लिए बुलेट संभालना मुश्किल हो गया।
'हाहाहा...मत कर इशिका की बच्ची...तू पक्का एक्सीडेंट करवाएगी'। बुलेट खाली सड़क पर किसी सांप की भांति आड़ी तिरछी रेंगती हुई चल रही थी। उस बाईपास रोड पर दिन में भी मुश्किल से इक्कादुक्का गाड़ी गुज़रती थी, रात में वहां किसी दूसरी गाड़ी के होने का सवाल ही नहीं था इसलिए अमित निश्चिंत था। बस वो यह ध्यान रखने की कोशिश कर रहा था कि इशिका की शरारत में उसका बैलेंस ऑफ ना हो जाए।
'मुझे पागल बोला ना! इतना तो पता होगा कि पूरे चाँद की रात पागलों पर क्या...'
'इशिकाss'
जंगल की तरफ से किसी चार पैरों वाली आकृति ने रोड पर छलांग लगाई। अंधेरे और बुलेट की हेडलाइट में अमित उस आकृति को साफ नहीं देख पाया, उसे सिर्फ कंचों जैसी चमकती दो आँखें दिखाई दीं। वो आकृति कोई बिल्ली या लोमड़ी नहीं हो सकती थी, उसकी हाइट कम से कम पांच फुट थी।
अमित ने बुलेट फुर्ती से दायीं ओर काटी, वो उस आकृति से बुलेट का टकराव होने से बचाना चाहता था।
बुलेट आकृति के बगल से गुज़री।
वातावरण हिंसक भेड़िए की हुंकार से गूंज उठा।
'अमित संभालो वो हमपर झपट रहा...'
इशिका अपनी बात पूरी ना कर पाई, आकृति के नुकीले पंजों का ज़ोरदार वार अमित की पीठ से टकराया, बुलेट एक झटके के साथ लहराई और फिर इशिका के चारों तरफ अंधकार छा गया।
जब इशिका की आंख खुली तब आसमान में बादल छाए हुए थे। इन बादलों के बीच से पूरे चाँद की चांदनी ठीक उसके जिस्म पर पड़ रही थी।
इशिका के कपड़े जगह जगह से फ़टे हुए थे और वो पानी में भीगी हुई थी। उसे अहसास हुआ कि वो एक्सीडेंट वाली जगह पर नहीं थी।उसका जिस्म कंक्रीट की सड़क पर नहीं बल्कि नरम मिट्टी और घास पर था। जंगली घास की गंध और आस पास झींगुरों का शोर उसे साफ सुनाई दे रहा था।
इशिका का सर बुरी तरह चकरा रहा था, वो पीठ के बल लेटी हुई थी। जिसने खुद को उठाने की कोशिश की, उसके पूरे जिस्म में दर्द की लहर दौड़ गई। ये दर्द की लहर उसके दाहिने पैर से उठ रही थी। शायद उसके पैर की हड्डी टूट गई थी।
'अहह... अ.. अमित' बड़ी मुश्किल से इशिका के हलक से कराहती हुई धीमी आवाज़ निकली।
'अ... अमित। कहां हो तुम'?
हर्ररsss...जंगली भेड़िए की गुर्राहट इशिका के कानों में पड़ी। ठीक वैसी ही आवाज़ जैसी उसने एक्सीडेंट के समय सुनी थी।
बड़ी मुश्किल से अपने जिस्म में मौजूद ताकत और इच्छाशक्ति का एक एक कतरा लगा कर किसी तरह इशिका ने अपना सर उचकाया।
इशिका ने देखा कि वो घने जंगल मे एक झील के किनारे लेटी हुई थी। बादल होने की वजह से वहां काफी अंधेरा था।
इशिका ने महसूस किया कि वातावरण में जंगल और वनस्पतियों की गंध के अलावा एक और गंध मिली हुई थी। एक खास, ताँबाई गंध...जैसी खून की होती है।
ठीक उसी समय आसमान से बादल छंटे, पूरे चाँद की रोशनी ने झील के पानी पर प्रतिबिम्बित होकर जैसे वातावरण में एक श्वेत चादर बिछा दी।
चांदनी के उस प्रकाश में इशिका को अपनी आँखों के समक्ष जो दृश्य नज़र आया उसने उसके होश उड़ा दिए।
इशिका के ठीक सामने, झील के पार चार पैरों वाली आकृति अमित के मृत शरीर पर झुकी हुई थी। वो एक पांच फुट ऊंचा भेड़िया था जो अपने पैने दांतों से अमित के जिस्म की खाल कच्चे धागों की तरह उधेड़ रहा था।
पूर्णिमा की रौशनी जैसे ही उस भेड़िए पर पड़ी, भेड़िए के स्वरूप में परिवर्तन होने लगा। चार पैरों की जगह वो भेड़िया अपने पिछले दो पैरों पर इंसान की तरह खड़ा हो गया। उसका कद भी बढ़कर पांच फुट से आठ फुट हो गया था। पूरे चाँद की रौशनी ने उस जंगली भेड़िए को खूंखार वेयरवोल्फ बना दिया।
उसने अपना मुंह ऊपर चाँद की ओर उठाया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा।
इशिका का लहू सर्द होकर जम गया। उसके चेहरे की रंगत सफेद पड़ गई जैसे शमशान की राख उसके चेहरे पर पुती हुई हो।
वेयरवोल्फ ने एक नज़र इशिका को देखा फिर पूरी हिंसकता से अमित के मृत शरीर पर झुका और उसका पेट फाड़ कर उसकी अंतड़ियाँ निकालने लगा।
वो दृश्य इतना वीभत्स था कि इशिका खुद को उल्टी करने से नहीं रोक पाई।
मानवभेड़िये का ध्यान एकबार फिर इशिका की ओर आकर्षित हुए। चांद की रौशनी में उस हैवान का चेहरा बहुत ही वीभत्स नज़र आ रहा था। उसकी कन्जी आँखों से खूँखारता टपक रही थी और उसके जबड़ों से अमित की लाश के चिथड़े और लहू।
हैवान अब इशिका की ओर कदम बढ़ा रहा था। उसकी हैवानियत की प्यास अभी बुझी नहीं थी...
'एक मिनट...एक मिनट'!!
'व्हाट डू यू मीन बाई हैवानियत की प्यास अभी बुझी नहीं थी! आर वी मेकिंग ए शॉर्ट फिल्म ऑर सम ट्रैशी रामसे स्टाइल हॉरर फिल्म फ्रॉम 80s'! इशिका ने मुँह बनाते हुए पूछा।
अमित और शांतनु एकदूसरे का मुंह देखने लगे।
'ऐंड वन मोर थिंग, ये इशिका...आई मीन कैरेक्टर के कपड़े फ़टे हुए और गीले होने के पीछे क्या लॉजिक है'?
'हिट्स ऐंड लाइक्स! पीपल वॉन्ट ग्लैमर, एक्सपोज़र, सेंशुऐलिटी! जबतक हम वो नहीं देंगे लोग हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब नहीं करेंगे। शॉर्ट फिल्म को लाइक नहीं करेंगे...मतलब इन्वेस्टर्स का पैसा रिकवर नहीं होगा'।
'यू नो आई हेट दिस ब्लेटेंट फीमेल ऑब्जेक्टिफिकेशन। कोई लॉजिक नहीं, बस अपनी परवर्टेड फैंटेसी को सेटिस्फाई करने के लिए कुछ भी कचरा डाल दो'।
'अरे लॉजिक है ना, वो लड़की को भेड़िए ने पानी मे डाला और फिर निकाल कर साइड पे रख दिया'। शांतनु फटाफट बोला।
'क्यों? लड़की ना हुई डिप टी बैग हो गई, पानी मे डाला फिर निकाल कर साइड में रख दिया। लुक शांतनु, मैं फ़िल्म में तभी काम करूँगी जब मुझे स्क्रिप्ट और अपना रोल दोनो अपील करेंगे'।
'अरे यार इशिका ये क्या क्या मज़ाक है!! इन्वेस्टर्स फंडिंग दे चुके हैं, सारी तैयारी हो चुकी है, कल से शूट स्टार्ट है...अब एन टाइम पे तू बैकआउट करेगी तो कैसे चलेगा'! शांतनु लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला।
'भाई एक इश्यू मेरा भी है। ये पेट फाड़ कर अंतड़ियां निकालने वाला सीन कैसे होगा। वीएफएक्स का बजट नहीं है अपना'। किशोर जो अबतक चुपचाप खड़ा था सोचपूर्ण मुद्रा में बोला।
'अरे उसकी टेंशन मत ले, वेयरवोल्फ की कॉस्ट्यूम के साथ जुगल दादा बकरे की असली अंतड़ियां भी ला रहा है। वीएफएक्स इंडिया में आने से पहले जुगल दादा ही सब हॉरर फिल्म्स में मेकअप का काम करता था। ये अमित को लिटा कर उसके ऊपर बकरे की अंतड़ियां ऐसे लगाएंगे कि बिल्कुल नेचुरल लगेगी'।
शांतनु ने एक नज़र अपने बगल में खड़े जुगल दादा पर डाली, जुगल दादा ने मुंह मे पान की पीक भरे हुए आश्वासनपूर्ण ढंग से सर हिलाया।
'फिर तू वो वेयरवोल्फ वाला कॉस्ट्यूम पहनकर वो अंतड़ियां मुंह में ले...'
'ओ भाई! एक मिनट! आई एम नॉट पुटिंग दैट शिट इन माई माउथ'। किशोर ने अमित की बात बीच मे ही काटी।
'अबे कल ही रो रहा था तू नॉनवेज खाने को'!
'अबे तंदूरी चिकेन और बकरे की कच्ची अंतड़ियों में फर्क होता है भाई'! किशोर चिढ़ कर बोला।
'वैसे भी मुझे इस रोल में कोई इंटरेस्ट नहीं था! मेरी तो शक्ल भी नज़र नहीं आ रही इस रोल में। अब ये लिमिट है भाई...ये मुझसे नही होगा, ऐसा कर तू खुद ही बन जा वेयरवोल्फ'।
शांतनु ने बहुत मुश्किल से अपने अंदर उमड़ रहे आवेश को संभाला।
'देखो गाइज़, कल से शूट स्टार्ट है। आई नो अभी चीजें बहुत मुश्किल लग रही हैं लेकिन ट्रस्ट मी एक बार ये फ़िल्म बन गई ना तो आग लगा देगी'।
'तू ध्यान रखियो शांतनु, ऐसा ना हो कि ये फ़िल्म तेरे कैरियर में ही आग लगा दे'। अमित बोला।
शांतनु और जुगल दादा को छोड़कर बाकी सभी ठहाके मार कर हंस पड़े।
शांतनु चुपचाप वहां से उठा और बाहर निकल गया।
उसके फ्लैट पर शूट स्टार्ट होने से पहले यह आखरी मीटिंग थी।
शांतनु पिछले 6 सालों से डायरेक्टर बनने के लिए स्ट्रगल कर रहा था लेकिन कुछ छोटे-मोटे ऐड फिल्म्स और डॉक्युमेंट्रीज़ के अलावा अभी तक कुछ कर नहीं पाया था।
यह शॉर्ट फिल्म उसके लिए आखरी मौका थी, दुनिया के सामने खुद को साबित करने के लिए।
शांतनु के पास ना पैसा था ना ही संसाधन, इसीलिए फ़िल्म में काम करने के लिए उसने अपने दोस्तों को तैयार किया था। बीते 6 महीनों में शांतनु ने अपने दिन रात एक कर दिए थे इस शॉर्ट फिल्म प्रोजेक्ट के पीछे।
बहुत मुश्किलों से उसने एक-दो लोकल बिज़नेस हाउसेस को फंडिंग के लिए तैयार किया था हालांकि फंडिंग के नाम पर जो पैसा मिल था उसका आलम नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या वाला ही था फिर भी अपनी सारी सेविंग्स मिला कर किसी तरह उसने एक शॉर्ट फ़िल्म के बजट का इंतजाम कर लिया था।
शांतनु को यकीन था कि एक बार उसकी शॉर्ट फिल्म बन कर रिलीज़ होगी तो बड़े बड़े प्रोडक्शन हाउसेज उसे साइन करने को लाइन लगाएंगे। लेकिन उसकी टीम का रवैया उसकी सारी मेहनत और सच होने की कगार पर खड़े सपनों को बर्बाद कर सकता था।
'मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। अपनी फिल्म किसी को बर्बाद नहीं करने दूंगा'। शांतनु ने मन ही मन सोचा।
शांतनु ने जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली। पिछले 6 महीनों में शांतनु चेन स्मोकर बन चुका था। बिना सिगरेट लबों से लगाए पांच मिनट भी काटना उसके लिए मुश्किल था।
एक अदद गहरा कश खींचते ही शांतनु को अपने दिमाग की नसों के तनाव में राहत महसूस हुई।
उसी समय उसके मोबाइल की रिंग बजी, केविन का कॉल था।
अपनी टीम में दो ही मेम्बर्स पर शांतनु आंख बंद करके विश्वास करता था, जुगल दादा और केविन। शांतनु के टैलेंट में खुद शांतनु के अलावा किसी को अगर सच्चा विश्वास था तो वो यही दोनो थे।
केविन एक वॉना बी सिनेमेटोग्राफर था जोकि शांतनु के लिए उसकी ऐड फिल्म्स में काम कर चुका था और फिलहाल उसके लिए इस प्रोजेक्ट में मल्टीटास्किंग कर रहा था।
'हेलो केविन। काम हो गया'?
'एकदम चकाचक हो गया शांतनु भाई। यहां लोकेशन पर अपने लोकल गाइड गुरुमंग के साथ मिलकर मैंने सारा ज़रूरी सेटअप करवा लिया है। अब कल सुबह सुबह रसालगढ़ जाकर रिफ्रेशमेंट का और बाकी कुछ ज़रूरी सामान ले आऊंगा। आपलोग दोपहर तक यहां पहुंच जाना ताकि ऐनी हाऊ सन डाउन होते ही अपन लोग शूट स्टार्ट कर दें'।
'ठीक है केव! कल मिलते हैं'।
फ़िल्म के लिए जगह की रेकी शांतनु और केविन पहले ही कर चुके थे। राजनगर और रसालगढ़ के बीच पड़ने वाले पहाड़ी जंगल जोकि ब्लैक ऑर्किड वुड्स के नाम से जाने जाते थे वहां जंगल के बीच एक स्पॉट एन उनकी जरूरत के हिसाब का था।
शांतनु यहां राजनगर में अपनी एक्टिंग टीम को रिहर्स करवा रहा था और केविन लोकेशन पर लाइट्स, कैमरा और टेंट्स वगैरह लगवाने की व्यवस्था कर रहा था।
●●●
'क्या ज़बरदस्त जगह है ये! बिल्कुल वैसी ही जैसी तुमने स्क्रिप्ट में लिखी है शांतनु'। अमित आश्चर्य से जंगल मे ऊंचे देवदार पेड़ों के बीच बनी झील देख रहा था।
शांतनु के होठों के बीच सिगरेट दबी हुई थी, एक हल्की मुस्कान के साथ धुएं की लकीर उसके लबों से बाहर निकली।
'वैसे आसमान में बादल हैं, अगर रात होने पर चाँद के आगे बादल आ गए तो हम शूट नहीं कर पाएँगे'। अमित ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा।
'चाहे कुछ भी हो जाए, शूटिंग तो आज होकर रहेगी'। शांतनु अपने नथुनों से सिगरेट का धुआं उगलते हुए बोला।
अमित ने शांतनु को देखा, ऐसा लग रहा था जैसे शांतनु ने यह बात फरमान जारी करने के अंदाज़ में कही हो।
'सबलोग फटाफट लंच कर लो और उसके बाद कुछ रेस्ट ले लो। हमलोग सूरज ढ़लते ही शूट स्टार्ट करेंगे और आज रात भर में शूटिंग रैपअप कर लेंगे, वरना अगले फुल मून तक के लिए काम अटक जाएगा'। शांतनु सबको समझाते हुए बोला।
दिन केे एक बज रहे थे। शाम सात बजे से शूटिंग स्टार्ट होनी थी।
अमित, किशोर, केविन, इशिका, जुगल दादा और शांतनु सभी उस झील से कुछ ही दूरी पर लगे उनके कैम्प की तरफ बढ़ गए।
वहां पर जंगल मे बीच छे टेंट एक गोलाई में लगे हुए थे। यह पूरा एरिया देवदार के बड़े-बड़े पेड़ों से घिरा हुआ था। टेंट्स के बीचों बीच सूखे पत्तों और टहनियों को इकट्ठा करके बनाई बोनफायर जल रही थी जिसपर गुरुमंग फिलहाल तीतर भून रहा था। गुरुमंग पंद्रह साल का छोटे कद का पहाड़ी लड़का था जो उस पहाड़ी जंगल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था।
'वाह! अच्छी खुशबू आ रही है गुरुमंग'। किशोर खुश होते हुए बोला।
'थैंक्यू साब जी'!
'अपना गुरुमंग सिर्फ गाइड ही नहीं कुक भी कमाल का है' केविन ने गुरुमंग की पीठ थपथपाई।
'ट्राय दिस साबजी। यहां के पहाड़ी बकरे के गोश्त का पुलाव है ये'। गुरुमंग ने खुश होते हुए अपने पास रखी बड़ी सी हांडी में से पुलाव एक डिस्पोज़िबल प्लेट पर निकाला और किशोर की तरफ बढ़ा दिया।
किशोर उंगलियां चाटता रह गया। 'अबे...अबे...ये क्या बना दिया मेरे भाई। गुरुमंग तू तो हीरा है, यहां जंगल मे क्यों पड़ा है। मेरे साथ चल भाई, मेरा पर्सनल बावर्ची बन जा। कसम से मज़ा आ गया'।
इसके बाद तो सभी खाने पर टूट पड़े।
'तेरा चेला गुरुमंग वाकई कमाल का बावर्ची है किशोर'। जुगल दादा बड़ी सी डकार मारते हुए बोला।
'हाँ, पिछले साल ब्लैक ऑर्किड वुड्स पर डॉक्यूमेंट्री शूट करते समय मैं इससे मिला था। तबसे ये मेरे साथ ही है, कमाल का लड़का है'। केविन बोला।
गुरुमंग का गोरा चेहरा अपनी प्रशंसा सुनकर गुलाबी हो गया।
'यार खाना तो वाकई मास्टर शेफ स्टैण्डर्ड का है, बस थोड़ा गला तर करने का भी इंतेज़ाम हो जाता तो...' अमित तीतर का लेग पीस नोचते हुए बोला।
'उसका भी इंतेज़ाम है भाई। जा बेटा गुरुमंग, भाग कर टॉनिक का डब्बा ले आइयो'। केविन ने गुरुमंग को आदेश दिया, गुरुमंग किसी आज्ञाकारी चेले की तरह एक टेंट की ओर बढ़ गया। जब गुरुमंग लौटा तो उसके हाथ मे एक संदूक जितने बड़े आकार का आइस बॉक्स था जोकि बीयर कैन्स से भरा हुआ था। सबकी बाछें खिल गईं।
'बस भाई, ये मिल गया तो मोक्ष मिल गया'।
'आराम से पियो गाइज़, डोंट गेट टू ड्रंक। हमें शाम से शूट भी स्टार्ट करना है'। शांतनु चिंतित भाव से बोला। खाना खत्म करते ही उसने नया सिगरेट सुलगा लिया था।
'रिलैक्स शान! शाम होने में अभी बहुत समय बाकी है। वैसे भी ये बियर है रम नहीं कि पी कर हमलोग आउट हो जाएंगे'। इशिका शांतनु को चिढाते हुए बोली।
खाने पीने का यह दौर लगभग एक घण्टा चला, उसके बाद सभी लोग आराम करने के लिए अपने अपने टेंट में चले गए। गुरुमंग ने सबके जाने के बाद खाना खाया और जगह की सफाई की।
गुरुमंग ने बोनफायर की आग बुझाई और बाहर खुले में ही एक पेड़ के नीचे लेट गया। शाम से पहले वो भी एक झपकी लेना चाहता था।
तभी सूखे पत्तों और झाड़ियों में हुई सरसराहट ने गुरुमंग का ध्यान खींचा। उसने गर्दन उचका कर चारों ओर देखा, कहीं कोई नज़र ना आया। गुरुमंग पुनः लेट गया और आँखें बंद कर ली। इस बार पहले से भी निकट कहीं से सरसराहट की आवाज़ उभरी।
पहाड़ी लड़का फौरन चौकन्ना होकर बैठ गया, कमरबन्द में खोंसी हुई खुखरी उसने हाथ मे ले ली।
'कौन है वहां'!!
कोई जवाब नहीं आया।
गुरुमंग अपनी जगह से उठा और बिना आवाज़ कदमों से चलते हुए झाड़ियों तक पहुंचा।
झाड़ियों के पीछे से एक हल्की गुर्राहट उभरी।
गुरुमंग ने हल्के से झाड़ी हटाई, पीछे एक पहाड़ी भेड़िया था जो शायद भुने मांस और खाने की गंध से वहां आया था।
भेड़िये की आंखें कंचों की तरह चमक रही थीं। गुरुमंग जानता था कि जानवर अंतर्मन का भय सूंघ लेते हैं। उसने अपना साहस कम नहीं होने दिया।
'गो!! गो!! जाओ यहां से'!! गुरुमंग ने दिलेरी से अपनी खुखरी वाला हाथ हवा में हिलाया। भेड़िया कुछ क्षण उसे देखता रहा फिर पीछे मुड़ कर वापस जंगल मे भाग गया।
गुरुमंग ने चैन की सांस ली।उसने वापस लौट कर बोन फायर दोबारा जला दी ताकि फिर कोई जंगली जानवर उधर ना आए।
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इशिका की उल्टियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं, उसकी तबियत बिगड़ती ही जा रही थी।
'शांतनु, हमें शूट कैंसिल करनी पड़ेगी। इशिका की हालत सुधरने के बजाए और खराब होती जा रही है। हमें राजनगर लौट कर इसे हॉस्पिटल ले जाना होगा'। अमित चिंतित भाव से बोला।
'हम ऐसा नहीं कर सकते अमित, अभी तो शूट स्टार्ट भी नहीं हुई है। शाम हो रही है, कुछ देर में चांद निकल आएगा, हमें तैयारी करनी...' शांतनु जैसे बदहवासी में बड़बड़ा रहा था, अमित ने झुंझलाते हुए उसकी बात बीच मे काटी। 'आर यू आउट ऑफ योर माइंड शांतनु! ऐसी स्थिति में तुम शूटिंग के बारे में सोच भी कैसे सकते हो'!!
'अरे उल्टी ही तो हो रही है, ठीक हो जाएगी। किसने कहा था सूअरों की तरह ठूस-ठूस कर खाने और उसपर लीटर भर दारू पीने को। ब्लडी फ्री लोडर्स'!! शांतनु गुस्से में बिफर उठा।
'माइंड योर लैंग्वेज शांतनु ऐंड लिसेन टू मी..'
'नो यू लिसेन टू मी, मैंने इस फ़िल्म के पीछे अपना सबकुछ लगा दिया है। अपनी एक-एक पाई मैंने लगा दी ताकि ये फ़िल्म बन सके, इसके लिए तुम लोगों की हर वाजिब गैरवाजिब डिमांड पूरी करता रहा और अब तुमलोग मुझे ये सिला दे रहे हो'!
'अबे तो तुम्हारा सपना पूरा करने के लिए किसी को मरने दें क्या। होश की दवा करो भाई। शूटिंग आज नही हुई अगले महीने हो जाएगी'।
'उसका पैसा तुम्हारा बाप देगा!'
'ठहर जा भो$@#!#&*'!! अमित शांतनु के ऊपर टूट पड़ा।
शांतनु ने एक जबरदस्त मुक्का अमित के मुंह पर जड़ दिया। अमित को दिन में ही तारे नज़र आ गए। किशोर जोकि इशिका को संभाल रहा था यह देखकर शांतनु पर झपटा। दोनो आपस मे गुत्थम गुत्था हो गए। केविन और गुरुमंग भागते हुए वहां आये।
केविन ने किशोर को पकड़ा, गुरुमंग ने शांतनु को रोका।
'अब तो साला फुल एंड फाइनल पैकअप!! तू बना ले फ़िल्म अपनी'। किशोर क्रोध में फुफकारते हुए बोला।
'तू गाड़ी निकाल किशोर, हमदोनों इशिका को लेकर यहां से जा रहे हैं '। अमित ने भी खुद को संभाला।
शांतनु गुस्से में बिफरते हुए उन दोनों की ओर बढ़ा, केविन ने उसे बीच मे ही रोक लिया।
'नहीं शान भाई। झगड़ने से कुछ नहीं होगा, शूट ये लोग वैसे भी नहीं करने वाले। जस्ट लेट देम गो'।
शांतनु अंगारे जैसी आखों से अमित और किशोर को घूरता रहा, फिर एक झटके में उसने केविन से अपनी बांह छुड़ाई और वहां से चला गया।
केविन शांतनु के पीछे गया लेकिन तबतक आवेश में चलता हुआ शांतनु घने जंगल और ऊंचे पेड़ों के बीच कहीं गायब हो चुका था। हताश भाव से केविन वापस लौटा।
अमित और किशोर इशिका को उस एस यू वी में बैठा रहे थे जिससे वोलोग वहां आए थे। उस एस यू वी के बगल में एक क्रूजर खड़ी थी जिसमे केविन और गुरुमंग आए थे।
इशिका की उल्टियां रुक गईं थी लेकिन अब भी वो काफी बीमार नज़र आ रही थी।
'हम तीनों यहां से निकल रहे हैं जुगल दादा, यहां रुककर कुछ नही होना। अगर चाहो तो आप भी हमारे साथ आ सकते हो ' किशोर बोला।
जुगल दादा अनिश्चित भाव से खड़ा कभी केविन को और कभी उन लोगों को देख रहा था। गुरुमंग सामान चढ़ाने में उनकी मदद कर रहा था।
'मानता हूँ शान भाई को आपे से बाहर नहीं होना चाहिए था लेकिन तुमलोगों ने भी जो किया है वो बहुत गलत है। सरासर पीठ में छुरा घोपने वाला काम किया है'। केविन किशोर से बोला।
'शांतनु तो पागल है लेकिन तू तो समझदार है ना केव? इसकी हालात देख, क्या तुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में ये शूटिंग कर सकती है'! किशोर ने गाड़ी में बैठी इशिका की तरफ इशारा करते हुए कहा।
'सवाल इशिका की तबियत का नहीं है, सवाल तुमलोगों के एटीट्यूड का है। तुमलोग शुरू से ही इस प्रोजेक्ट के लिए यूं काम कर रहे हो जैसे शांतनु पर कोई अहसान कर रहे हो'। केविन सख्त भाव से बोला।
'इसकी बकवास पर ध्यान मत दे किशोर, ये भी अपने गुरु की भाषा बोल रहा है। चल निकलते हैं यहां से, लेट्स गो'।
ड्राइविंग सीट पर सवार होते हुए अमित बोला। किशोर भी गाड़ी की ओर बढ़ गया।
केविन ने आसमान की तरफ देखा, उस समय लगभग रात के आठ बजे रहे होंगे। आसमान में बादल पसरे थे और उनके बीच से पूर्णमासी का चाँद झांक रहा था।
इंजन स्टार्ट होने की गरज से पूरा जंगल थर्राया।
ज़ोरदार हुंकार के साथ गाड़ी आगे बढ़ी।
गाड़ी अभी मुश्किल से सौ गज ही आगे गई होगी कि अचानक किसी झाड़ी के पीछे से छलांग लगा कर एक पहाड़ी भेड़िया गाड़ी के ठीक सामने आ गया।
यह घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि अमित को कुछ सोच समझ पाने का मौका ही नहीं मिला। भेड़िये से टकराव को बचाने के लिए अमित ने स्टेयरिंग पूरी तरह दाएं घुमा दिया, गाड़ी के टायर रगड़ खाते हुए मुड़े। गाड़ी अमित के नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। अमित ने उसे संभालने का भरसक प्रयास किया लेकिन गाड़ी किसी खूंटा तुड़ा कर भागे सांड के जैसी लहराती हुई जाकर एक देवदार के विशालकाय पेड़ से टकराई। टक्कर इतनी भीषण थी कि बोनट और गाड़ी के अगले हिस्से का लगभग कचूमर बन गया। अगली सीट्स के आगे लगे एयरबैग्स खुल गए।
केविन, गुरुमंग और जुगल दादा एस यू वी की ओर लपके। एक्सीडेंट के शॉक से इशिका बेहोश हो गयी थी। अमित और किशोर दोनो के कराहने की हल्की आवाज़ आ रही थी।
गाड़ी के अगले दोनो दरवाज़े इस कदर तुड़ मुड़ गए थे कि उनका खुलना संभव नहीं था। किशोर क्योंकि पिछली सीट पर सवार था इसलिए पीछे का दरवाजा खोलकर सबसे पहले उसे बाहर निकाला गया। किशोर को हल्की फुल्की चोटें ही आई थीं।
केविन और गुरुमंग ने मिलकर अमित को अगली सीट से पीछे आने में सहायता की ताकि वो बाहर निकल सके। अमित का माथा फट गया था जिससे बुरी तरह खून बह रहा था। अमित को निकालने के बाद सबसे मुश्किल काम बेहोश इशिका को सीटबेल्ट खोलकर अगली सीट से पीछे लाना और बाहर निकालना था।
बहुत मुश्किल और मशक्कत के बाद बेहोश इशिका को भी बाहर निकाल लिया गया।
'वो कमबख्त भेड़िया कहां गया? जैसे हवा के झोंके की तरह आया था वैसे ही गायब भी हो गया'! जुगल दादा चारों तरफ देखते हुए बोला। पहाड़ी भेड़िया कहीं नजर नही आ रहा था।
'एक्सीडेंट के धमाके से भाग गया होगा'। केविन बेहोश इशिका को अपनी गोद मे उठाते हुए बोला। गुरुमंग ने अमित को और जुगल दादा ने किशोर को सहारा दिया। सभी वापस कैम्प पहुंचे।
केविन और गुरुमंग ने तीनों की मरहम पट्टी की।
'मैं शांतनु को कॉल लगाता हूँ, उसे स्थिति से अवगत कराना होगा। यहां से इन लोगों को लेकर जाना अब ज़रूरी है'। जुगल दादा ने चिंतित भाव से कहा।
'एक तो साला इस टेंट के अंदर सिग्नल नही आ रहा। मैं बाहर निकल कर ट्राई करता हूँ' जुगल दादा फोन हाथ मे लिए हुए झुंझलाकर टेंट से बाहर निकल गया।
'आहsss' इशिका के गले से हल्की कराह निकली। वो होश में आ रही थी।
'वो भेड़िया! कितना भयानक था वो'! इशिका के स्वर में घबराहट का पुट था।
'रिलैक्स इशिका, अब तुम ठीक हो। थैंक गॉड तुमलोगों को ज़्यादा चोट नही आई'। केविन इशिका को बॉटल से पानी पिलाते हुए बोला।
'मतलब किसी का सर फट जाना तुम्हारे लिए ज़्यादा चोट नहीं है! क्या चाहते हो भाई...सर धड़ से अलग हो जाए'? अमित खिसियाकर बोला।
'मेरा यह मतलब नहीं...' केविन का वाक्य अधूरा रह गया।
वातावरण में एक बेहद हृदयविदारक चीख़ गूंजी, जैसे किसी बकरे को जिबह किया जा रहा हो।
'ये तो जुगल दादा की आवाज़ है'। केविन ने चिंतित भाव से कहा और फौरन टेंट से बाहर की तरफ भागा, गुरुमंग भी उसके पीछे भागा।
'जुगल दादा! जुगल दादा!!' केविन ने बाहर निकल कर आवाज़ लगाई। गुरुमंग उसके साथ ही था। इशिका, किशोर और अमित भी तबतक गिरते पड़ते टेंट से बाहर आ गए थे।
देवदार के एक पेड़ के पीछे सरसराहट हुई।
'जुगल दादा'?
'कहीं वो पहाड़ी भेड़िया तो वापस नहीं आ गया'!
पेड़ के पीछे से निकलने वाली आकृति जुगल दादा की थी। पेड़ और झाड़ियों के पीछे से निकल रहे जुगल दादा का सर और ऊपरी धड़ नज़र आ रहा था, लेकिन जैसे ही जुगल दादा पेड़ की ओट से बाहर निकल उसे देखकर इशिका की चीख निकल गयी। अमित और किशोर भय से जड़वत हो चुके थे, केविन और गुरुमंग के मुंह से भी बोल नहीं फूट रहा था, ज़ुबान लकड़ा हो गई थी।
जुगल दादा का पेट सामने से यूं फटा हुआ था जैसे किसी ने जिपर बैग की ज़िप खोल दी हो। पेट के अंदर का सारा मलबा, अंतड़ियां बाहर लटक रही थीं।
जुगल दादा ने किसी शराबी के मानिंद झूमते लड़खड़ाते उनकी तरफ कदम बढ़ाया। झाड़ियों में, देवदार के पेड़ के पीछे फिर कुछ सरसराहट हुई। अगले ही पल एक सात फुटी आकृति देवदार के पेड़ के पीछे से निकली और सीधा जुगल दादा पर झपटी।
इसबार किसी के मुंह से चीख़ क्या सिसकारी तक ना निकली, क्योंकि जो मंज़र वो देख रहे थे वो या तो दुःस्वप्न का हो सकता था या नरक का। स्वप्न वो नहीं देख रहे उन्हें इल्म था, जिसका सीधा सा मतलब था कि नरक उनके लिए ब्लैक ऑर्किड वुड्स में नुमायां हो रहा था।
इस बार पेड़ के पीछे से निकलने वाली आकृति एक मानव भेड़िये यानी वेयरवोल्फ की थी।
पूरी हिंसकता से वेयरवोल्फ जुगल दादा पर पीछे से झपटा और अपने जबड़ों का शिकंजा उसकी गर्दन पर कस दिया। किसी सर कटे मुर्गे की तरह जुगल दादा का पूरा जिस्म फड़फड़ाया, भेड़िये ने पूरी बेरहमी से अपने पंजों में जुगल दादा की पेट से बाहर लटक रही अंतड़ियां भींच लीं। जुगल दादा के मुंह से खून का फौव्वारा छूट निकला।
मानव भेड़िया जुगल दादा के शिथिल और निष्प्राण होते शरीर को वापस झाड़ियों और पेड़ों के पीछे घसीट ले गया। कुछ देर तक सूखे पत्तों पर जुगल दादा की लाश घसीटे जाने की सरसराहट सुनाई देती रही लेकिन फिर सब कुछ शांत हो गया। वातावरण में पसरे मौत के सन्नाटे को इशिका, अमित, किशोर, केविन और गुरुमंग की धौंकनी के जैसे चलती साँसों की आवाज़ और झींगुरों का शोर भंग कर रहा था।
जाने कितनी ही देर तक वे पांचों वैसे ही बुत बने खड़े रहे।
'म..मैं समझ गया!! ये सबकुछ उस कमीने की प्लानिंग है'!! किशोर अचानक से यूं बोला जैसे सोते से जागा हो। बाकियों की तन्त्रा भी भंग हुई।
'किसकी प्लानिंग? क्या बक रहे हो'? केविन की कुछ समझ ना आया।
'तेरे गुरु की! शांतनु की'! किशोर फुफकारते हुए बोला।
'तुझे याद है ना अमित, वो बकरे की अंतड़ियां जिन्हें तेरे पेट पर चिपकाने वाला था जुगल दादा और वो वेयरवोल्फ कॉस्ट्यूम जिसे पहन कर मुझे वेयरवोल्फ बनना था'। किशोर अमित से मुखातिब हुआ।
'जुगल दादा और शांतनु ने मिलकर ये सारा ढोंग रचा है। जुगल दादा अपने ऊपर अंतड़ियां चिपका कर आ गया और पीछे से शांतनु वेयरवोल्फ का कॉस्ट्यूम पहन कर आया। ये इन लोगों की मिली भगत है'। किशोर गुस्से में चिल्ला रहा था।
'तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है किशोर'! केविन ने उसे झिड़क लगाई।
'तू तो चुप ही रह शांतनु के चमचे! तू भी इस ड्रामे में शामिल है'।
'अब सोचता हूँ मैंने बेकार ही शान भाई को रोका उस समय, तुझे कुत्ते की तरह धोने देना चाहिए था'। केविन भावहीन ढंग से बोला।
'बस भी करो तुमलोग'! इशिका के लिए अब वो बेवजह की बहस सुन पाना नाकाबिले बर्दाश्त हो रहा था।
'ठीक है, मैं अपनी बात साबित करके दिखाता हूँ। वो अंतड़ियों वाला आइस बॉक्स और वेयरवोल्फ कॉस्ट्यूम जुगल दादा के टेंट में रखा हुआ था। अगर ये सब शांतनु का किया हुआ नाटक नहीं है तो वो चीजें अभी भी वहीं मौजूद होनी चाहिए'। किशोर जुगल दादा के टेंट की तरफ बढा, बाकी लोग भी उसके पीछे टेंट में दाखिल हुए।
वहां, आइस बॉक्स में अंतड़ियां और वेयरवोल्फ कॉस्ट्यूम अपने स्थान पर यथावत थे। उनकी स्थिति बता रही थी कि उन्हें छुआ तक नहीं गया था। किशोर के मुंह से बोल नहीं फूटा।
'अब बोल क्या बक रहा था तू'! केविन ने किशोर को ललकारा।
'ल...लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है। व...वो वेयरवोल्फ सच कैसे हो सकता है'? किशोर ने जवाब देने के स्थान पर अपना सर दोनो हाथों से यूं पकड़ लिया जैसे उसका सर फट पड़ने को उतारू हो।
'शांतनु कहां है'? इशिका ने सोचपूर्ण ढंग से कहा।
'पता नहीं। शान भाई के जाने के बाद एक के बाद एक ऐसी घटनाएं घटती चली गईं कि मुझे उन्हें तलाशने के मौका ही नहीं मिला। लेकिन अब उन्हें ढूंढना ज़रूरी हो गया है। मैं उन्हें तलाशने जा रहा हूँ'। केविन टेंट से निकलने का उपक्रम करते हुए बोला।
'रुक जाओ। तुम अकेले नहीं जाओगे, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ।' किशोर बोला।
'ल..लेकिन वो वेयरवोल्फ अगर फिर से आ गया तो'! इशिका की जान सूख गई।
'मैंने शूटिंग के लिए कार बैटरीज से कनेक्ट करके टेंट के चारों ओर लाइट्स लगाई हैं। सभी लाइट्स जला लो, बाहर जल रही बोनफायर तेज़ कर लो। वो शैतान इतनी तेज रौशनी के करीब नहीं आएगा'। केविन ने गुरुमंग को निर्देश दिया।
'और अगर आया तो'? इशिका बोली।
'तो गुरुमंग है ना। इसे कम मत समझो, ये पहाड़ी लड़का बहुत हिम्मती है'। केविन ने इशिका को ढांढस बंधाया और आगे बढ़ गया। किशोर भी उसके साथ हो लिया।
●●●
रात का लगभग एक बज चुका था। केविन और किशोर को गए हुए काफी समय हो गया था, ना ही दोनों वापस आये ना उनमे से किसी का फोन लग रहा था।
'मुझे लू जाना है'। इशिका ने झिझकते हुए कहा।
'स...सुबह तक रुक नही सकती'। अमित मरी हुई आवाज़ में बोला।
'पागल हुए हो क्या! चलो मेरे साथ'!
'मुझे लू नहीं जाना, तुम जाओ'।
'तुम एक अकेली लड़की को इस सुनसान में, आधी रात में उस हैवान का शिकार बनने के लिए अकेला छोड़ दोगे'!!
'अकेली लड़की! क्या बात है! अब जेंडर इक्वेलिटी, फेमिनिज़्म कहां चले गए'?
'बकवास मत करो। बी ए मैन'
'आई वुड प्रेफर बीइंग लेस ऑफ ए मैन रादर देन बीइंग ए डेड मैन और वैसे भी हॉरर फिल्म्स, पल्प फिक्शन नॉवेल्स में तुमने देखा ही होगा कि लू जाने वाली लड़की ही पहले मारी जाती है'।
'वाओ! व्हाट ए ब्राइट थॉट, वाय डोंट यू शोव इट अप वेयर द सन डज़न्ट शाइन सो ब्राइट'। इशिका अमित को खा जाने वाली निगाहों से घूरते हुए बोली और पैर पटकती हुई टेंट के बाहर निकल गई। झक मारकर अमित को भी उसके पीछे जाना पड़ा।
गुरुमंग ने अबतक कैम्प के चारों ओर लाइट्स जला दी थीं और बोनफायर भी तेज कर दिया था, अब उस स्थान पर काफी रौशनी थी।
अमित और इशिका को निकल कर जंगल की तरफ जाता देख गुरुमंग परेशान हो गया।
'डोंट गो। डोंट गो। भेड़िया आ जाएगा'। गुरुमंग टूटी फूटी हिंदी इंग्लिश खिचड़ी में बोला।
'तू अपना काम कर बे पहाड़ी चूज़े! भेड़िया आएगा तो सबसे पहले तेरा टेंटुआ मरोड़ेगा'। अमित ने भुनभुनाते हुए गुरुमंग को कोसा और इशिका के पीछे बढ़ गया।
इशिका झील के किनारे पहुंची। अमित उससे कुछ पीछे ही था।
'ठहरो! तुम वहीं रुको, मैं लू होकर आती हूँ और ध्यान रखना कि वो वेयरवोल्फ ना आए। अगर उसने मुझे खाया ना तो चुड़ैल बनकर तेरा खून पी जाऊंगी मैं'। इशिका ने एक सांस में बोला। झील के पास ही एक झाड़ी के पीछे चली गई वो।
अमित झील से पहले ही कुछ दूरी पर रुक गया था।
'हुँह! ध्यान रखना कि वेयरवोल्फ ना आए'। अमित इशिका के बोलने के अंदाज़ की नकल करते हुए बोला।
'वेयरवोल्फ ना हुआ मेरा रिश्ते का साला हो गया जो मेरा लिहाज़ करेगा। अरे जल्दी कर कमबख्त, अब तो डर के मारे मुझे भी आने लगी'! अमित दूर से ही इशिका से बोला। उसका कोई जवाब ना आया।
अमित थोड़ा आगे बढ़ा, उसी समय उसे अपने पीछे कुछ सरसराहट सुनाई दी।
इशिका झाड़ियों से निकल ही रही थी कि उसे अमित अपनी तरफ बढ़ता दिखाई दिया लेकिन उसकी चाल में कुछ अजीब था।
'अमित यू इडियट! तुझे मैंने वहीं रुकने को कहा था ना'!
इशिका ने अमित को डांट लगाई पर अमित पर तो जैसे उसकी बात का कोई प्रभाव ही ना पड़ा हो। उसका चेहरा निस्तेज और प्राणहीन नज़र आ रहा था जैसे वो कोई चलता फिरता मुर्दा जॉम्बी हो।
इशिका का कलेजा मुँह को आने लगा।
'अ... अमित'। इशिका की आवाज़ फंस रही थी।
अमित ने मुश्किल से दो कदम आगे बढ़ाए होंगे, उसका शरीर किसी रेत के बोरे जैसा भहरा कर गिरा। उसका सर उसके धड़ से अलग होकर फुटबॉल की तरह लुढ़कता हुआ झील में जा गिरा।
ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने टूटे हुए खिलौने की भांति अमित का टूट हुआ सर उसके धड़ के ऊपर रख दिया था और अमित का निर्जीव शरीर गिरने से ऐसा करने वाला उसके पीछे खड़ा साफ नज़र आ रहा था। वो वेयरवोल्फ था।
इशिका के मुंह से आवाज़ ना निकली, उसकी टांगे थरथराने लगी। वेयरवोल्फ बेहद इत्मिनान से उसकी ओर बढ़ने लगा जैसे उसे शिकार करने की तनिक भी जल्दी ना हो, जैसे शिकार को मारने से पहले वो उसके साथ खेलना चाहता हो।
इशिका के जहन में शांतनु की फ़िल्म का क्लाइमेक्स सीन उभरा। क्या उसका अंत वाकई वैसे होने वाला था जैसे शांतनु फ़िल्म में दिखाना चाहता था?
कहानी जारी है।
Saturday, March 10, 2018
Don't Panic
निशा ने मोबाइल क्लॉक पर नज़र डाली, रात के आठ बजे रहे थे।
आज ऑफिस से निकलने में उसे काफी लेट हो गया था। अभी अपार्टमेंट पहुंचने में उसे आधा घन्टा और लगना था।
हालांकि उसके ऑफिस से अपार्टमेंट की दूरी महज़ पंद्रह मिनट थी यदि वो कोई टैक्सी ले लेती लेकिन निशा की यह रोज़ की आदत थी कि वो ऑफिस से अपार्टमेंट तक वॉक लेती थी।
पर आज बात अलग थी, उसका दिन काफी व्यस्त और थका देने वाला गुज़रा था। उसका जी चाह रहा था कि आज घर तक जाने के लिए वो टैक्सी या कैब ले ले।
निशा ने इधर-उधर देखा, दूर से एक टैक्सी उसे अपनी ओर आती दिखाई दी। निशा उसे रुकने का इशारा कर ही रही थी कि उसका मोबाइल बज उठा।
कॉल आदित्य का था।
उस दिन आदित्य का यह उसे सोलहवां कॉल था। सुबह से निशा आदित्य के कॉल अवॉयड कर रही थी। वो इसी पशोपेश में थी कि अभी भी उसका कॉल रिसीव करे या नहीं। उसकी इस उधेड़बुन में टैक्सी उसके सामने से निकल गई।
'अगर इसका कॉल रिसीव नही किया तो ये चैन से जीने नहीं देगा'। निशा ने झुंझलाते हुए कॉल पिक की।
'व्हाट डू यू वॉन्ट आदि'!
'बेब्स! प्लीज फॉरगिव मी..प्लीज...प्लीज़'! दूसरी तरफ से आदित्य की गिड़गिड़ाती हुई आवाज़ आई।
'यू फ़िल्थी सकॉउंडरेल!! हाऊ कुड यू इवन आस्क फ़ॉर माय फॉरगिवनेस ऑफ्टर फकिंग दैट बिच'!!
'अ... आई एम सॉरी बेब्स! आई स्वेअर इट वॉज़ जस्ट ए वन टाइम थिंग...अ... आई गॉट कॅरिड अवे..'
'वाऊ, आई एम सो रेलीव्ड'!
'रियली'?
'गेट द सरकैज़्म ऎसहोल'!!
'अरे लिसेन ना बेब्स...'
'नो यू लिसेन यू क्रीप!! डोंट यू "बेब्स" मी!! अगर अब एक बार भी तेरा नंबर मेरे फ़ोन पर फ़्लैश हुआ ना...आई स्वेअर पहले तेरा नंबर ब्लॉक करूँगी फिर तेरे अगेंस्ट हैरेसमेंट केस फ़ाइल करूँगी! गो फक योरसेल्फ'!! निशा ने फोन काट दिया और कुछ देर तक मोबाइल को घूरती रही। आदित्य का कॉल दोबारा नहीं आया।
निशा और आदित्य एक ही मल्टी नैशनल कंपनी में काम करते थे, निशा मार्केटिंग ऐंड मैनेजमेंट डिवीज़न में थी और आदित्य टेक्निकल डिवीज़न में। निशा और आदित्य तीन साल से एक दूसरे को सीरियसली डेट कर रहे थे, कुछ दिन पहले ही दोनों का ब्रेकअप हुआ था जब आफ्टर ऑफिस ऑवर निशा ने आदित्य को एच आर स्टाफ सोनिया शर्मा के साथ 'क्विकी' के बीच पकड़ा था।
उस दिन से आदित्य लगातार निशा से मिन्नतें कर रहा था और माफी मांग रहा था लेकिन निशा उसे माफ करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं थी।
आठ बजकर दस मिनट बीत चुके थे। निशा ने अपार्टमेंट तक वॉक लेने का फैसला किया। जब भी वो स्ट्रेस में होती थी तो खुद को 'अन विंड' करने के लिए वाक करती थी। आज भी वो काफी स्ट्रेस में थी, आदित्य ने उसका मूड बुरी तरह स्पॉइल कर दिया था। एकबार फिर उसके ज़ख्म हरे कर दिए थे।
निशा को मन ही मन गुस्सा आ रहा था। उसे ध्यान आया कि आज उसने लंच भी ठीक से नहीं किया, सुबह आफिस जल्दी पहुंचने के चक्कर मे ब्रेकफास्ट भी स्किप कर दिया था और अभी घर पहुंचकर डिनर बनाने की ना उसमें इच्छा थी ना हिम्मत।
निशा ने फ़ूड फैंटेसी का नंबर डायल किया। फ़ूड फैंटेसी निशा के अपार्टमेंट के पास ही सेक्टर मार्किट में एक लोकल फ़ूड जॉइंट था। यहां का खाना निशा को खासा पसंद था, जब भी उसके पास खाना बनाने का समय नही होता था या फिर उसका मन बाहर का खाना खाने का होता था वो यहीं से खाना ऑर्डर करती थी।
'हैल्लो फ़ूड फैंटेसी, मैं गैलेक्सी अपार्टमेंट से बोल रही हूँ, फर्स्ट फ्लोर, फ्लैट नम्बर 8 से। होम डिलीवरी के लिए ऑर्डर देना है'।
'यस मैडम, बोलिए'।
'एक प्लेट मटन बिरयानी भिजवा देना, एक्स्ट्रा स्पाइसी और पीसेस ढंग के रखना'।
'ओके मैडम, आपका ऑर्डर आधे घण्टे में...'
'नहीं आधे घंटे में नहीं, ऑर्डर एक घंटे में डिलीवर करना, साढ़े नौ बजे तक'। निशा कुछ सोचते हुए बोली, वो घर जाकर पहले रिलैक्स करना चाहती थी और एक शॉवर लेना चाहती थी।
'ओके मैडम आपका ऑर्डर साढ़े नौ बजे डिलीवर हो जाएगा'। दूसरी तरफ से आवाज़ आई और फोन कट गया।
निशा ने मोबाइल का म्यूजिक प्लेयर ऑन किया और ईयर प्लग्स कान में लगाने लगी, अचानक वो कुछ देखकर ठिठकी। फोन पर बात करते हुए शायद उसने बेध्यानी में गलत रास्ता पकड़ लिया था।
जो रास्ता गैलेक्सी अपार्टमेंट को जाता था उसके ठीक उल्टे रास्ते पर आ गई थी निशा। ये रास्ता एक सुनसान डंपयार्ड को जाता था। इस रास्ते पर प्रॉपर स्ट्रीट लाइट्स भी नहीं थी।
निशा ने आस-पास देखा, कोई इंसान या जानवर नज़र नही आ रहा था। सामने थोड़ी दूर पर एक स्ट्रीट लाइट की रोशनी में उसे डम्पयार्ड नज़र आया। उस रास्ते पर वो इकलौती स्ट्रीट लाइट थी जो जल रही थी।
निशा के शरीर ने डर से झुरझुरी ली। वो पीछे मुड़ी और तेज़ कदमों से चलते हुए वापस जाने लगी। वो जल्द से जल्द वहां से निकल जाना चाहती थी।
अचानक निशा के कदम ठिठक गए। उसे ऐसा लगा कि उसने किसी चीज़ की आवाज़ सुनाई। वो किसी चीज़ को काटे जाने की आवाज़ थी। जैसे कुल्हाड़ी या गड़ासे जैसे किसी हथियार से कुछ काटा जा रहा हो। आवाज़ डंपयार्ड की तरफ से आ रही थी।
निशा का दिल बार बार उसे वहां से भाग जाने को कह रहा था लेकिन दिमाग उस आवाज़ पर अटका हुआ था।
सावधानीपूर्वक बिना आवाज़ के कदमों से चलते हुए निशा उस इकलौती जलती स्ट्रीट लाइट के करीब पहुंची। वहां से उसे डंपयार्ड ज़्यादा साफ नजर आया।
निशा की आँखें भय से पथरा गयीं, एक पल को उसे लगा कि शायद अंधेरे में उसका दिमाग उसे कुछ गलत दिखा गया। सामने डंपयार्ड पर कचरे और कबाड़ के ढेर के पीछे एक शख्स था जिसकी पीठ निशा की ओर थी। उसके हाथ मे एक गड़ासा था जिससे वो बेतहाशा कुछ काट रहा था। वो क्या काट रहा था यह निशा को नज़र नही आया।
निशा ने एक कदम आगे बढ़ाया, उस शख्स के पैरों के पास एक बोरा पड़ा था जिसका मुँह बंधा हुआ था। उस बोर के चारों ओर बहुत सारा खून बिखरा हुआ था और उस शख्स के हाथ मे थमा गड़ासा भी खून से लिसड़ा हुआ था।
निशा के मुंह से एक सिसकारी निकली।
वो शख्स बेतहाशा गड़ासा चलाना छोड़कर निशा की तरफ पलटा। उसने एक काला रेनकोट पहन रखा था और चेहरे पर भी काला रबर मास्क था जिनपर खून के ढेरों धब्बे नज़र आ रहे थे।
वो शख्स एक पल को चौंका, उसे शायद वहां किसी के आ जाने की उम्मीद नही थी। फिर वो निशा की ओर बढा।
निशा जोकि अबतक भय से जड़वत थी अचानक जैसे उसके पूरे वजूद में विद्युत प्रवाह का संचार हुआ। निशा पलटी और बेतहाशा भागने लगी।
'हैल्प-हैल्प'!! निशा दो बार चिल्लाई लेकिन उसे फौरन ही समझ आ गया कि उस सुनसान में कोई उसकी मदद करने नहीं आने वाला। चिल्लाकर वो अपनी एनर्जी बर्बाद करेगी।
निशा बेतहाशा भाग रही थी। वो जल्द से जल्द उस सुनसान इलाके से निकलना चाहती थी। उसने पीछे मुड़ कर देखा, उसके पीछे कोई नहीं था।
भागते हुए अब वो मेन रोड पर आ गई जो उसके अपार्टमेंट को जाती थी। इस रास्ते पर अभी भी चहलपहल थी। निशा ने चैन की सांस ली।
एक लैंप पोस्ट के नीचे कुछ देर रुककर उसने अपनी उखड़ी हुई साँसों को स्थिर होने दिया। वो यह भी देखना चाहती थी कि कहीं वो गड़ासे वाला शख्स उसके पीछे तो नहीं आ रहा। यहां लोगों के बीच मे खुलेआम वो उसपर झपटने का दुस्साहस नहीं करता।
कुछ देर बाद निशा आश्वस्त हो गई कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा था। वो अपने अपार्टमेंट पहुंची।
नीचे कंपाउंड में गार्ड नदारद था। रात के समय कई मौकों पर निशा ने गार्ड को नदारद पाया था। उसने मन ही मन फैसला किया कि इसबार वो मेंटेनेन्स ऐंड सिक्योरिटी चार्जेज नहीं देगी और सोसाइटी मीटिंग में उस गार्ड की शिकायत भी करेगी।
अपने अपार्टमेंट पहुंचने तक निशा थकान से चूर हो चुकी थी। उसने अपना ऑफिस बैग एक ओर उछाला और खुद सोफे पर ढ़ेर हो गई।
निशा को पता ही नहीं चल कि थकान के कारण कब उसकी आंख लग गई।
निशा की आंख एक खटके की आवाज़ के साथ खुली, ऐसा लग जैसे कोई किसी चीज़ से टकराया हो।
निशा एक झटके से चौंक कर बैठ गई। उसने वॉल क्लॉक पर नज़र डाली, साढ़े नौ बजे रहे थे, उसे अंदाज़ ही नहीं लगा कि वो पौने घन्टे के लिए सो गई थी।
एकबार फिर कहीं से कोई आवाज़ उभरी।
'क...कौन है'?
कोई जवाब नहीं आया।
निशा भाग कर अपार्टमेंट के मेन डोर तक गई, डोर लॉक्ड नहीं था। दरवाज़े में एक हल्की सी झिर्री खुली हुई थी। उसने अपने दिमाग पर ज़ोर डालने की कोशिश की, क्या उसने आने के बाद दरवाज़ा अंदर से लॉक किया था? उसे ठीक से कुछ भी याद नहीं आया।
अपार्टमेंट के अंदर से फिर हल्की सी आवाज़ उभरी।
'क...कौन है'?
इस बार भी कोई जवाब नहीं आया।
निशा भागते हुए लिविंग रूम से लगे हुए ओपन किचेन एरिया में पहुंची, वहां से उसने नाइफ स्टैंड से एक बड़ा चाकू अपने कब्जे में किया।
अंदर बैडरूम से दोबारा सरसराहट की आवाज़ हुई, निशा सावधानीपूर्वक एक एक कदम फूंक फूंक कर रखते हुए बैडरूम की तरफ बढ़ी।
भय और उत्तेजना से निशा का दिल उसके सीने के पिंजर पर धाड़-धाड़ चोट कर रहा था।
बैडरूम का दरवाजा लगा हुआ था, निशा ने आहिस्ता से दरवाज़े को धकेला, दरवाज़ा हल्की आवाज़ करते हुए आधा खुल गया। क्या दरवाज़े के पीछे कोई छुपा हुआ था? निशा की उंगलियां चाकू के हत्थे पर मज़बूती से कस गए। अपना चाकू वाला हाथ उसने वार करने के लिए हवा में उठा लिया।
बिना आवाज़ वो चौखट से अंदर आई। निशा ने पूरी फुर्ती से दरवाज़ा खोल और उसका चाकू वाला हाथ हवा में लहराते हुए नीचे आया।
वार खाली गया, वहां कोई भी नहीं था।
क्या उसके ऊपर कोई पीछे से घात लगाने की फ़िराक में था?
निशा तेज़ी से पीछे घूमी और अपना चाकू वाला हाथ हवा में लहराने लगी। हर वार खाली गया, वहां कोई नहीं था।
'क...कौन है यहां! स... सामने आओ। मुझे पता है तुम यहीं छुपे हुए हो'। निशा ने हिम्मत जुटाते हुए कहा।
कोई जवाब नहीं मिला।
उसने झुककर बेड के नीचे झांका, कमरे के हर कर्टेन के पीछे, अटैच्ड बाथरूम, कमरे से लगी हुई बालकनी, वॉर्डरोब हर जगह उसने चेक किया, वहां कोई ना था।
निशा ने चैन की सांस ली। शाम की घटना ने उसके दिलोदिमाग पर काफी गहरा असर किया था जिसका यह नतीजा था कि उसे ऐसे वहम हो रहे थे।
'डोंट पैनिक निशा...डोंट पैनिक'। निशा ने खुद को ही समझाते हुए कहा।
लिविंग रूम से मेन डोर खुलने की आवाज़ हुई।
निशा की कंपट्टियाँ सायं-सायं करने लगी। उसे वह नहीं हुआ था, वाकई वहां कोई था। निशा चाकू वाला हाथ उठाए हुए लिविंग रूम की तरफ बढ़ी।
उसी समय अपार्टमेंट की लाइट चली गई, पूरे अपार्टमेंट में घुप्प अंधकार छा गया।
'ये लाइट कैसे चली गई! लाइट जाने की स्थिति में तो घर का पावर बैकअप सिस्टम शुरू हो जाता है'। निशा ने मन मे सोचा।
घबराहट से उसके हाथ-पैर फूल रहे थे। उसे लग रहा था इस अंधेरे में कहीं से भी वो हमलावर उसपर झपट पड़ेगा। वो दीवार से अपनी पीठ लगा कर अंधेरे में सरकते हुए लिविंग रूम की तरफ बढ़ रही थी।
निशा को ध्यान आया कि उसका मोबाइल फोन अब भी उसकी बैकपॉकेट में था, उसने मोबाइल निकाला और उसकी फ़्लैशलाइट ऑन की। अबतक वो लिविंग रूम में आ चुकी थी, उसके मोबाइल की फ़्लैशलाइट जैसे ही सामने दरवाज़े पर पड़ी उसे ऐसा लग जैसे वहां से कोई साया अंधेरे में गुज़रा हो।
निशा के एक हाथ मे चाकू और दूसरे में मोबाइल था, दोनों ही उसने मज़बूती से पकड़ रखे थे। उसने मोबाइल की फ्लैशलाइट कमरे में चारों ओर घुमाई, वहां कोई ना था। उसी समय लाइट वापस आ गई। निशा ने सबसे पहले मेन डोर अंदर से लॉक किया। दरवाज़ा लॉक करके उसने अपनी पीठ दरवाज़े से लगा ली और आँखें बंद कर लीं। उसके दिमाग की नसों में खून नगाड़े की तरह धाड़-धाड़ बज रहा था। साँसें उखड़ी हुई थीं। खुद को व्यवस्थित करने में उसे थोड़ा समय लगा।
निशा ने आँखें खोली, उसके ठीक सामने ओवरकोट और ब्लैक मास्क वाला शख्स खड़ा था। उसका गड़ासे वाला हाथ हवा में उठा हुआ था।
निशा की आँखें कटोरियों से बाहर उबलने को उतारू हो गईं, उसने चीखने के लिए मुंह खोला लेकिन चीख उसके गले से बाहर नहीं निकल पाई गड़ासा उसके गले मे आ धँसा, खून का फौवारा उबल पड़ा।
निशा ने चौंक कर आंखें खोली, उसका पूरा शरीर पसीने से यूं तर था जैसे उसके ऊपर किसी ने घड़ों पानी डाल दिया हो।
'य...ये तो स...सपना था! म...मैं सपना देख रही थी'। निशा हांफते हुए खुद में ही बड़बड़ाई।
उसकी नज़रें वॉल क्लॉक पर पड़ी, घड़ी में साढ़े नौ बजे रहे थे।
निशा किसी स्प्रिंग लगी गुड़िया की तरह उछलती हुई लिविंग रूम के मेन डोर तक पहुंची। उसने दरवाज़ा चेक किया, दरवाज़ा अच्छी तरह से अंदर से लॉक्ड था। उसके बाद उसने अपार्टमेंट का चप्पा-चप्पा छान मार, उसके अलावा वहां कोई नहीं था।
उसने चैन की सांस ली।
निशा को ध्यान आया कि उसका ऑर्डर अभी तक डिलीवर नहीं हुआ।
उसने फ़ूड फैंटेसी का नंबर डायल किया।
'हैल्लो'।
'गैलेक्सी अपार्टमेंट से बोल रही हूँ, मेरा ऑर्डर अभी तक डिलीवर नहीं हुआ'!
'मैडम लड़का निकल है आपका ऑर्डर ले के। रास्ते मे उसे तीन-चार और भी डिलीवरी देनी है कहीं फंस गया होगा, आता ही होगा'।
'मैंने कहा था मुझे साढ़े नौ में डिलीवरी चाहिए! अब आपके डिलीवरी बॉय को उसके आगे-पीछे चार डिलीवरी करनी है या चार सौ इससे मुझे क्या मतलब! मुझे अपने डिलीवरी बॉय का नाम और कॉन्टैक्ट नंबर बताइए'। निशा सख्ती से बोली।
'जी मैडम नोट करिए'।
निशा ने फटाफट नाम और नम्बर नोट किए और कॉल कट कर दी।
उसने डिलीवरी बॉय का नंबर डायल किया, रिंग जाती रही लेकिन कॉल नहीं पिक हुआ।
निशा ने घड़ी पर निगाह डाली, नौ बजकर चालीस मिनट हो रहे थे।
'जबतक ये डिलीवरी बॉय नहीं आता तबतक एटलीस्ट शॉवर ही ले लेती हूँ', निशा ने सोचा और अपने कपड़े उतारते हुए बैडरूम की तरफ बढ़ गई।
काफी देर तक निशा शॉवर के नीचे सर झुकाए खड़ी रही। ठंडे पानी की जिस्म पर पड़ती फुहारें जैसे उसके शरीर की हर अकड़न को सुकून दे रही थी। उसकी थकान और उसके वजूद पर हावी हुआ डर जैसे धुलता जा रहा था।
शॉवर से निकल कर निशा बाथरूम में लगे लाइफ साइज मिरर के सामने खड़ी हुई। आईने में खुद को ध्यान से देख रही थी वो, आखिर क्या कमी थी उसमे! वो खूबसूरत थो, स्मार्ट और इंडिपेंडेंट थी और हर लिहाज से उस बंदरिया से बेहतर थी जिसके साथ उसने आदित्य को गुलाटी खाते पकड़ा था।
आदित्य की याद आते ही निशा का चेहरा उदास हो गया। वो वाकई आदित्य से प्यार करती थी, लेकिन उसकी उस हरकत के बाद उसपर विश्वास कर पाना निशा के लिए संभव नहीं था।
निशा की इस विचार तन्त्रा को एक आवाज़ ने भंग किया। एक अजीब सी सरसराहट जैसी आवाज़ थी वो। निशा ने लपक कर टॉवल अपने गीले शरीर के इर्दगिर्द लपेटा।
उसे ऐसा लग जैसे वो सरसराहट की आवाज़ बाथरूम में ही कहीं से आ रही थी। निशा ध्यान से कान दीवार से लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी। आवाज़ बाथरूम की बाहरी दीवार से गुज़रते पाइप से आ रही थी।
पानी का पाइप अपार्टमेंट बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर से टेरेस तक जाता था और हर अपार्टमेंट के बाथरूम की बाहरी दीवार से गुजरता था जिसके एक तरफ बाथरूम की खिड़की खुलती थी और दूसरी तरफ अपार्टमेंट की बालकनी। निशा भाग कर खिड़की तक पहुंची। उसने खिड़की खोलकर जब बाहर झांका तो उसकी चीख़ निकल गई। सर से पैर तक काले चुस्त कपड़े पहने एक नकाबपोश पानी के पाइप से चढ़कर उसके अपार्टमेंट की बालकनी तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था।
निशा चीखते हुए बाथरूम से बाहर निकली। ठीक उसी समय अपार्टमेंट की डोरबेल बजी। डर निशा के ऊपर बुरी तरह हावी हो गया था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके दिमाग मे सोचने समझने की शक्ति शेष नही थी।
निशा भागते हुए किचेन में पहुंची और नाइफ स्टैंड से एक चाकू उसने खींच निकाला। इस बीच डोरबेल लगातार बज रही थी। निशा दरवाज़े तक पहुंची। पूरी हिम्मत बटोर कर उसने दरवाज़ा खोला।
डिलीवरी बॉय आवाक था। ऐसे दृश्य की उसने कल्पना भी नहीं की थी। पानी मे सर से पैर तक भीगी हुई खूबसूरत लड़की जिस्म पर सिर्फ एक तौलिया ओढ़े और हाथ में चाकू लिए उसके सामने खड़ी थी।
'म...मैडम आपका ऑर्डर'!!
'क..क.. कौन हो तुम'?
'मैं विष्णु मैडम, फ़ूड फैंटेसी से। आपने मटन बिरयानी का ऑर्डर दिया था'। विष्णु ने अपने हाथ मे थम हुआ पैकेट उसके सामने लहराया।
निशा कुछ समझ नहीं पा रही थी।
'आप ठीक तो हैं'? विष्णु ने सशंकित भाव से पूछा, उसे आशंका थी कि निशा किसी भी पल अपने हाथ मे थमे चाकू से उसका काम तमाम कर देगी।
'न..नहीं..मैं ठीक नहीं हूँ। कोई मुझे मारने की कोशिश कर रहा है'।
'मारने की कोशिश कर रहा है? कौन?'
'पता नहीं, मैंने एक नकाबपोश को वॉटर पाइपलाइन से अपनी बालकनी में चढ़ते देखा'। निशा डर से कांप रही थी।
'डोंट पैनिक मैम। मैं देखता हूँ, आपकी बालकनी किस तरफ है'?
'उधर, बैडरूम से लगे हुए'। निशा ने हाथ से इशारा किया।
विष्णु लिविंग रूम में दाखिल हुआ। हाथ मे थमा खाने का पैकेट उसने एक साइड टेबल पर रख दिया फिर उसने चारों ओर नज़र घुमाई। बुक शेल्फ पर उसे एक ब्रॉन्ज़ स्टेचू रखी दिखाई दी। स्टेचू भारी थी और उसे आसानी से हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता था।
विष्णु ने स्टेचू अपने कब्जे में की। फिर विष्णु हाथ मे स्टेचू और निशा हाथ मे चाकू लिए हुए बैडरूम की तरफ बढ़े।
विष्णु ने बैडरूम का दरवाजा सावधानीपूर्वक खोला, अंदर कोई नहीं था। निशा ने बैडरूम से बालकनी को जाते दरवाज़े की ओर इशारा किया। विष्णु पूरे एहतियात के साथ उधर बढा, निशा उसके ठीक पीछे थी।
बालकनी के दरवाजे की चिटकनी अंदर से लगी हुई थी यानी बालकनी पर चढ़ने के बावजूद कोई कमरे में दाखिल नहीं हो सकता था।
विष्णु ने आहिस्ता से दरवाज़े की चिटकनी नीचे सरकाई। दरवाज़ा एक ज़ोरदार धक्के के साथ खुल गया। दरवाज़ा जिस फोर्स से खुला था वो सीधा विष्णु से टकराया, विष्णु पछाड़ खाकर पीछे बेड पर गिरा।
काला लिबास पहने और हाथ मे चाकू लिए एक नकाबपोश हुंकार भरता हुआ अंदर दाखिल हुआ। निशा ये दृश्य देखकर बेतहाशा चिल्ला रही थी।
एक पल के लिए नकाबपोश भी आवाक होकर स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा था। उसने एक नज़र बेड पर गिरे विष्णु पर डाली फिर उसने कमरे में एक कोने में खड़ी, डर से चिल्लाती निशा को देखा। वो हुंकार भरते, हाथ मे चाकू उठाए निशा की ओर लपका।
यूं तो निशा ने सोचा था कि वो पूरी दिलेरी से, बिना डरे अपने हाथ मे थमा चाकू हमलावर के सीने के पार उतार देगी लेकिन उसे अपनी ओर लपकता देख उसके हाथ से छूटकर चाकू कब नीचे गिर गया उसे पता ही नही चला। मौत को सामने से लपकता देखकर डर से निशा ने अपनी आँखें भींच ली।
'भड़ाक' एक जोरदार आवाज़ हुई, उसके बाद किसी के गिरने की आवाज़ हुई।
निशा ने अपनी आँखें खोली, सामने विष्णु हाथ मे स्टेचू लिए खड़ा था और हमलावर निचे फर्श पर धराशाई था। विष्णु ने उसके सर पर पीछे से भरपूर प्रहार किया था।
'मैं सही समय पर संभल गया मैडम जी वर्ना आप तो निकल लेतीं'। विष्णु ने मज़ाक में कहा।
'बेब्स! डोंट यू वरी, मैं आ गया हूँ!! मैं तुम्हे उस साइको किलर से बचाऊंगा'।
लिविंग रूम से आवाज़ आई।
'आदित्य'?? निशा उस आवाज़ को साफ पहचानती थी, वो आदित्य था।
'बेब्स...मेरे रहते कोई तुमको छू भी नहीं सक..' बोलते हुए आदित्य ने बैडरूम में किसी फिल्मी हीरो की तरह एंट्री ली।
लेकिन एंट्री लेते ही उसके सामने जो सीन था उसे समझना उसके लिए मुश्किल था।
'बेब्स! ये लड़का कौन है? और...और तुम इसके साथ बैडरूम में सिर्फ टॉवल में क्या कर रही हो'!! आदित्य खा जाने वाली निगाहों से विष्णु को घूरते हुए बोला।
निशा को पहली बार अहसास हुआ कि तब से लेकर अभी तक वो सिर्फ एक टॉवल में है।
'और ये साइको किलर को क्या हो गया'! आदित्य की नज़र ज़मीन पर कालीन की तरह बिछे हुए नकाबपोश पर पड़ी।
'एक मिनट! तुम यहाँ क्या कर रहे हो आदि? और तुम्हे कैसे पता चला कि मेरे घर मे साइको किलर घुसा है'। निशा आदित्य पर बिफरी, उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे।
'व..व..वो..म..म..मैं' आदित्य को शब्द नहीं मिल रहे थे अपना बचाव करने के लिए।
'आह'! नकाबपोश के मुंह से एक कराह निकली।
अपना सर पकड़ कर वो फर्श पर हौले से उठ बैठा। वो अपने आसपास का सीन समझने की कोशिश कर रहा था। उसकी नज़र आदित्य पर पड़ी।
'आदित्य!! भो$@*^%...पहले क्यों नही बताया कि निशा अपार्टमेंट में अकेली नहीं होगी'!! नकाबपोश ने खुद ही अपने चेहरे से मास्क उतार फेंका और अपने सर पर फूल आया गूमड़ सहलाने लगा।
'विक्की!! ये तो विक्की है, आदित्य का बेस्ट फ्रेंड'!! निशा आवाक उसे देखते हुए बोली।
'आदि!! ये सब क्या हो रहा है' निशा ने सर्द आवाज़ में आदित्य से पूछा। आदित्य के पास सच बोलने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था, उसने हथियार डाल दिए।
'ये मेरा ही प्लान था। विक्की यहां साइको किलर बनकर आएगा और तुम्हे डराएगा, फिर मैं आकर तुम्हे उससे बचा लूँगा। मुझे लगा इसके बाद तुम मुझे माफ़ कर दोगी'। सर और नज़रें झुकाए आदित्य ने एक ही सांस में कहा।
'रियली आदि!! दिस इज़ ए न्यू लो, इवन फ़ॉर योर स्टैंडर्ड्स'!! निशा आहत भाव से बोली।
'बट बेब्स...'
'आई डोंट वॉन्ट टू लिसेन ऐनी थिंग, ऑल ऑफ यू जस्ट लीव'। निशा बाहर मेन डोर की तरफ इशारा करते हुए बोली।
आदित्य ने चुपचाप वहां से कट लेने में ही अपनी भलाई समझी, विक्की भी उसके पीछे-पीछे लग लिया।
'थैंक्स फ़ॉर योर हेल्प विष्णु'। निशा ने विष्णु से कहा।
विष्णु ने महसूस किया कि अपनी मौजूदा स्थिति में निशा काफी असहज महसूस कर रही थी।
'मैं भी चलता हूँ मैम'। कहते हुए विष्णु भी दरवाज़े की ओर बढ़ गया।
दरवाज़े पाह पहुंच कर वो ठिठका। उसकी नज़र साइड टेबल पर रखे पार्सल पर थी जोकि वो लाया था।
'डोंट फॉरगेट टू हैव योर डिनर मैम, और अगर हमारी सर्विस अच्छी लगी हो तो हमारे फ़ूड ऐप पर रिव्यु ज़रूर दीजिएगा'। विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा।
'श्योर'। निशा भी मुस्कुराई।
विष्णु दरवाज़े से बाहर निकल गया, निशा ने अच्छे से दरवाज़ा लॉक किया, उसने घर के सभी खिड़की दरवाज़े डबल चेक किए। सबकुछ अंडर कंट्रोल था। निशा ने चैन की सांस ली। उसने अपनी नाईट ड्रेस पहनी और फ्रिज से कोक निकाल कर ग्लास में डाली और पार्सल लेकर खाने बैठ गई।
वो आज के दिन को बुरे सपने की तरह भूल जाना चाहती थी। उसे अभी भी आदित्य पर बुरी तरह गुस्सा आ रहा था, ऐसा वाहियात प्लान वो सोच भी कैसे सकता था।
फिर उसके दिमाग मे डंपयार्ड वाली घटना कौंधी। वो आदि का सेटअप नहीं था। आखिर क्या था उस बन्द बोरी में जिसे वो नकाबपोश गड़ासे से काट रहा था।
निशा ने उस विचार को दिमाग से झटका, वो खाने पर कंसन्ट्रेट करना चाहती थी, मटन बिरयानी वाकई लाजवाब बनी थी और आज पीसेस भी काफी बड़े और अच्छे था।
उसने एक पीस अपने मुंह मे डाला, अचानक कुछ देखकर निशा की आँखें फ़टी रह गईं। उसका पूरा शरीर सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा उसके हाथ से बिरयानी का डब्बा छूट कर फर्श पर जा गिरा, सारा खाना फर्श पर बिखर गया। खाने के बीच पीसेस थे और एक कटी हुई उंगली...इंसान की उंगली।
निशा खुद को उल्टी करने से नहीं रोक पाई।
फिर उसे कुछ ख्याल आया। वो बेतहाशा भागती हुई अपार्टमेंट से बाहर निकली।
'आदि!! आदि!!' वो पागलों की तरह आदि को पुकार रही थी।
रात के साढ़े ग्यारह बजे चुके थे, सड़क सुनसान हो चुकी थी। निशा पागलों की तरह आगे भागी, फिर ठिठक कर रुक गई। सामने एक अंधेरी गली में मोड़ पर उसे आदि नीचे गिरा हुआ दिखाई दिया।
'आदि'!! निशा भाग कर उसके पास पहुंची।
'मैं आपका ही वेट कर रहा था मैम, मुझे पता था कि आप खाना खाते ही पर्सनली रिव्यु देने आएंगी'।
गली से विष्णु बाहर निकला रहा था। उस घड़ी उसके शरीर पर वही रेनकोट था जोकि उसने डंपयार्ड वाले शख्स को पहने देखा था। विष्णु के एक हाथ मे ब्लैक रबर मास्क था और दूसरे में खून से सना हुआ गड़ासा।
'त..तुम'!!
'जी मैं! में तो अपना खाना बनाने की तैयारी ही कर रहा था जब आप अचानक से मेरी शिकार की जगह आ टपकी। मुझे बिना मेहमान नवाज़ी का मौका दिए ही आप भाग निकली। मैं आपके पीछे आया लेकिन आप मुझे इस विष्णु वाले रूप में पहचान नही पाई'।
'फिर आपके लिए मैंने ये सरप्राइज प्लान किया। जब आपके पीछे मैं आपके अपार्टमेंट तक आया उसके कुछ ही देर बाद वहां विष्णु नाम का लड़का आपका खाने का पार्सल लेकर पहुंचा। मैंने उसे मार कर वो पार्सल हांसिल किया। आपकी मटन बिरयानी को और लज़ीज़ बनाने के लिए मैंने उसमे अपना कुक किया स्पेशल मीट डाल दिया। जब आपने मुझे डंपयार्ड में देखा था उस समय मैं खाना बनाने की तैयारी ही कर रहा था। मैंने सोचा आपको यह सरप्राइज पसंद आएगा आफ्टर ऑल शेयरिंग इज़ केयरिंग '।
'लेकिन मुझे नही पता था कि आपके घर पर तो ऑलरेडी ड्रामा चल रहा था'।
'क.. क्या चाहते हो तुम'!
'बस एक चीज़...डोंट पैनिक मैम'।
नकाबपोश ने कहा और उसका गड़ासे वाला हाथ हवा में लहराया।
समाप्त
Raina@Midnight-Conclusion
Prologue इशानी ने अपने जीवन में खुशियों का मुंह बहुत कम ही देखा था | जिस समय उसके पिता की मृत्यु हुई इशानी महज पांच साल की थी | पिता...
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Prologue इशानी ने अपने जीवन में खुशियों का मुंह बहुत कम ही देखा था | जिस समय उसके पिता की मृत्यु हुई इशानी महज पांच साल की थी | पिता...
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घडी के कांटे रात के ठीक बारह बजा रहे थे| ‘रैना! रैना!!’ विकास बेतहाशा चिल्ला रहा था लेकिन उसकी आवाज़ जैसे किसी पत्थर से टकर...
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प्रस्तावना Date: 12 th December 2017 Time: 12:00 a.m. घडी के कांटे रात के ठीक बारह बजा रहे थे | ‘ रैना! रैना!! ’ विकास ब...

